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________________ १२५ पांचवां प्रकरण : सूत्र १७५-१८५ से तं अणाणुपुवी॥ अनानुपूर्वी। करें। इससे जो भंगसंख्या प्राप्त हो, उसमें से दो (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) को निकाल देने से जो संख्या प्राप्त हो। वह अनानुपूर्वी है। पूर्वी। १८०. अहोलोयखेत्ताणुपव्वी तिविहा अधोलोकक्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा १८०. अधोलोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन प्रकार प्रज्ञप्त पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुवी प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पूर्वानुपूर्वी पश्चानु- हैं, जैसे-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानु पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुत्वी॥ पूर्वी अनानुपूर्वी। १८१. से किं तं पुवाणुपुवी? पुवाणु- अथ कि सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानु- १८१. वह पूर्वानुपूर्वी क्या है ? पव्वी-रयणप्पभा सक्करप्पभा पूर्वी - रत्नप्रभा शर्कराप्रभा बालुका- पूर्वानुपूर्वी-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालयप्पभा पंकप्पभा धूमप्पभा प्रभा पङ्कप्रभा धूमप्रभा तमा तमस्तमा। बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमा और तमा तमतमा। से तं पुवाणु- सा एषा पूर्वानुपूर्वी । तमस्तमा । वह पूर्वानुपूर्वी है। पुवी॥ १८२. से कि तं पच्छाणुपुव्वी ? पच्छा अथ कि सा पश्चानुपूर्वी ? १८२. वह पश्चानुपूर्वी क्या है ? णुपुव्वी-तमतमा तमा धूमप्पभा पश्चानुपूर्वी --तमस्तमा तमा धूमप्रभा पश्चानुपूर्वी-तमस्तमा, तमा, धूमप्रभा, पंकप्पभा वालुयप्पभा सक्करप्पभा पङ्कप्रभा बालुकाप्रभा शर्कराप्रमा पंकप्रभा, बालुकाप्रभा, शर्कराप्रभा और रयणप्पभा । से तं पच्छाणुपुवी॥ रत्नप्रभा । सा एषा पश्चानुपूर्वी । रत्नप्रभा । वह पश्चानुपूर्वी है। १८३. से कि तं अणाणुपुवी? अणाणु अथ कि सा अनानुपूर्वी ? अनानु- १८३. वह अनानुपूर्वी क्या है ? पुवी-एयाए चेव एगाइयाए पूर्वी-एतया चैव एकादिकया एको- ___ अनानुपूर्वी-एक से प्रारम्भ कर एक-एक एगुत्तरियाए सत्तगच्छगयाए सेढोए तरिकया सप्तगच्छगतया श्रेण्या अन्यो- की वृद्धि करें। इस प्रकार सात तक की संख्या अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो। से तं न्याभ्यासः द्विरूपोनः । सा एषा का श्रेणी की पद्धति से परस्पर गुणाकार अणाणुपुवी॥ अनानुपूर्वी। करें। इससे जो भंगसंख्या प्राप्त हो, उसमें से दो (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) को निकाल देने से जो संख्या प्राप्त हो । वह अनानुपूर्वी है। १८४. तिरियलोयखेताणपुव्वी तिविहा तिर्यक्लोकक्षेत्रानुपूर्वी त्रिविधा १८४. तिर्यक् लोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन प्रकार पण्णत्ता, तं जहा-पुव्वाणुपुत्वी प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पूर्वानुपूर्वी पश्चानु- प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और पच्छाणुपुवो अणाणुपुवी॥ पूर्वी अनानुपूर्वी । अनानुपूर्वी। १८५. से कि तं पुवाणुपुव्वी ? पुवा- अथ कि सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानु- १८५. वह पूर्वानुपूर्वी क्या है ? णुपुवीपूर्वी पूर्वानुपूर्वी-जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, गाहा गाथा धातकीखण्ड द्वीप, कालोद-समुद्र , पुष्कर द्वीप, जंबुद्दीवे लवणे, जम्बूद्वीपं लवणः, वरुण समुद्र, क्षीर, घृत, इक्षु, नन्दी, अरुणधायइ-कालोय-पुक्खरे वरुणे। धातकी-कालोद-पुष्कराः वरुणः । वर, कुण्डलवर, रुचकवर। जम्बूद्वीप से खीर-घय-खोय-नंदी क्षीर-घृत-क्षोद-नन्दी रुचकवर तक के द्वीप और समुद्र परस्पर अरुणवरे कुंडले रुयगे ॥१॥ अरुणवरः कुण्डल: रुचकः ॥१॥ संलग्न हैं तथा रुचकवर से असंख्य द्वीप और जंबुद्दीवाओ खलु जम्बूद्वीपात् खलु समुद्रों के बाद भुजगवर द्वीप है। इसी प्रकार निरन्तरा सेसया असंखइमा। निरन्तराः शेषका: असंख्याततमा। कुसवर, क्रौञ्चवर, आभरण आदि द्वीपों के ... भुयगवर-कुसवरा वि य, मुजगवर-कुशवरौ अपि च, बीच में असंख्य द्वीप और समुद्रों का व्यवधान " कोंचवराजभरणमाईया ॥२॥ क्रौञ्चवराभरणादिका ॥२॥ है। आभरण, वस्त्र, गन्ध, उत्पल, तिलक, Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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