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________________ पांचवां प्रकरण : सूत्र १६६ - १७४ सव्वद्धा । एवं दोण्णि वि ॥ १७१. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणं अंतरं कालओ केवस्चिरं होइ ? एगद पच्च जहणणं एवं समयं उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं नाणादच्या पश्च नत्वि अंतरं । एवं दोणि वि ॥ । १७२. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई' सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा ? तिष्णि वि जहा दाणुबीए || १७३. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदवाई कवरम्मि भावे होता ? नियमा साइपारिणामिए भावे होज्जा । एवं दोणि वि ॥ १७४. एएसि णं नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाणं अणाणुपुवि दध्वाणं अवत्तव्वगदव्वाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठएसवाए कपरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया था ? सव्वत्योबाई नेगम-ववहाराणं अवत्तव्यगदव्वाइं दव्वट्टयाए, अणाणुविदाई पाए बिसेसाहियाई, आणु पुव्विदव्वाई दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणाई पएसटुयाए सन्वस्थ| - याई नेगम-ववहाराणं अणाणुपुविदाई अपएसट्र्याए, Jain Education International नम् । एवं द्व े अपि । नगम-व्यवहारयोः आनुपर्योप्रव्याणाम् अन्तरं कालतः किि कियच्चिरं भवति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य जयन्येन एवं समयम् उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् नानाइय्याणि प्रतीत्य नाहित अन्तरम् । एवं द्व े अपि । । जंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वी - द्रव्याणि शेषद्रव्याणां कति भागे भवन्ति ? त्रीणि अपि यथा द्रव्यानुपूर्व्याम् । नगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि कतरस्मिन् भावे भवन्ति ? नियमात् सारिवारिणामिके भावे भवन्ति । एवं द्वे अपि । एतेषां गम-व्यवहारयोः आयुपूर्वीद्रयाणाम् अनानुपूर्वीद्रव्याणाम् अवक्तव्यकद्रव्याणां च द्रव्यार्यतया प्रदेशार्थतया द्रव्यार्थ प्रदेशार्थतया कतरे कतरेभ्यः अल्पानि वा ? बहूनि वा ? त्यानि वा ? विशेषाधिकानि ? सस्तोकानि नेयम-व्यवहारयोः अवक्तव्यकद्रव्याणि व्याया अनापुचद्रव्याणि द्रयार्थतया विशेषा धिकानि आनुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्यार्यतथा असंख्येयगुणानि । प्रवेशार्थतया सर्वलोकानि अनानुद्रपाणि अवयव्याणि गम-व्यवहारयोः प्रदेशात प्रदेशार्थ तया For Private & Personal Use Only १२३ अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः सर्वकाल में होते हैं? नगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्यों का प्रतिपादन आनुपूर्वी द्रव्य की भांति करना चाहिए।* १७१. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों में कालकृत अन्तर कितना होता है ? एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्येय काल' तक होता है । अनेक द्रव्यों की अपेक्षा इनमें कालकृत अन्तर नहीं होता । अनानुपूर्वी द्रव्यों और अवक्तव्य द्रव्यों का प्रतिपादन आनुपूर्वी द्रव्यों की भांति करना चाहिए । १७२. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों के कितने भाग में होते हैं ? आनुपूर्वी द्रव्य, अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य तीनों ही द्रव्यानुपूर्वी की भांति होते हैं।" (देखें सूत्र १२८ ) । १७३. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य किस भाव में होते हैं ? वे नियमतः सादिपारिणामिक भाव में होते हैं । अनानुपुर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य भी नियमतः सादिपारिणामिक भाव में होते हैं ।" १७४. नैगम और व्यवहारनय सम्मत इन आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ की अपेक्षा कौन किससे अल्प, अधिक, समान या विशेषाधिक हैं ? नैगम और व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं, अनानुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से विशेषाधिक हैं, आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्येय गुण हैं । प्रदेशार्थं की अपेक्षा नंगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य अप्रदेशार्थं की अपेक्षा सबसे कम है, अवक्तव्य द्रव्य प्रदेशार्थ www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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