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________________ १२२ भागेसु होज्जा ? सव्वलोए होज्जा ? सर्वलोके भवन्ति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य एगदव्वं पच्च लोगस्स संखेज्जइ- लोकस्य संख्येयतमभागे वा भवन्ति, भागे वा होज्जा, असंखेज्जइमागे असंख्येयतमभागे वा भवन्ति, संख्येयेषु या होना, संसेज्जेमु भागे वा भागेषु वा भवन्ति, असंध्येयेषु भागेषु होज्जा, असंवेश्जे भागे वा वा भवन्ति, देशोने लोके वा भवन्ति । होज्जा, देने लोए वा होज्जा । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वनाणादव्वाइं पहुच्च । नियमा लोके भवन्ति । सव्वलोए होज्जा । नेगम-ववहाराणं अापुवि दव्वाणं 'पुच्छा। एगदव्वं पडुच्च नो संखेज्जइम होजा, असं भागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा सम्बलोए होज्जा एवं अवसव्यग दव्वाणि विभणियाण ॥ १६६. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदवाई लोगस्स कति भागं फुसंति - कि संखेज्जइभागं फुसंति ? असंखेज्जइभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे संति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? सव्वलोगं फुसंति ? एगदवं पहुच्च संखेज्जइ भागं वा फुसंति, असंखेज्जइभागं वा फुसंति, संखेज्जे भागे वा फुसंति, असंखेज्जे भागे वा फुसंति, देणं लोगं वा फुसंति । नाणा दवाई पच्च नियमा सव्वलोगं फुति । अणाणुपु विदव्वाइं अवत्तव्वदव्वा च जहा खेत्तं नवरं फुसणा भाणिया | १७०. नेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदवाई कालओ केचिचरं हाति ? एगदव्वं पडुच्च जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । नाणादव्वाई पडुच्च नियमा Jain Education International नगम-व्यवहारयोः अनानुपूर्वीद्रव्याणां पृच्छा । एकद्रव्यं प्रतीत्य मो सयममा भवन्ति, असंख्येयतमभागे भवन्ति, नो संख्येयेषु भागेषु भवन्ति, नो असख्येयेषु भागेषु भवन्ति, नो सर्वलोके भवन्ति । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वलोके भवन्ति । एवम् अवक्तव्यकद्रव्याणि अपि भणितव्यानि । नगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीप्रम्याणि लोकस्य कतिभागं स्पृशन्ति - कि संख्येयतमभागं स्पृशन्ति ? असंख्येयमचा स्पृशन्ति ? संख्ये वान् भागान् त? असंख्येयान् भावान् स्पृशन्ति ? सर्व लोकं स्पृशति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य संख्येयतमभागं वा स्पृशन्ति, असंख्येयतमभागं वा स्पृशन्ति, संख्येयान् भागान् वा स्पृशन्ति, असंख्येयान् भागान् वा स्पृशन्ति, देशोनं लोकं वा स्पृशन्ति । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वलोकं स्पृशन्ति अनानुपूर्वीयानि अवक्तव्यकद्रव्याणि च यथा क्षेत्रं नवरं स्पर्शना भणितव्या । नैगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि कालतः कियच्चिरं भवन्ति ? एकद्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन एकं समयम्, उत्कर्षेण असंख्येयं कालम् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य नियमात् सर्वाध्वा For Private & Personal Use Only अणुओगदाराई एक द्रव्य की अपेक्षा वे लोक के संख्यातवें भाग में हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में हैं, असंख्येय भागों में हैं अथवा देशोन ( कुछ न्यून) लोक में हैं ।" अनेक द्रव्यों की अपेक्षा के नियमतः समूचे लोक में हैं। नगम और व्यवहारनय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में हैं ? एक द्रव्य की अपेक्षा वे संख्यातवें भाग में नहीं हैं, असंख्यातवें भाग में हैं, संख्येय भागों में नहीं है, असंख्य भागों में नहीं हैं, समूचे लोक में नहीं हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक में हैं। इसी प्रकार अवक्तव्य द्रव्य भी पूर्ववत् जानना चाहिए । १६९. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग का स्पर्श करते हैं- क्या संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? असंख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं ? एक द्रव्य की अपेक्षा वे संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं, संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं, असंख्य भागों का अथवा कुछ कम लोक का स्पर्श करते हैं। अनेक द्रव्यों की अपेक्षा वे नियमतः समूचे लोक का स्पर्श करते हैं । अनानुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य भी क्षेत्र की भांति एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के असंख्येय भाग का और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा समूचे लोक का स्पर्श करते हैं । [ देखें -सूत्र १६८ ] । १७०. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की अपेक्षा से कितने समय तक होते हैं ? एक द्रव्य की अपेक्षा जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्येय काल तक होते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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