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________________ पांचवां प्रकरण : सूत्र १६०-१६८ १६४. से कि तं समोवारे ? समोवारेनेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाई कहि समोयरंति - कि आणुपुव्विGodह समोयरंति ? अणाणुपुव्विदेहिं समोयरंति ? अवत्तव्वयदहि समोयरंति ? नेगमयवहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं आणुपुव्विदव्वेहि समोयरंति, नो अणापुव्विदच्चेहि समोयरंति नो अवत्तव्यव्वेहिं समोयरंति । एवं दोण्णि वि सट्टाणे समोयरंति त्ति भाणियव्वं । से तं समोयारे ॥ 1 १६५. से किं तं अणुगमे ? अणुगमे नवविहे पण्णत्ते, तं जहागाहा १. संतपयपरूवणया २. दव्वपमाणं च ३. खेत्त ४. फुसणा य । ५. कालो य ६. अंतरं ७. भाग ८. नाव . अप्पाहं चैव ॥ १ ॥ १६६. नेगम-ववहाराणं आणुपुषिदवाई कि अत्थि ? नत्थि ? नियमा अस्थि ? एवं दोण्णि वि ।। १६७. नेगम-ववहाराणं आणुपुच्चि दवाई कि संखेज्जाई ? असंखे ज्जाई ? अनंताई ? नो संखेज्जाई, असंखेज्जा, मो अनंताई एवं दोण्णि वि ॥ १६८. नेगम-ववहाराणं आणवि दवाई लोगस्स कति भागे होज्जा - कि संसेजमागे होज्जा ? असंखेज्जइमाये होज्जा ? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा ? असंखेज्जेसु Jain Education International अथ कि स समवतारः ? समवतारःबतारः- नंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि क्व समवतरन्ति - किम् आनुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति ? अनानुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति ? अवक्तव्यकद्रव्येषु समवतरन्ति ? नंगमव्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि आनुपूर्वीद्रव्येषु समवतरन्ति, नो अनानुपूर्वीद्रव्येषु समचतरन्ति नो व्यकद्रव्येषु समवतरन्ति । एवं द्व े अपि स्वस्थाने समवतरतः इति भणितव्यम् । स एष समवतारः । अथ कि स अनुगमः ? नवविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथागाथा १. संतपद प्ररूपणा २. द्रव्यप्रमाणञ्च ३. क्षेत्रं ४. स्पर्शना च । अनुगमः ५. कालश्च ६. अन्तरं ७. भागः ८. भावः ९. अल्पबहु चैव ॥१॥ मंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि किम् अस्ति ? नास्ति ? नियमात् अस्ति । एवं द्वे अपि । यम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि कि संख्येयानि ? मसंख्येयानि ? अनन्तानि ? नो संख्येयानि, असंख्येयानि नो अनन्तानि एवं द्र अपि । मंगम-व्यवहारयोः आनुपूर्वीद्रव्याणि लोकस्य कतिचान्तिकि संख्येयतमभागे भवन्ति ? असंख्येयतमभागे भवन्ति ? संख्येयेषु भागेषु भवन्ति ? असंख्येयेषु भागेषु भवन्ति? For Private & Personal Use Only १२१ पादन करना चाहिए (देखें-सूत्र ११९) वह नैगम और व्यवहारनय सम्मत भंगोपदर्शन है । १६४. वह समवतार क्या है ? समवतार - नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य कहां समवतरित होते हैं ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं ? अनानुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं ? अथवा अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित होते हैं ? नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित होते हैं । अनानुपूर्वी द्रव्यों में समवतरित नहीं होते, अवक्तव्य द्रव्यों में समवतरित नहीं होते । इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी अपने-अपने स्थानों में समवतरित होते हैं। वह समवतार है । १६५. वह अनुगम क्या है ? अनुगम के नौ प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे३. क्षेत्र, १. सत्पदप्ररूपण, २. द्रव्यप्रमाण, ४. स्पर्शना, ५. काल, ६. अन्तर ७. भाग, ८. भाव, ९. अल्पबहुत्व । १६६. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य हैं अथवा नहीं ? नियमत: हैं । इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी नियमतः हैं । १६७. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य संख्येय हैं ? असंख्येय हैं ? अथवा अनन्त हैं ? वे संख्येय नहीं हैं, असंख्येय हैं, अनन्त नहीं हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी असंख्येय हैं । " - १६८. नैगम और व्यवहारनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में हैं क्या संख्यातवें भाग में हैं ? असंख्यातवें भाग में हैं ? संख्येय भागों में हैं ? असंख्येय भागों में हैं ? अथवा समूचे लोक में हैं ? www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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