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________________ भूमिका उपाश्रय में गए । आचार्य ने उनका स्वागत किया और वहां इसलिए मैं अनशन कर रहा हूं, तुम मुझे आराधना करवा दो। बताया कि तुम वज्रस्वामी के साथ एक उपाश्रय में मत रहना । तो वह मर जाता है । आर्यरक्षित वहां से प्रस्थान कर उसी रात को वज्रस्वामी ने स्वप्न देखा कि दूध से भरा हुआ पात्र है। किसी ने उसका बहुत दूध पी लिया और थोड़ा बचा है। स्वप्न का फल पूछने पर उन्हें बताया गया कि कोई बहुश्रुतग्राही अतिथि आएगा । वह पूर्वो का ज्ञान अधिकांश ले लेगा और कुछ नहीं ले पाएगा । आर्यरक्षित वज्रस्वामी के पास आए और द्वादशावर्तविधि से वन्दन किया। वज्रस्वामी ने पूछा- कहां से आए हो ? आरक्षित ने उत्तर दिया आचार्य तोसलि के पास से क्या तुम्हारा नाम आर्यरक्षित है ? वज्रस्वामी के ऐसा पूछने पर आरक्षित ने स्वीकृति दे दी । वज्रस्वामी ने उसका स्वागत किया और दृष्टिवाद का अध्यापन प्रारम्भ कर दिया। थोड़े ही समय में आर्यरक्षित ने नव पूर्व पढ़ लिए और दसवें पूर्व के २४ यव पढ़ लिए। उधर दशपुर नगर से आर्यरक्षित के माता पिता ने कहलाया कि तुम तो हमें भूल गए हो। हमारे लिए तो तुम ही प्रकाशपुञ्ज हो। तुम्हारे बिना सब कुछ तमोमय हो रहा है इसलिए एक बार यहां आ जाओ। ऐसा कहलाने पर भी अध्ययन में लीन होने से वे घर नहीं गए । कुछ समय बाद फल्गुरक्षित उन्हें बुलाने गया। आर्यरक्षित ने वज्रस्वामी से आज्ञा ली तो उन्होंने पढने का आदेश दिया। आर्यरक्षित ने भाई को दीक्षा लेने की प्रेरणा दी। प्रेरित हो फल्गुरक्षित ने वहीं दीक्षा स्वीकार कर ली । १५ ठहरने का अनुरोध करते हुए कहा- मेरा आयुष्य क्षीण हो रहा है, आर्यरक्षित ने स्वीकृति दे दी। आचार्य भद्रगुप्त ने आर्यरक्षित को सोपक्रम आयुष्य वाला व्यक्ति एक रात्रि भी उनके साथ रह जाता है वज्रस्वामी के पास पहुंचे । आर्यरक्षित ने जब दसवें पूर्व का सार्धं भाग पढ लिया तो उन्होंने फिर दशपुर जाने की आज्ञा मांगी पर वज्रस्वामी ने निषेध कर दिया। आर्यरक्षित पढ़ते-पढ़ते श्रान्त हो गए अतः पूछने लगे-अध्ययन कितना शेष रहा है ? वज्रस्वामी बोले- अभी तो बिन्दुमात्र पढा है, समुद्र जितना बाकी है । श्रान्त होने पर भी वे आचार्य की प्रेरणा से पुनः अध्ययन में संलग्न हो गए । पर वे दसवें पूर्व को पूरा नहीं पढ़ पाए । कालान्तर में फल्गुरक्षित के साथ आर्यरक्षित दशपुर नगर में गए। नगर के सब लोग आए और वन्दन कर बैठ गए । आर्यरक्षित ने देशना दी। राजा ने सम्यक्त्व ग्रहण किया । रुद्रसोमा और सोमदेव अनेक व्यक्तियों के साथ दीक्षित हो गए । आर्यरक्षित तेरह वर्ष तक युगप्रधान आचार्य रहे । इन्होंने अपने जीवनकाल में आगमों को अनुयोगों द्वारा विस्तृत बनाया। इनकी और कोई रचना उपलब्ध नहीं है पर मुनि कल्याणविजयजी वर्तमान दस सूत्रों की नियुक्तियों को आचार्य आर्यरक्षित की कृतियां मानने के पक्ष में हैं किन्तु उन्होंने अपने अभिमत को पुष्ट करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं दिया केवल संभावना मात्र प्रकट की है। इसलिए इस तथ्य को अभी तक प्रामाणिक नहीं माना जा सकता । आरक्षित और अनुयोग आर्य वज्रस्वामी तक अनुयोग का पृथक्करण नहीं था । प्रत्येक आगम सूत्र में चार अनुयोगों का प्रतिपादन था। आर्यरक्षित ने इस पद्धति में परिवर्तन किया। इसके निमित्त थे - दुर्बलिका पुष्यमित्र आर्यरक्षित के चार शिष्य प्रमुख थे दुर्बलिका पुष्यमित्र, फल्गुरक्षित, विन्ध्य और गोष्ठामाहिल । मुनि विन्ध्य ने आर्यरक्षित से निवेदन किया कि साथ में पढने से अध्ययन बहुत कम होता है। इसलिए कोई दूसरी व्यवस्था कर दीजिए । आरक्षित ने उसे अध्ययन कराने का भार दुर्बलिका पुष्यमित्र को सौंपा। कुछ दिन तो यह क्रम चलता रहा। पर एक दिन दुर्बलिका पुष्यमित्र ने आर्यरक्षित से निवेदन किया कि वाचना देने से मैं पूर्वो का प्रत्यावर्तन नहीं कर सकता अतः मेरा नौंवा पूर्व विस्मृत हो जाएगा । अब आपका जो आदेश हो वही करने के लिए उद्यत हूं । आरक्षित ने सोचा अब प्रज्ञा की हानि हो रही है अतः प्रत्येक आगम में चारों अनुयोगों को धारण करने वाले भविष्य में उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। इस विमर्श के बाद उन्होंने आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त कर दिया। उस अनुयोग व्यवस्था के आधार पर आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार है १. द्रयानुयोग २. चरणकरणानुयोग १. विभा २२८८ । देविदवं विएहिं महाणुभावह रखियज्जेहि । जुगमासज्ज विभत्तो अणुओगो तो वाओ चउहा ।। Jain Education International ३. गणितानुयोग ४. धर्मानुयोग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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