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________________ १०४ अणुओगदाराई सूत्र १३० २२. (सूत्र १३०) अल्पबहुत्व की विवक्षा द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ, द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ इन तीन दृष्टिकोणों से की गई है। द्रव्यार्थता की विवक्षा में एक-एक आनुपूर्वी द्रव्य की गणना होती है। प्रदेशार्थता की विवक्षा में प्रदेशों की गणना होती है, द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता की विवक्षा में द्रव्य और प्रदेश दोनों की गणना होती है। अवक्तव्य द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे अल्प हैं। इसका हेतु यह है-द्विप्रदेशी स्कन्धों को संघात और भेद के निमित्त कम मिलते हैं । इसलिए ये सबसे कम होते हैं। अनानुपूर्वी द्रव्य इनकी अपेक्षा विशेषाधिक होते हैं। इसका हेतु यह है कि परमाणु बहुतर द्रव्यों की उत्पत्ति में निमित्त बनते हैं । आनुपूर्वी द्रव्य इनसे असंख्य गुणा अधिक होते हैं, इसका हेतु है द्रव्य की प्रचुरता । तीन प्रदेश से आगे एक-एक प्रदेश बढ़ाते-बढ़ाते अनन्त प्रदेश तक चले जाते हैं। इस प्रकार इनके स्थान बहुत बन जाते हैं। इन्हें संघात और भेद के निमित्त भी बहुत मिलते हैं इसलिए ये सबसे अधिक हैं। चूर्णिकार ने इसे स्थापना के द्वारा समझाया है' (१,२,३,४) अवक्तव्य द्रव्य संघात और भेद करने पर (५) बनते हैं। अनानुपूर्वी द्रव्य भेद और संघात से (१०) बनते हैं । (प्रस्तुत टिप्पण के अन्त में देखें-स्थापना) अवक्तव्य द्रव्य में द्विप्रदेशी स्कन्ध और अनानुपूर्वी द्रव्य में परमाणु दोनों का एक-एक स्थान है। आनुपूर्वी द्रव्य में स्थान अनन्त हैं। इस अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य अनन्त गुणा अधिक होने चाहिए। किन्तु अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अनानुपूर्वी द्रव्य के अनन्तवें भाग जितने हैं। इसलिए वे अनन्त गुणा अधिक नहीं हो सकते। वास्तव में असंख्यात स्थान ही प्राप्त हो सकते हैं। इस अपेक्षा से असंख्यगुण अधिक बतलाए गए हैं। अवक्तव्य द्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्य से विशेषाधिक हैं। इसका हेतु यह है कि अनानुपूर्वी में दूसरा कोई प्रदेश नहीं होता और अवक्तव्य द्रव्य में दो प्रदेश होते हैं। आनुपूर्वी द्रव्य के स्थान बहुत होते हैं इसलिए वे प्रदेश की अपेक्षा उनसे अनन्त गुणा अधिक होते ___ द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा परमाणुओं और स्कन्धों का अल्पबहुत्व जानने के लिए भगवती का २५वां शतक (सूत्र १५१ से १५७) द्रष्टव्य है। स्थापना कल्पना करें चार द्रव्य हैं-एकप्रदेशी यावत् चतुष्प्रदेशी । अनानुपूर्वी द्रव्य--उपर्युक्त द्रव्यों के भेद से द्रव्यानुपूर्वी के अनानुपूर्वी द्रव्य बस बनेंगे अवक्तव्य द्रव्य–इन्हीं द्रव्यों को यदि संघात और भेद से स्थापित किया जाए तो अवक्तव्य द्रव्य पांच बनेंगे ०० आनुपूर्वी द्रव्य-इन्हीं द्रव्यों के विविध प्रकार के संघात भेदों से आनुपूर्वी द्रव्य चौदह बनेंगे ०० ४ .० . ०. ०० . ४ ४०० :० १४ ००००० ००००० ००००० ०००० १.अचू. पृ. २६ । २. उसुप. ३१७९ : सत्वत्पोवा अणंतपएसिया खंधा दग्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दब्वट्ठयाए अणंतगणा। ३. अमव. प.६२। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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