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प्र०४, सू० १२५-१२६ टि० १६-२१
१०३ अथवा तीन परमाणु के रूप में चला जाता है। फिर वे तीनों परमाणु मिलकर त्रिप्रदेशी स्कन्ध के रूप में आते हैं। उनके मध्य का कालमान अन्तर कहलाता है।'
आनुपूर्वी द्रव्य का जघन्य अन्तरकाल एक समय का बतलाया गया है। त्रिप्रदेशी आदि स्कन्धों से एक परमाणु बिछुड़ गया। एक समय वह स्कन्ध से अलग रहा, वापस उसी स्कन्ध में आ मिला। इस अपेक्षा से जघन्य अन्तरकाल एक समय का हो जाता है।
आनुपूर्वी द्रव्य का उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है। एक त्रिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध है, उसके परमाणु बिखर गए। वे कभी परमाणु बने रहे, कभी स्कन्ध के साथ मिल गए, इस प्रकार अनेक रूपों का परिवर्तन करते रहे। अनन्तकाल के पश्चात् किसी प्रयोग अथवा स्वभाव से पुनः अपने मूल रूप में आ गए। अनन्तकाल के पश्चात् नियमत: मूल रूप का निर्माण होता है, इस अपेक्षा से उसका उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल है।
अवक्तव्य द्रव्य के लिए भी यही नियम लागू होता है। अनानुपूर्वी द्रव्य का जघन्य अन्तरकाल एक समय है। एक परमाणु किसी अन्य परमाणु (अनानुपूर्वी द्रव्य) या स्कन्ध (आनुपूर्वी या अव्यक्तव्य द्रव्य) के साथ जा मिला। एक समय उस स्थिति में रहकर फिर बिछुड़ गया। इस अपेक्षा से उसका जघन्य अन्तरकाल एक समय का है।
अनानुपूर्वी द्रव्य का उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यकाल है। एक परमाणु किसी परमाणु अथवा त्रिप्रदेशी आदि स्कन्धों से संयुक्त हो गया। वह उनके साथ असंख्यकाल तक ही रह सकता है। यह एक सार्वभौम नियम है। असंख्यकाल के पश्चात् उसे परमाणु रूप में लौटना ही होता है। इस अपेक्षा से अनानुपूर्वी द्रव्य का उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यकाल बतलाया गया है।
हेमचन्द्र ने इस विषय में व्याख्याप्रज्ञप्ति के नियम का उल्लेख किया है।'
व्याख्याप्रज्ञप्ति में पुद्गल की एकरूप विषयक कालावधि का नियम है। गौतम ने पूछा-भंते ! एक परमाण एक परमाणु के रूप में उत्कर्षतः कितने काल तक रह सकता है ? महावीर ने उत्तर दिया-एक परमाणु परमाणु रूप में उत्कर्षतः असंख्यकाल तक रह सकता है इसके पश्चात् उसका रूपान्तरण अनिवार्य है। यही नियम द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक लागू होता है।'
सूत्र १२८ २०. (सूत्र १२८)
आनुपूर्वी द्रव्य सबसे अधिक हैं। इसलिए वे शेष द्रव्यों की अपेक्षा असंख्यात भागों में अधिक हैं। अनानुपूर्वी द्रव्य तथा अवक्तव्य द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों के असंख्यातवें भाग जितने हैं ।
सूत्र १२९ २१. निश्चित रूप से सादिपारिणामिक (नियमा साइपारिणामिए)
पारिणामिक भाव के दो प्रकार होते हैं-सादिपारिणामिक और अनादिपारिणामिक ।' धर्मास्तिकाय आदि जो अमूर्त द्रव्य हैं, वे अनादि पारिणामिक हैं, मूर्त द्रव्यों में सादि पारिणामिक भाव होता है, जैसे-बादल, इन्द्रधनुष आदि। आनुपूर्वी आदि द्रव्य नियमतः सादि पारिणामिक होते हैं क्योंकि इनकी उत्कृष्ट स्थिति असंख्यकाल है।
१. अहाव. पृ. ३६ : इह व्यादिस्कन्धास्त्यादिस्कन्धतां विहाय
पुनवता कालेन त एव तथा भवंतीत्यसावन्तरम् । २. वही, पृ. ३६,३७ । ३. अमवृ. प.८६ : प्रस्तुतसूत्रे व्याख्याप्रज्ञप्त्यादिषु च परमाणोः
पुनः परमाणुभवनेऽसंख्ययरूपस्यैवान्तरकालस्योक्तत्वात् । ४. अंसुभ. ५॥६९ : परमाणुपोग्गले णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं । एवं जाव अणंतपएसिओ ॥
१. अहाव. पृ. ३८ : इह परिणाम: द्विविधः-सादिरनादिश्च, तत्र धर्मास्तिकायादिद्रव्यादिष्वनादिपरिणामः रूपिद्रव्येज्वादिमांस्तद्यथा अभ्रेन्द्रधनुरादिपरिणाम इत्येवमवस्थिते सतीद निर्वचनसूत्र ‘णियमा' इत्यादि नियमेन अवश्यं नया सादिपारिणामिके भावे भवन्ति तथा परिणतेरनादित्वाभावाद्, उत्कृष्टतो द्रव्याणां विशिष्टैकपरिणामत्वेनासंख्येयकालस्थितेः ।
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