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अणुओगदाराई
१. आकाश की विचित्र अवगाहक्षमता। २. पुद्गल की सूक्ष्म परिणति ।
स्थूल जगत् के नियम के अनुसार यह संभव नहीं है किन्तु सूक्ष्म जगत के नियम स्थूल जगत में घटित नहीं होते। १६. एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में होता है। (एगबव्वं पडुच्च लोगस्स"असंखेज्जइभागे वा
होज्जा)
परमाणु एक प्रदेश का ही अवगाहन करता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध एक प्रदेश का भी अवगाहन कर सकता है। अधिक से अधिक दो प्रदेशों का अवगाहन कर सकता है। इसलिए अनानुपूर्वी और अबक्तव्य द्रव्य लोक के असंख्यातवें भाग में ही अवस्थित होते हैं।
सूत्र १२५ १७ स्पर्शना करते हैं (फुसंति)
परमाणु एक प्रदेश का अवगाहन करता है। उसकी स्पर्शना आकाश के सात प्रदेशों की होती है। प्रश्न उपस्थित होता है यदि सात आकाश प्रदेशों की स्पर्शना हो तो अणु का एकत्व या अविभाज्यत्व खण्डित हो जाता है, वह निरंश नहीं रह पाता। जिसका दिग्भाग होता है उसका एकत्व युक्तिसंगत नहीं है। इस संशय का समाधान यह है कि स्पर्शना के द्वारा परमाणुओं के अंशों का निर्देश नहीं किया जा रहा है बल्कि उनका आकाश के साथ निरन्तर अथवा अन्तर रहित स्पर्श का निर्देश किया जा रहा है।
सूत्र १२६ १८. (सूत्र १२६)
दो या तीन परमाणु संयुक्त होकर स्कन्ध का निर्माण करते हैं, वे एक समय तक स्कन्ध रूप में रहकर फिर वियुक्त हो जाते हैं । इस अवस्था में आनुपूर्वी द्रव्य और अवक्तव्य द्रव्य की जघन्य स्थिति एक समय की बनती है।
सामान्यतः परमाणु स्कन्ध का कारण माना जाता है। किन्तु अनेकान्त दृष्टि से परमाणु कार्य भी है। अकलंक ने उसकी 'कार्य' अवस्था पर अनेकान्त दृष्टि से विचार किया है। परमाणु स्कन्ध से वियुक्त होकर पुनः परमाणु अवस्था में लौट आता है। इस आधार पर परमाणु के कार्य होने का सिद्धान्त स्थापित हो सकता है।
एक परमाणु स्कन्ध से वियुक्त होकर एक समय तक परमाणु रूप में रहता है, फिर संयुक्त होकर स्कन्ध बन जाता है । इस अवस्था में अनानुपूर्वी द्रव्य की जघन्य स्थिति एक समय की बनती है। कोई भी स्कन्ध असंख्यकाल के पश्चात् वर्तमान रूप में नहीं रहता। वह या तो वियुक्त हो जाता है या अन्यान्य परमाणुओं अथवा स्कन्धों से संयुक्त हो जाता है। इस नियम के अनुसार स्कन्ध की एकरूपता असंख्यकाल से अधिक नहीं रह सकती। परमाणु (अनानुपूर्वी द्रव्य) के लिए भी यही नियम है। परमाणु भी असंख्यकाल के पश्चात् अवश्य संयुक्त हो जाता है।'
सूत्र १२७ १६. (सूत्र १२७)
एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध है। वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध के रूप को छोड़कर द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक परमाणु के रूप में चला जाता
१. अहावृ. पृ. ३५ : अनानुपूर्वाअवक्तव्यकद्रव्ये तु एक द्रव्यं
प्रतीत्यासंख्येयभाग एव वर्तन्ते, न शेषभागेषु, यस्पात्परमाणुरेकप्रदेशावगाढ़ एव भवति, अवक्तव्यक स्वेकप्रदेशाव
गाढं द्विप्रदेशावगाढं च । २. (क) अहावृ. पृ. ३५: यथेह परमाणोरेकप्रदेश क्षेत्र
सप्तप्रदेशा स्पर्शनेति, स्यादेतत्-एवं सत्यणोरेकत्वं हीयत इति, उक्तं च 'दिग्भागभेदो यस्यास्ति,
तस्यैकत्वं न युज्यते' इत्येतदयुक्तं, अभिप्रायापरिज्ञामात्, नह्य शत: स्पर्शना नाम काचिद्, अपि तु
नरन्तयमेव स्पर्शनां बूम इति । (ख) अमवृ. प. ५६,५७ । ३. तवा. २ पृ. ४९२ : द यणकादिकार्यप्रादुर्भावनिमित्तत्वात्
स्यात्कारणमणः, भेदानुपजायत इति स्यात्कायम् । ४. अहाव. पृ. ३५।
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