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________________ प्र० ४, सू० ११५-१२१, टि०७-१२ ४००० सूत्र ११७ ११. (सूत्र ११७) प्रस्तुत सूत्र में नैगम और व्यवहार सम्मत आनुपूर्वी आदि द्रव्यों के एकवचन, बहुवचन तथा असंयोगिक. द्विकसंयोगी तथा त्रिसंयोगी भंगों का वर्णन किया गया है, वे कुल २६ होते हैं । एकवचनान्त भंग१. आनुपूर्वी १ २० २. अनानुपूर्वी १ ० ३. अवक्तव्यक १ .. बहुवचनान्त भंग४. आनुपूर्वियां ३ ५. अनानुपूर्वियां ३ ६. अवक्तव्यक ३ द्विकसंयोगी भंग७. आनुपूर्वी १ अनानुपूर्वी १ ८. आनुपूर्वी १ अनानुपूर्वियां ३ ९. आनुपूर्वियां ३ अनानुपूर्वी १ १० आनुपूर्वियां ३ अनानुपूर्वियां ३ ११. आनुपूर्वी १ अवक्तव्यक १ १२. आनुपूर्वी १ अवक्तव्यक ३ १३. आनुपूर्वियां ३ अवक्तव्यक १ १४. आनुपूवियां ३ अवक्तव्यक ३ १५. अनानुपूर्वी १ अवक्तव्यक १६. अनानुपूर्वी १ अवक्तव्यक३ १७. अनानुपूर्वियां ३ अवक्तव्यक १ १८. अनानुपूवियां ३ अवक्तव्यक ३ त्रिक संयोगी भंग१९. आनु० १ अना०१ अव०१:० २०. आनु०१ अना०१ अव०३ २१. आनु०१ अना० ३ अव०१ २२. आनु० १ अना० ३ अव०३ २३. आनु० ३ अना० १ अव०१ २४. आनु० ३ अना० १ अव०३ २५. आनु० ३ अना०३ अव०१० २६. आनु० ३ अना० ३ अव०३० ०००० ० ० ००० ० ० ०००००००० ० ० ०००००००० ० ० ० ०००००००००००००० ० ० ० ० ० ०००००००० ० ० ० सूत्र १२१ १२. (सूत्र १२१) किसी भी वस्तु को जानने के लिए जिन न्यूनतम पक्षों को जानना आवश्यक है, प्रस्तुत सूत्र में उनका निर्देश किया गया है। सर्वप्रथम वस्तु के अस्तित्व और नास्तित्व पर विचार करना जरूरी है। यदि वह सत् है, उसका अस्तित्व है तो फिर उसके द्रव्यप्रमाण पर विचार करना आवश्यक है। द्रव्यप्रमाण जानने पर उसके आधार-क्षेत्र और स्पर्शना को जानना आवश्यक है। क्षेत्रज्ञान के पश्चात् कालावधि का ज्ञान जरूरी है। द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। स्वभाव का परिवर्तन होता रहता है इसलिए एक स्वभाव को छोड़कर वह दूसरे स्वभाव में चला जाता है और कुछ समय के बाद पुनः उस पूर्व स्वभाव में चला जाता हैदोनों स्वभावों का अन्तर-काल जानना बहुत उपयोगी है। हमारे लोक में केवल एक ही द्रव्य नहीं है इसलिए यह विचार भी Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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