________________
अणुओगदाराई
शिक्षा या व्याख्यापद्धति का चौथा अंग है-समवतार। समवतार अर्थात् अपनी जाति में होने वाला अंतर्भाव या अवतरण ।' अविरुद्ध अवतरण अपनी जाति में ही होता है। आनुपूर्वी द्रव्यों का समवतार आनुपूर्वी द्रव्यों में ही होता है, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों में नहीं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी द्रव्यों का समवतार अनानुपूर्वी द्रव्यों में तथा अवक्तव्य द्रव्यों का समवतार अवक्तव्य द्रव्यों में होता है।
__ शिक्षा अथवा व्याख्या पद्धति का पांचवां अङ्ग है-अनुगम। अनुगम का अर्थ है-आनुपूर्वी आदि विवेच्य विषयों की सत्, द्रव्य, क्षेत्र आदि अनेक कोणों से व्याख्या करना।
सूत्र ११५ ७. त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी (तिपएसिए आणुपव्वी)
आनुपूर्वी के लिए कम से कम तीन प्रदेश (तीन अवयव) अपेक्षित हैं। दो अवयवों में आनुपूर्वी अथवा क्रमयोजना संभव नहीं। जिस वस्तु में आदि, मध्य और अन्त-ये तीन होते हैं, उसी में क्रम की व्यवस्था बनती है। द्विप्रदेशी स्कन्ध में अन्तिम परमाणु की अपेक्षा प्रथम परमाणु आदि है और प्रथम की अपेक्षा दूसरा परमाणु अन्तिम है। जिससे पहले कोई नहीं है वह आदि है। जिसके पहले कोई है पर बाद में नहीं है वह अन्तिम होता है। इसके बीच में एक मध्यवर्ती की अपेक्षा रहती है जो इनके आदित्व और अन्तत्व को अपना साक्ष्य देता है। अतः आनुपूर्वी के लिए कम से कम त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होना आवश्यक है।' ८. परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी (परमाणुपोग्गले अणाणपुव्वी)
एक परमाणुपुद्गल में आनुपूर्वी (क्रम) नहीं होती। आनुपूर्वी वहां होती है जहां कम से कम तीन अवयव हों-आदि, मध्य और अन्त हो। जहां एक ही वस्तु हो वहां क्रम-उत्क्रम का प्रश्न ही नहीं उठता, अतः परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी है। इसमें पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी दोनों ही नहीं होती है।' ९.द्विप्रदेशिक अवक्तव्य (दुपएसिए अवत्तव्वए)
द्विप्रदेशिक द्रव्य 'अवक्तव्य' कहलाता है। इस द्रव्य के दो प्रदेशों में आदि, अन्त का व्यवहार सापेक्ष है। मध्यवर्ती द्रव्य की अपेक्षा आदि, अन्त मुख्य होते हैं। मध्य भाग ही नहीं होगा तो आदि और अन्त का आधार क्या होगा? दो प्रदेशों में आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी दोनों घटित नहीं होती। इसलिए इन दोनों की अपेक्षा वह अवक्तव्य है।
क्रम की दृष्टि से पहले अनानुपूर्वी, फिर अवक्तव्य और फिर आनुपूर्वी होती है। फिर भी विषय की बहुलता और अल्पता के आधार पर यह क्रम-भेद हुआ है ऐसा अनुमान किया जा सकता है। आनुपूर्वी द्रव्य अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों से अधिक हैं। अनानुपूर्वी द्रव्य अल्प और अवक्तव्य द्रव्य अल्पतर हैं। १०. त्रिप्रदेशिक आनुपूवियां (तिपएसिया आणुपुवीओ)
तीन प्रदेश वाली आनुपूर्वी और तीन प्रदेश वाली आनुपूर्वियां इन दोनों में पहला पद एकवचनान्त तथा दूसरा पद बहुवचनान्त है। एकवचनान्त पद एक और बहुवचनान्त पद अनेक द्रव्यों का सूचक है। नैगम और व्यवहारनय भेद को मान्य करते हैं इसलिए आनुपूर्वी के बहुवचन का प्रयोग किया गया है।
१. (क) नसुअ. १२०। (ख) अहाव. पृ. ३२: समवतार:-इहानुपूर्वीद्रव्याणां
स्वस्थानपरस्थानसमवतारान्वेषणाप्रकारः। २. (क) अहावृ. पृ. ३२ : आनुपूर्व्यादीनामेव सत्पदप्ररूपणा
दिभिरनुयोगद्वारैरनेकधाऽनुगमनं अनुगमः । (ख) अमवृ. प. ४८। ३. अहाव. पृ. ३२ : सम्बन्धिशब्दा हते परस्परसापेक्षाः प्रवर्तन्त इति यत्रषो मुख्यो व्यपदेश्यव्यपदेशकभावोऽस्ति अयमस्यादिरयमस्यान्त इति तत्रानुपूर्वीव्यपदेश इति, त्रिप्रदेशादिषु सम्भवति नान्यत्रेति ।। ४. अहाव. पृ. ३२: यः पुनरसंसक्त रूपं केनचिद् वस्त्वन्तरेण
शुद्ध एव परमाणुस्तस्य द्रव्यतः अनवयवत्वात् आविमध्यावसानत्वाभावात् अनानुपूर्वीत्वम् । ५. अहावृ. पृ. ३२ : यस्तु द्विप्रदेशिक: स्कन्धस्तस्याप्याद्यन्तव्यपदेश: परस्परापेक्षयाऽस्तीतिकृत्वा अनानुपूवित्वमशक्यं प्रतिपत्तुं, अयान पूवित्वं प्रसक्त तदपि चावधिभूतवस्तुरूपस्यासंभवात् अपरिपूर्णत्वात् न शक्यते वक्तुमिति, उमाभ्यामवक्तव्यत्वात् अवक्तव्यकमुच्यते । ६. वही, पृ. ३२,३३ : आनुपूर्वीद्रव्यबहुत्वज्ञापनार्थ स्थान
बहुजापनार्थ चादावानुपूा उपन्यासः, ततोऽल्पतरखव्यस्वादवक्तव्यकस्येति।
For Private & Personal Use Only
Jain Education Intemational
www.jainelibrary.org