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________________ १. (सूत्र १०० ) ७६ वें सूत्र में उपक्रम के छह प्रकार बतलाए जा चुके हैं। प्रस्तुत सूत्र में प्रकारान्तर से उसके छह प्रकार बतलाए गए हैं। जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण ने उपक्रम के पूर्ववर्ती छह प्रकारों को गुरुभावोपक्रम बतलाया है। प्रस्तुत सूत्र में निर्दिष्ट विकल्पों को शास्त्रीय भावोपक्रम कहा है।' आचार्य हरिभद्र ने आचार्य जिनभद्रगणि का ही अनुसरण किया है । " उपक्रम के पूर्वोक्त छह प्रकारों को ग्रन्थ का शरीर परामर्श अथवा बहिरंग परामर्श कहा जा सकता है । प्रस्तुत सूत्र में उपक्रम के निर्दिष्ट छह प्रकार शास्त्र की आत्मा का अथवा उसके अन्तरंग का परामर्श करने वाले हैं। १. आनुपूर्वी का विवरण - सूत्र १०१ से २४५ । २. नाम का विवरण सूत्र २४६ से ३६८ । ३. प्रमाण का विवरण – सूत्र ३६९ से ६०४ । ३. (सूत्र १०५ ) टिप्पण सूत्र १०० २. (सूत्र १०१ ) प्रस्तुत सूत्र में आनुपूर्वी के दस प्रकार बतलाए गए हैं। इनमें से नामानुपूर्वी स्वापनानुपूर्वी द्रव्यानुपूर्वी और भावानुपूर्वीये चार आनुपूर्वी के निक्षेपात्मक रूप को प्रस्तुत करने वाले हैं। क्षेत्रानुपूर्वी और कालानुपूर्वी में भी निक्षेप का प्रयोग है। शेष चार प्रकार आनुपूर्वी के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत हैं । अनुपूर्वभाव, आनुपूर्वी, अनुक्रम और अनुपरिपाटी - ये चारों शब्द एकार्थक हैं। तीन प्रदेश आदि वस्तु-संहति से आनुपूर्वी की योजना होती है । पदार्थ संरचना को जानने के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्धान्त है । सूत्र १०५ ४. (सूत्र १११) नुपू के दो १. औपनिधिकी 'द्रव्यानुपूर्वी २. अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी । द्रव्य छह होते " धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय और काल' द्रव्यानुपूर्वी का प्रयोजन द्रव्य की संरचना का क्रम और द्रव्य का क्रम बतलाना है, किन्तु यहां द्रव्य की संख्या विवक्षित नहीं है । अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी में पुद्गल द्रव्य की संरचना का क्रम बताया गया है।" औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी में छहों द्रव्यों का क्रम और वैकल्पिक रूप से पुद्गल द्रव्य की संरचना का क्रम बताया गया है । ' सूत्र १११ ४. वक्तव्यता का विवरण सूत्र ६०५ से ६०९ । ५. अर्थाधिकार का विवरण सूत्र ६१० । ६. समवतार का विवरण सूत्र ६११ से ६१७ । सूत्र १०१ Jain Education International १. विभा. ९३९ : गुरुमावोवक्कमणं कयमज्झयणस्स छविहमियाणि । तत्थ पुरवाईसुं इदमज्झयणं २. अहा . ३० यद् वा प्रशस्तो द्विविधः क्रमः शास्त्रभावोपक्रमश्च । समोयारे ॥ गुरुमायोप २. अहा . ३०: अनुपूर्वभाव: आनुपूर्वी अनुक्रमोपरिपाटीति पर्यायाः व्यादिवस्तुसंहतिरिति भावः । ४. नसुअ. १४८ । ५. वही, ११३ से १४६ । ६. वही, १४७ से १५४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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