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________________ चौथा प्रकरण : सूत्र १४६ - १५४ १५१ अरवा ओवणहिया दव्वाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा वाणपृथ्वी पछाणपुथ्यो अमाणुपुथ्वी ॥ १५२ से कि तं पुरवावी? पुण्यापुण्वी परमाणुयोग्यले दुपए सिए तिपएसिए जाव दसपएसिए संखेज्जपए लिए असंखेन्जप लिए अनंतपएसए से तं पुच्दाणु पुव्वी ॥ । १५३. से किं तं पच्छाणुपुथ्वी ? पच्छाणुपुवी -- अनंतपएसिए असंलेज्जपएसए संजयएसिए दसपए लिए जाव पिएसिए टुपएसिए परम पोले । से तं पच्छावी ॥ १५४. से कि तं अष्णाणुपुथ्वी ? अणाणुपृथ्वी- एयाए चैव एमाइयाए एगुलरियाए अनंतगच्छगयाए सेडीए अण्णमण्णमासो दुरूवणो । से तं अणाणपथ्वी से तं ओवणिहिया दव्वाणपृथ्वी से । तं जाणगसरीर भवियसरीरवतिरिता दयाणुपुच्चो से तं नोआगमओ दव्वाणुपुव्वो । से तं दवावी ॥ Jain Education International अथवा औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा पूर्वानु पूर्वी परवानुपूर्वी अनापूर्वी । अथ कि सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वानु पूर्वी परमाणुपुदगलः द्विप्रवेशिका त्रिप्रदेशिकः यावत् दशप्रदेशिकः संख्येयप्रदेशिकः असंख्येयप्रदेशिकः अनतप्रदेशिकः स एषा पूर्वानु । पूर्वी । अथ कि सा पश्चानुपूर्वी ? पश्चानपूर्वी अनादेशिक असंस्पेयप्रदेशिक संदेश द संध्येयप्रदेशिक : प्रवेशिकः यावत् त्रिप्रवेशिकः द्विप्रदे शिकः परमाणुपुद्गलः । सा एषा पश्चानुपूर्वी । : - असा जनानपूर्वी ? अनापूर्वी एतया चैत्र एकादिया एकोत्तरिकया अनन्तगच्छ्रगतया श्रेण्या अन्योन्याभ्यासः द्विरूपोनः । सा एषा अनानुपूर्वी सा एषा औपनिधिकी द्रयानुपूर्वी सा एषा शरीरज्ञशरीरमध्यशरीर-व्यतिरिक्ताध्यानुपूर्वी सा एषा नोआगमतो द्रव्यानुपूर्वी । स एषा त्यापूर्वी ॥ । । For Private & Personal Use Only ६५ १५१. अथवा औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी । १५२. वह पूर्वानुपूर्वी क्या है ? , पूर्वानुपूर्वी परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक, विदेशिकवादप्रदेशिक संख्येयप्रदेशिक, असंख्येयप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक । वह पूर्वानुपूर्वी है । १५२. वह पश्चानुपूर्वी क्या है ? पश्चानुपूर्वी अनन्तप्रदेशिक असंख्येयप्रदेशिक संख्येयप्रदेशिक, दसप्रदेशिक सम्वत् त्रिप्रदेशिक, द्विप्रदेशिक और परमाणुपुद्गल । वह पश्चानुपूर्वी है । १५४. वह अनानुपूर्वी क्या है ? अनानुपूर्वी -- एक से प्रारम्भ कर एक-एक की वृद्धि करें। इस प्रकार अनन्त की संख्या का श्रेणी की पद्धति से परस्पर गुणाकार करें। इससे जो भंगसंख्या प्राप्त हो, उसमें से दो (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) को निकाल देने से जो संख्या प्राप्त हो, वह अनानुपूर्वी है । वह औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी है । वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी है । वह नोआगमतः द्रव्यानुपूर्वी है। वह द्रानुपूर्वी है। www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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