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- अणुओगदाराई होज्जा ?नो संखेज्जइभागे होज्जा, न्ति ? नो संख्येयतमभागे भवन्ति, वे संख्यातवें भाग में नहीं होते, असंख्यातवें नो असंखेज्जइभागे होज्जा, नो नो असंख्येयतममागे भवन्ति, नो भाग में नहीं होते, संख्येय भागों में नहीं संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो संख्येयेषु भागेषु भवन्ति, नो असं- होते, असंख्येय भागों में नहीं होते, वे नियमतः असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नियमा ख्येयेषु भागेषु भवन्ति, नियमात् एक तिहाई भाग में होते हैं। इसी प्रकार तिभागे होज्जा। एवं दोणि त्रिभागे भवन्ति । एवं वे अपि । अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी एक वि ॥
तिहाई भाग में होते हैं ।२५ १४६. संगहस्स आणुपुग्विदव्वाई संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि कतर- १४६. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य किस भाव
कयरम्मि भावे होज्जा ? नियमा स्मिन् भावे भवन्ति ? नियमात में होते हैं ? साइपारिणामिए भावे होज्जा। सादिपारिणामिके भावे भवन्ति । एवं वे नियमतः सादि-पारिणामिक भाव में एवं दोणि वि। अप्पाबहुं नस्थि। अपि । अल्पबहु नास्ति । स एष होते हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और से तं अणुगमे । से तं संगहस्स अनुगमः । सा एषा संग्रहस्य अनौप- अवक्तव्य द्रव्य भी नियमतः सादि-पारिणाअणोवणिहिया दव्याणपुवी। से निधिको द्रव्यानुपूर्वी। सा एषा मिक भाव में होते हैं। इनमें अल्पबहुत्व नहीं तं अणोवणिहिया दव्वाणुपुवी ॥ अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी।
होता । वह अनुगम है । वह संग्रह की अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी हैं। वह अनौपनिधिको
द्रव्यानुपूर्वी है। ओवणिहिय-दव्वाणुपुत्वी पदं
औपनिधिको-द्रव्यानुपूर्वी-पदम् औपनिधिकी-द्रव्यानुपूर्वी-पद १४७. से कि तं ओवणिहिया दव्वाणु- अथ किं सा औपनिधिको द्रव्या- १४७. वह औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? पुवी ? ओवणिहिया दव्वाणु- नुपूर्वी ? औपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी
औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के तीन प्रकार पुवी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा- त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-पूर्वानु- प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पूर्वानुपूर्वी, पश्चानुपूर्वी और पुव्वाणुपुवी पच्छाणुपुत्वी अणाणु- पूर्वी पश्चानुपूर्वी अनानुपूर्वी ॥ अनानुपूर्वी ।
पुवी। १४८.से कि तं पुवाणुपुवी? पुवाणु- अथ कि सा पूर्वानुपूर्वी ? पूर्वा- १४८. वह पूर्वानुपूर्वी क्या है ?
पुवी-धम्मत्थिकाए अधम्मत्थि- नुपूर्वी-धर्मास्तिकाय: अधर्मास्ति- पूर्वानुपूर्वी-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काए आगासस्थिकाए जीवस्थिकाए। काय: आकाशास्तिकाय: जीवास्ति- आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलापोग्गलत्थिकाए अद्धासभए। से तं कायः पुद्गलास्तिकाय: अध्वासमयः । स्तिकाय और अध्वासमय । वह पूर्वानुपूर्वी पुवाणुपुब्बी॥
सा एषा पूर्वानुपूर्वी। १४६. से कि तं पच्छाणुपुवी? अय कि सा पश्चानुपूर्वी ? १४९. वह पश्चानुपूर्वी क्या है ?
पच्छाणुपुवी-अद्धासमए पोग्गल- पश्चानुपूर्वी -अध्वासमयः पुद्गला- पश्चानुपूर्वी -- अध्वासमय, पुद्गलास्तिकाय, त्यिकाए जोवस्थिकाए आगासत्थि- स्तिकायः जीवास्तिकायः आकाशा- जीवास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, अधर्मास्तिकाए अधम्मस्थिकाए धम्मत्थि- स्तिकायः अधर्मास्तिकायः धर्मास्ति- काय और धर्मास्तिकाय । वह पश्चानुपूर्वी
काए। से तं पच्छाणुपुत्वो॥ कायः । सा एषा पश्चानुपूर्वी । १५०.से कि तं अणाणपव्वी ? अथ कि सा अनानुपूर्वी ? अनानु- १५०. वह अनानपर्वी क्या है ? अणाणपुब्बी-एयाए चेव एगाइ- पूर्वी-एतया चैव एकादिकया एको
अनानुपूर्वी -- एक से प्रारम्भ कर एक-एक याए एगुत्तरियाए छगच्छगयाए तरिकया षड्गच्छगतया श्रेण्या अन्यो
की वृद्धि करें। इस प्रकार छह तक की संख्या सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवणो। न्याभ्यासः द्विरूपोनः । सा एषा
का श्रेणी की पद्धति से परस्पर गुणाकार से तं अणाणुपुवी॥ अनानुपूर्वी।
करें। इससे जो भंगसंख्या प्राप्त हो, उसमें से दो (पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी) को निकाल देने से जो संख्या प्राप्त हो, वह अनानुपूर्वी है।
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