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________________ चौथा प्रकरण : सूत्र १३७-१४५ १४१. संगहस्स आणुपव्विदव्वाइं संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि १४१. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के लोगस्त कति भागे होज्जा–कि लोकस्य कति भागे भवन्ति-कि कितने भाग में होते हैं - क्या संख्यातवें भाग संखेज्जइभागे होज्जा ? असंखे- संख्येयतमभागे भवन्ति ? असंख्ये- मे होते है ? असंख्यातवें भाग में होते हैं ? संख्येय ज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु यतमभागे भवन्ति ? संख्येयेषु भागों में होते हैं ? असंख्येय भागों में होते भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागे भागेषु भवन्ति ? असंख्येयेषु भागेषु है ? अथवा समूचे लोक में होते हैं ? होज्जा? सव्वलोए होज्जा ? नो भवन्ति ? सर्वलोके भवन्ति ? नो । __ संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य संख्यातवें संखेज्जइभागे होज्जा, नो असंखे- संख्येयतमभागे भवन्ति, नो असंख्ये- भाग में नहीं होते, असंख्यातवें भाग में नहीं ज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु यतमभागे भवन्ति, नो संख्येयेषु होते, संख्येय भागों में नहीं होते, असंख्येय भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेषु भवन्ति, नो असंख्येयेषु भागों में नहीं होते, वे नियमतः समूचे लोक में भागेस होज्जा, नियमा सबलोए भागेष भवन्ति, नियमात सर्वलोके होते हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य होज्जा। एवं दोणि वि ॥ भवन्ति । एवं द्वे अपि। द्रव्य भी नियमत: समूचे लोक में होते हैं। १४२. संगहस्स आणपश्विदव्व इं संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि १४२. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के लोगस्स कति भागं फुसंति कि लोकस्य कतिभागं स्पृशन्ति -कि कितने भाग का स्पर्श करते हैं- क्या संखेज्जइभागं फुसंति ? असंखे- संख्येयतमभागं स्पृशन्ति ? असंख्येय- संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? ज्जइभागं फुसंति ? संखेज्जे भागे तमभागं स्पृशन्ति ? संख्येयान् भागान् असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं ? फुसंति ? असंखेज्जे भागे फुसंति ? स्पृशन्ति ? असंख्येयान् भागान् संख्येय भागों का स्पर्श करते हैं ? असंख्येय सव्वलोगं फुसंति ? नो संखेज्ज इ- स्पृशन्ति ? सर्वलोकं स्पृशन्ति ? नो भागों का स्पर्श करते हैं ? अथवा समूचे लोक भार्ग संति, नो असंखेज्जइभाग संख्येयतममागं स्पृशन्ति, नो असंख्येय- का स्पर्श करते हैं? फूसंति, नो संखेज्जे भागे फुसंति, तममागं स्पृशन्ति, नो संख्येयान् वे संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते, नो असंखेज्जे भागे फुसंति, नियमा भागान् स्पृशन्ति, नो असंख्येयान् असंख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करते, सव्वलोगं फुसंति । एवं दोणि भागान् स्पृशन्ति, नियमात् सर्वलोकं संख्येय भागों का स्पर्श नहीं करते, असंख्येय वि॥ स्पशन्ति । एवं द्वे अपि। भागों का स्पर्श नहीं करते, वे नियमतः समूचे लोक का स्पर्श करते हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी नियमतः समूचे लोक का स्पर्श करते हैं । १४३. संगहस्स आणपतिवदव्वाई संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि १४३. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य काल की कालओ केवच्चिरहोंति ? सव्वद्धा। कालतः किच्चिरं भवन्ति ? सर्वा- अपेक्षा से कितने समय तक होते हैं ? एवं दोणि वि॥ ध्यानम् । एवं द्वे अपि। ___ वे सर्वकाल में होते हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्य भी सर्वकाल में होते हैं। १४४. संगहस्स आणुपुग्विदव्वाणं संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणाम् १४४. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्यों में कालकृत अंतरं कालओ केविरं होइ? अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति ? अन्तर कितना होता है ? नत्थि अंतरं । एवं दोणि वि॥ नास्ति अन्तरम् । एवं द्वे अपि । उनमें कालकृत अन्तर नहीं होता। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों में भी कालकृत अन्तर नहीं होता। १४५. संगहस्स आणुपुग्विदव्वाइं संग्रहस्य आनुपूर्वीद्रव्याणि शेष- १४५. संग्रहनय सम्मत आनुपूर्वी द्रव्य शेष द्रव्यों सेसदव्वाणं कइ भागे होज्जा-कि द्रव्याणां कति भागे भवन्ति-कि के कितने भाग में होते हैं- क्या संख्यातवें संखेज्जइभागे होज्जा? असंखे- संम्येयतमभागे भवन्ति ? असंख्येय- भाग में होते हैं ? असंख्यातवें भाग में होते ज्जइभागे होज्जा ? संखज्जेसु तभभागे भवन्ति ? संख्येयेषु भागेषु हैं ?संख्येय भागों में होते हैं ? अथवा असंख्येय भागेसु होज्जा? असंखज्जेसु भागेसु भवन्ति ? असंख्येयेषु भागेषु भव- भागों में होते हैं ? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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