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चौथा प्रकरण : सूत्र १३०-१३६ वणया २. भंगसमुक्कित्तणया २. भंगसमुत्कीर्तनम् ३. भंगोपदर्श३. भंगोवदसणया ४. समोयारे नम् ४. समवतारः ५. अनुगमः । ५. अणुगमे ॥
पदप्ररूपण, २. भंगस मुत्कीर्तन, ३. भंगोपदर्शन, ४. समवतार, ५. अनुगम।
१३२. वह संग्रहनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण क्या
१३२. से कि तं संगहस्स अटुपयपरू- अथ कि सा संग्रहस्य अर्थपदप्ररू
वणया?संगहस्स अट्रपयपरूवणया पणा? सग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणा -- -तिपएसिया आणुपुवी चउपए- त्रिप्रदेशिका: आनुपूर्वी चतुष्प्रदेशिका: सिया आणपब्बी जाव दसपएसिया आनपूर्वी यावत् दशप्रदेशिकाः आनु
आणपदवी संखेज्जपएसिया आणु- पूर्वी संख्येयप्रदेशिका: आनपूर्वी पुवी असंखेज्जपएसिया आणुपुत्वी
असंख्येयप्रदेशिका: आनुपूर्वी अनन्तअगंतपएसिया आणुपुत्वी । पर
प्रदेशिका: आनपूर्वी । परमाणुपुद्गलाः माणुपोग्गला अणाणुपुत्वो। दुपए
अनानपूर्वी। द्विप्रदेशिका: अवक्तसिया अवत्तव्वए। से तं संगहस्स
व्यकम् । सा एषा संग्रहस्य अर्थपदअट्ठपयपरूवणया ॥
प्ररूपणा। १३३. एयाए णं संगहस्स अटुपम्परू
एतया संग्रहस्य अर्थपदप्ररूपणया वणयाए कि पओयणं? एयाए णं
कि प्रयोजनम् ? एतया संग्रहस्य अर्थसंगहस्स अट्ठपयपरूवणयाए
पदप्ररूपणया भङ्गसमुत्कीर्तनं क्रियते । भंगसमुक्कित्तणया कोरइ॥
संग्रहनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण-त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, चारप्रदेशिक आनुपूर्वी यावत् दसप्रदेशिक आनुपूर्वी, संख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, असंख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, अनन्तप्रदेशिक आनुपूर्वी, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी, द्विप्रदेशिक अवक्तव्य है। वह संग्रहनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण है।
१३३. इस संग्रहनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण से क्या प्रयोजन है ?
संग्रहनय सम्मत इस अर्थपदप्ररूपण से भंगसमुत्कीर्तन किया जाता है।
१३४. वह संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तन क्या
१३४. से कि तं संगहस्स भंगसमुक्कि- अथ कि तत् संग्रहस्य भङ्ग- तणया? संगहस्स भंगसमुक्कि
समुत्कीर्तनम् ? संग्रहस्य भङ्गसमुतणया-१. अस्थि आणुपुवी २.
कीर्तनम् -- १. अस्ति आनपूर्वी अस्थि अणाणुपुत्वी ३. अस्थि
२. अस्ति अनानपूर्वी ३. अस्ति अवत्तव्वए अहवा ४. अस्थि आणु
अवक्तव्यकम् अथवा ४. अस्ति पुवो य अणाणुपुव्वी य अहवा ५.
आनपूर्वी च अनानपूर्वी च अथवा अस्थि आणुपुब्वी य अवत्तव्वए य
५. अस्ति आनुपूर्वो च अवक्तव्यकञ्च अहवा ६. अस्थि अणाणुपुवी य
अथवा ६. अस्ति अनान पूर्वी च अवत्तव्वए य अहवा ७. अत्थि
अवक्तव्यकञ्च अथवा ७. अस्ति आनआणुपुत्वी य अणाणुपुब्वी य
पूर्वीच मनानुपूर्वी च अवक्तव्यकञ्च । अवत्तव्वए य। एवं एए सत्त
एवं एते सप्तभङ्गा: । तदेतत् संग्रहस्य भंगा। से तं संगहस्स भंगसमुक्कि- भङ्गसमुत्कीर्तनम् । त्तणया।
संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तन-१. आनुपूर्वी है २. अनानुपूर्वी है ३. अवक्तव्य है अथवा ४. आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है अथवा ५. आनुपूर्वी और अवक्तव्य है अथवा ६. अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है अथवा ७. आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अबक्तव्य है। इस प्रकार ये सात विकल्प होते हैं। वह संग्रहनय सम्मत भंगसमुत्कीर्तन है।
१३५. एयाए णं संगहम्स भंगसमुक्कि- एतेन संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनेन १३५. संग्रहनय सम्मत इस भंगसमुत्कीर्तन से क्या
तणयाए कि पओयणं? एयाए णं किं प्रयोजनम् ? एतेन संग्रहस्य भङ्ग- प्रयोजन है ? संगहस्स भंगसमुक्कित्तणयाए समूत्कीर्तनेन भङ्गोपदर्शनं क्रियते ।
संग्रहनय सम्मत इस भंगसमुत्कीर्तन से भंगावदसणया कीरइ ।।
भंगोपदर्शन किया जाता है। १३६. से कि तं संगहस्स भंगोवदं- अथ किं तत् संग्रहस्य भङ्गोपदर्श- १३६. वह संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शन क्या है ?
सणया? संगहस्स भंगोवदंसणया नम? संग्रहस्य भङ्गोपदर्शनम् - संग्रहनय सम्मत भंगोपदर्शन---१. त्रिप्रदे-१.तिपएसिया आणुपवी २. १. त्रिप्रदेशिकाः आनपूर्वी २. शिक आनुपूर्वी २. परमागुपुद्गल अनानुपूर्वी परमाणुपोग्गला अणाणुपुब्धी ३. परमाणपुद्गला: अनानपूर्वी ३. ३. द्विप्रदेशिक अवक्तव्य अथवा ४. त्रिप्रदेशिक दुपएसिया अवत्तव्वए अहवा ४. द्विप्रदेशिका: अवक्तव्यकम् अथवा ४. और परमाणुपुद्गल, आनुपूर्वी और अनानु
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