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________________ अणुओगदाराई कि उदइए भावे होज्जा? किम् औदपिके भावे भवन्ति ? होते हैं ? उपशम भाव में होते हैं ? क्षायिक उवसमिए भावे होजा? खइए औपशमिके भावे भवन्ति ? क्षायिके भाव में होते हैं ? क्षायोपशमिक भाव में भावे होज्जा? खओवसमिए भावे भावे भवन्ति ? क्षायोपशमिके भावे होते हैं ? पारिणामिक भाव में होते हैं ? होज्जा ? पारिणामिए भावे भवन्ति ? पारिणामिके भावे अथवा सान्निपातिक भाव में होते हैं ? होज्जा?सन्निवाइए भावे होज्जा? भवन्ति ? सान्निपातिके भावे भवन्नि? __ वे नियमतः सादि पारिणामिक भाव में नियमा साइपारिणामिए भावे नियमात् सादिपारिणामिके भावे होते हैं।" इसी प्रकार अनानुपूर्वी और होज्जा। एवं दोण्णि वि॥ भवन्ति । एवं अपि। अवक्तव्य द्रव्यों के भाव का भी प्रतिपादन करना चाहिए। १३०. एएसि णं नेगम-ववहाराणं एतेषां नैगम-व्यवहारयोः आनु- १३०. नैगम और व्यवहारनय सम्मत इन आनुपूर्वी आणुपन्विदव्वाणं अणाणुपुन्वि- पूर्वीद्रव्याणाम् अनानुपूर्वीद्रव्याणाम् द्रव्यों, अनानुपूर्वी द्रव्यों और अवक्तव्य द्रव्यों दव्वाणं अवत्तव्वगदव्वाण य अवक्तव्यकद्रव्याणां च द्रव्यार्यतया प्रदे में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठ- शार्थतया द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थतया कतरे की अपेक्षा कौन किनसे अल्प, अधिक, समान पएसट्टयाए कयरे कयरोहितो अप्पा __ कतरेभ्यः अल्पानि वा ? बहूनि वा ? या विशेषाधिक हैं ? वा? बहया वा? तुल्ला वा? तुल्यानि वा ? विशेषाधिकानि वा ? नगम और व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवाइं सर्वस्तोकानि नैगम-व्यवहारयोः द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं, अनानुनेगम-बवहाराणं अवत्तव्वगदम्वाई अवक्तव्यकद्रव्याणि द्रव्यार्थतया, पूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों दव्वट्टयाए, अणाणपव्विदब्वाइं अनानुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्यार्थतया विशेषा से विशेषाधिक हैं, आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की दव्वट्टयाए विसेसाहियाई, आणु- धिकानि, आनुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्यार्थ अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से असंख्येयगुण हैं। पव्विदव्वाइं दवट्टयाए असंखेज्ज- तया असंख्येयगुणानि । प्रदेशार्थतया प्रदेशार्थ की अपेक्षा नैगम और व्यवहारगुणाई। पएसट्टयाए-सव्वत्थो- सर्वस्तोकानि नंगम-व्यवहारयोः नय सम्मत अनानुपूर्वी द्रव्य अप्रदेशार्थ की वाइं नेगम-ववहाराणं अणाणु- अनानुपूर्वीद्रव्याणि अप्रदेशार्थतया, अपेक्षा सबसे कम हैं, अवक्तव्य द्रव्य प्रदेशार्थ पव्विदव्वाइं अपएसट्टयाए, अवक्तव्यकद्रव्याणि प्रदेशार्थतया की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक अवत्तव्वगदव्वाइं पएसट्टयाए विशेषाधिकानि, आनुपूर्वीद्रव्याणि हैं, अनानुपूर्वी द्रव्य प्रदेशार्थ की अपेक्षा अवक्तविसेसाहियाई, आणपुग्विदव्वाइं प्रदेशार्थतया अनन्तगुणानि । द्रव्यार्थ व्य द्रव्यों से अनन्तगुण हैं । पएसट्टयाए अणंतगुणाई। दव्वट्ठ- प्रदेशार्थतया - सर्वस्तोकानि नैगम ___ द्रव्यार्थ और प्रदेशार्थ की अपेक्षा नैगम पएसट्टयाए --सव्वत्थोवाइं नेगम- व्यवहारयोः अवक्तव्यकद्रव्याणि और व्यवहारनय सम्मत अवक्तव्य द्रव्य ववहाराणं अवत्तव्वगदम्वाई द्रव्यार्थतया, अनानुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्यार्थ की अपेक्षा सबसे कम हैं, अनानुपूर्वी दव्वट्टयाए, अणाणुपुव्विदवाई द्रव्यार्थतया अप्रदेशार्थतया विशेषा द्रव्य द्रव्यार्थ और अप्रदेशार्थ की अपेक्षा दव्वट्टयाए अपएसटुयाए विसेसाहि- धिकानि. अवक्तव्यकद्रव्याणि प्रदेशार्थ अवक्तव्य द्रव्यों से विशेषाधिक हैं, अवक्तव्य याई, अवत्तव्वगदव्वाइं पएसट्टयाए तया विशेषाधिकानि, आनुपूर्वीद्रव्याणि द्रव्य प्रदेशार्थ की अपेक्षा अनानुपूर्वी द्रव्यों से विसेसाहियाई, आणुपुब्बिदव्वाई द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणानि तानि विशेषाधिक हैं, आनुपूर्वी द्रव्य द्रव्यार्थ की दव्वट्ठयाए असखेउजगुणाई, ताई चैव प्रदेशार्थतया अनन्तगणानि । स अपेक्षा अवक्तव्य द्रव्यों से असंख्येयगुण हैं, चेव पएसट्टयाए अणंतगुणाई। से एष अनुगमः । सा एषा नंगम- प्रदेशार्थ की अपेक्षा वे ही अनन्तगुण हैं। वह तं अणुगमे । से तं नेगम-बवहाराणं व्यवहारयोः अनौपनिधिकी द्रव्यानु- अनुगम है ।२२ वह नैगम और व्यवहारनय अणोवणिहिया दव्वाणुपुवी। सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्य आनुपूर्वी है। संगहस्स अणोवणिहिय-दव्वाणुपुवी- संग्रहस्य अनौपनिधिको-द्रव्यानु- संग्रहनय की अनौपनिधिको द्रव्य आनुपूर्वी पूर्वो-पदम् पद १३१. से कि तं संगहस्स अणोवणिहिया अथ कि सा संग्रहस्य अनौप- १३१. वह संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्य दव्वाणपदवी ? संगहस्स अणोव- निधिको द्रव्यानुपूर्वो ? संग्रहस्य आनुपर्ची क्या है ? णिहिया दवाणुपुत्वी पंचविहा अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी पञ्चविधा संग्रहनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्य आनुपण्णता, त जहा-१. अटुपयपरू- प्रज्ञप्ता, तद्यथा-१. अर्थपदप्ररूपणा पूर्वी के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. अर्थ पूर्वो ॥ पदं Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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