________________
चौथा प्रकरण : सूत्र १०४-११० उज्जुसुयस्स एगो अणुवउत्तो युक्तो न भवति । सा एषा आगमतो व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य आनुपूर्वी है, भिन्नता आगमओ एगा दवाणुपुव्वी, द्रव्यानुपूर्वी ।
उसे इष्ट नहीं है। पहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं
तीन शब्द नयों (शब्द, समभिरूढ, एवंभूत) जाणए अणुवउत्तं अवत्थ ।
की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता अवस्तु है। कम्हा? जइ जाणए अणुवउत्ते
क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त न भवइ। से तं आगमओ
नहीं होता । वह आगमतः द्रव्य आनुपूर्वी है। दव्वाणुपुत्वी॥ १०८. से कि तं नोआगमओ दव्वाणु- अथ कि सा नोआगमतो द्रव्यान- १०८. वह नोआगमतः द्रव्य आनुपूर्वी क्या है ?
पुवी ? नोआगमओ दवाणुपुवी पूर्वी ? नोआगमतो द्रव्यानुपूर्वी नोआगमतः द्रव्य आनुपूर्वी के तीन प्रकार तिविहा पण्णता, तं जहा-जाण- त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-ज्ञशरीर- प्रज्ञप्त हैं, जैसे -ज्ञशरीर द्रव्य आनुपूर्वी, भव्यगसरीरदव्वाणुपुव्वी भवियसरीर- ___ द्रव्यानुपूर्वी भव्यशरीरद्रव्यानुपूर्वी शरीर द्रव्य आनुपूर्वी और ज्ञशरीर भव्यशरीर दव्वाणपुव्वी जाणगसरीर-भविय- ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्ता द्रव्या- व्यतिरिक्त द्रव्य आनुपूर्वी। सरीर-वतिरित्ता दवाणपुव्वी॥ नुपूर्वी।
१०६. से कि तं जाणगसरीरदव्वाणु- अथ कि सा ज्ञशरीरद्रव्यानुपूर्वी ? १०९. वह ज्ञशरीर द्रव्य आनुपूर्वी क्या है ?
पुव्वी? जाणगसरीरदव्वाणपुव्वी ज्ञशरीरद्रव्यानुपूर्वी --आनुपूर्वी इति ज्ञशरीर द्रव्य आनुपूर्वी-आनुपूर्वी इस पद -----आणपुवी ति पयत्था- पदार्थाधिकारजस्य यत् शरीरकं के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो हिगारजाणगस्स जं सरीरयं ___ व्यपगत-च्युत-च्यावित-त्यक्तदेहं जीव- शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी निमित्त ववगय-चय-चाविय-चत्तदेहं जोवविहीणं शय्यागतं वा संस्तारगतं वा
से प्राणच्युत किया हुआ, उपचय रहित और विप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं निषीधिकागतं वा सिद्धशिलातलगतं जीव-विप्रमुक्त है, उसे शय्या, बिछौने, श्मशानवा निसोहियागयं वा सिद्धसिला- वा दृष्ट्वा कोऽपि वदेत् ---अहो !
भूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर कोई तलगयं वा पासित्ता गं कोइ अनेन शरीरसमुच्छ्येण जिनविष्टेन
कहे-आश्चर्य है ! इस पौद्गलिक शरीर ने वएज्जा-अहो णं इमेणं सरीरस- भावेन आनुपूर्वी इति पदम् आख्यातं
जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार आनुमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं प्रज्ञापितं प्ररूपितं दर्शितं निशितम्
पूर्वी इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, आणपुव्वी त्ति पयं आघवियं ___ उपदर्शितम् । यया क: दृष्टान्तः ? दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है। जैसे पण्णवियं परूवियं दंसियं निदंसियं अयं मधुकुम्भः आसीत्, अयं घृत- कोई दृष्टान्त है ? (ओचार्य ने कहा- इसका उवदंसियं। जहा को दिळंतो? कुम्भः आसीत् । सा एषा ज्ञशरीर- दृष्टान्त यह है) यह मधुघट था, यह घृतघट अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे द्रव्यानुपूर्वी ।
था। वह ज्ञशरीर द्रव्य आनुपूर्वी है। आसी । से तं जाणगसरीरदव्वाणु
पुवी॥
११०. से कि तं भवियसरीरदव्वाण
अथ कि सा भव्यशरीरद्रव्यानु- ११०. वह भव्यशरीर दव्य आनुपूर्वी क्या है ? पुवी? भवियसरीरदब्वाणुपुन्वी पूर्वी ? भव्यशरीरद्रव्यानुपूर्वी-य: भव्यशरीर द्रव्य आनुपूर्वी -गर्भ की -जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जीव: योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरस- आदत्तकेन शरीरसमुच्छयेण जिन- पौद्गलिक शरीर से आनुपूर्वी इस पद को मुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं दिष्टेन भावेन आनुपूर्वी इति पदम् जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य आणुपुव्वी ति पयं सेयकाले एष्यत् काले शिक्षिष्यते, न तावत् में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है तब सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। शिक्षते। यथा कः दृष्टान्तः ? अयं तक वह भव्यशरीर द्रव्य आनुपूर्वी है। जैसे जहा को दिळंतो? अयं महकुंभे मधुकुम्भः भविष्यति, अयं घृतकम्भः कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहा - इसका भविस्सइ, अयं घयकंभे भविस्सइ। भविष्यति। सा एषा भव्यशरीर- दृष्टान्त यह है) यह मधुघट होगा, यह घृतघट से तं भवियसरीरदब्वाणपूवी॥ द्रव्यानुपूर्वी।
होगा । वह भव्यशरीर द्रव्य आनुपूर्वी है।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org