________________
ER
१११. से किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वतिरिता दयाणुपुथ्वी ? जाणगसरीर भवियसरीर वति रित्ता दव्याणुपुच्ची दुबिहा पण्णत्ता, तं जहा ओयणिहिया व अनोव णिहिया य ॥
-
११२. तत्थ णं जा सा ओवणिहिया सा ठप्पा ॥
११३. तत्व णं जा सा अणोवणिहिया सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहानेगम-ववहाराणं संगहस्स य ॥
गम-यवहाराणं अणोवनिहिय-दम्बाणुपृथ्वी-पर्य
११४. से किं तं नेगम-वबहाराणं अणोवणिहिया दव्याणुपुथ्वी ? नेगम-वबहाराणं अणोवणिहिया दयावी पंचविहा पण्णसा, तं जहा - १. अट्ठपयपरूवणया २. भंगसमुत्तिणया ३. भंगोवदंसणया ४. समोयारे ५. अणुगमे ॥ ११५. से किसे नेगम-ववहाराणं अट्ठपयपरूवणया ? नेगम-ववहाराणं अपयस्वणयातिपएसिए आणुपृथ्वी चउपएसिए आणुपुथ्वी जाय दसपएसिए आणुपुव्वी संखेज्जपएसिए आणुपुग्यो असंवेज्जएसिए आणुपुव्वी अनंतपए सिए आणखी । परमाणुयोग्य अणापुथ्यो। दुपएसिए अवत्तम्बए। तिपएसिया आणुपुत्रीमो जाव अणतपएसिया आणुपुवीओ । परमाणुपोग्गला अणाणुपुव्वीओ । दुपएसिया अवत्तव्वयाई । से तं नेगम-ववहाराणं अपयपर
वणया ||
११६. एयाए णं नेगम-बवहाराणं अपरूवणयाए कि पोषणं ? एयाए णं नेगम-ववहाराणं
Jain Education International
अथ कि सा ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वी ? ज्ञशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्ता द्रव्यानुपूर्वी द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-औपनि धिकीच अननिधि च ॥
तत्र या असौ औपनिधिको सा
स्थाप्या ।
तत्र या असौ अनौपनिधिको सा द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-नंगमव्यवहारयोः संग्रहस्य च ॥
नंगम-व्यवहारयोः अनौपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी-पदम्
अथ कि सा नैगम-व्यवहारयोः अनोपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी ? नंगमव्यवहारयो: अनोपनिधिकीच्यापूर्वी पचविधा प्रज्ञप्ता तथा १२. सरको नम् ३. भङ्गोपदर्शनम् ४. समवतार: ५. अनुगमः ।
-
अथ कि सा नैगम-व्यवहारयोः अर्थपदप्ररूपणा ? नंगम-व्यवहारयोः अर्थपदत्ररूपणा शिप्रदेशिक: मनुपूर्वी चतुष्प्रदेशिक जानुपूर्वी याबद् दशप्रदेशिक : आनुपूर्वी संख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी असंख्येयप्रदेशिकः आनुपूर्वी अनन्तप्रदेशिक : पूर्वी परमापुद्गलः अनानुपूर्वी द्विप्रवेशिक अवध्यकम्। प्रिवेfrer अनुपू याद अनदे शिका: आनुपूर्व्यः परमात अनानुपूव्यं । द्विप्रदेशिका: अवक्तध्यानि सा एया नंगम-व्यवहारयोः अर्थपदप्ररूपणा ।
आनु
एतया मैगम-व्यवहारयोः अर्थपदप्ररूपणया कि प्रयोजनम् ? एतया नैगम-व्यवहारयोः अर्थपदप्ररूपणया
For Private & Personal Use Only
अणुओगवाराई
१११. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आनुपूर्वी क्या है ?
ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आनुपूर्वी के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे— औपनिधिकी और अनौपनिधिकी।
११२. जो औपनिधिकी है वह स्थाप्य है ।
११३. जो अनौपनिधिकी है उसके दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे नैगम-व्यवहार की अनौपनिधिकी और संग्रह की अनौपनिधिकी।" नंगम-व्यवहार अनीपनिधिको द्रव्यानुपूर्वी-पद
११४. वह नंगम और व्यवहारनय सम्मत अनौपनिधिको द्रव्य आनुपूर्वी क्या है ?
नंगम और व्यवहारनय सम्मत अनौपनिधिकी द्रव्य आनुपूर्वी के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- १. अर्थपदपरूपण, २. भंगसमुत्कीर्तन, ३. भंगोपदर्शन, ४. समवतार, ५. अनुगम ।
११५. वह नैगम और व्यवहारनय सम्मत अर्थपदपरूपण क्या है ?
नगम और व्यवहारनय सम्मत अर्थपद
प्ररूपण --
त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वी, " चतुष्यदेशिक आनुपूर्वी यावत् दसप्रदेशिक आनुपूर्वी संख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, असंख्येयप्रदेशिक आनुपूर्वी, अनन्तप्रदेशिक आनुपूर्वी, परमाण पुद्गल अनानुपूर्वी, द्विप्रदेशिक अवक्तव्य, त्रिप्रदेशिक आनुपूर्वियां यावत् अनन्तप्रदेशिक आनुपूर्वियां परमाणुपुद्गल अनानुपूनिया और द्विप्रदेशिक अवस्तव्य ( अनेक ) हैं वह नैगम और व्यवहारनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण है ।
११६. नैगम और व्यवहारनय सम्मत अर्थपदप्ररूपण से क्या प्रयोजन है ?
नैगम और व्यवहारनय सम्मत इस अर्थ -
www.jainelibrary.org