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________________ ८० अणुओगदाराई १०४. नाम-दृवणाणं को पइविसेसो ? नाम-स्थापनयोः कःप्रतिविशेषः? १०४. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नामं आवकहियं, ठवणा नाम यावत्कयिकम्, स्थापना इत्व- नाम यावज्जीवन होता है, स्थापना अल्पइत्तरिया वा होज्जा आवकहिया रिका वा भवेत् यावत्कथिका वा । कालिक भी होती है और यावज्जीवन भी। वा॥ दव्वाणुपुव्वी-पदं द्रव्यानुपूर्वी-पदम् द्रव्य आनुपूर्वी-पद १०५. से किं तं दव्वाणुपुवी ? अथ किं सा द्रव्यानुपूर्वी ? द्रव्या- १०५. वह द्रव्य आनुपूर्वी क्या है ? दव्वाणुपुव्वी दुविहा पण्णता, नुपूर्वी द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा द्रव्य आनुपूर्वी के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, तं जहा-आगमओय आगमतश्च नोआगमतश्च ॥ जैसे-आगमत: और नोआगमतः। नोआगमओ य॥ १०६. से कि तं आगमओ दव्वाणु- अथ कि सा आगमतो द्रव्यानु- १०६. वह आगमतः द्रव्य आनुपुर्वी क्या है ? पुब्बी ? आगमओ दव्वाणपुवो पूर्वी ? आगमतो द्रव्यानपूर्वी-यस्य आगमतः द्रव्य आनुपूर्वी-जिसने आनुपूर्वी --जस्स णं आणपुव्वी ति पदं आनुपूर्वी इति पदं शिक्षितं स्थित यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित सिक्खियं ठियं जियं मियं चितं मितं परिचितं नामसमं घोष- कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर परिजियं नामसमं घोससमं समम् अहोनाक्षरम् अनत्यक्षरम् अव्या- लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर अहोणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वा- विद्धाक्षरम् अस्खलितम् अमीलितम् लिया, जिसे वह हीन, अधिक या विपर्यस्तइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अव्यत्यानंडितम् प्रतिपूर्ण प्रतिपूर्ण- अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्गों से अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुण्ण घोषं कण्ठोष्ठविप्रमुक्त गुरुवाचनोप- अमिश्रित, अन्य ग्रन्थवाक्यों से अमिश्रित, घोसं कंठोढविप्पमुक्कं गुरुवायणोगतं सा तत्र वाचनया प्रच्छनया परि प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोष युक्त, कण्ठ और होठ वगयं, से गं तत्थ वायणाए पुच्छवर्तनया धर्मकथया, नो अनुप्रेक्षया । से निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त णाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो कस्मात् । के कस्मात् ? अनुपयोगो द्रव्यम् इति है। वह उस (आनुपूर्वी पद) का अध्यापन, अणुप्येहाए। कम्हा? अणुवओगो प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता दव्वमिति कटु ॥ है तब आगमतः द्रव्य आनुपूर्वी है। वह अनुप्रेक्षा में प्रवृत्त नहीं होता, क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य) होता १०७. नेगमस्स एगो अणुवउत्तो नंगमस्य एकः अनुपयुक्तः आग- १०७. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमओ एगा दव्वाणुपुव्वी, मत: एका द्रव्यानुपूर्वी, द्वौ अनुपयुक्ती आगमतः एक द्रव्य आनुपूर्वी है, दो अनुपयुक्त दोणि अणुवउत्ता आगमओ आगमतो द्वे द्रव्यानुपूव्यौं, त्रयः अनुप- व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य आनुपूर्वी है, तीन दोण्णीओ दवाणपुव्वीओ, युक्ताः आगमतः तिस्रः द्रव्यानपूर्व्यः, अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य आनुपूर्वी तिणि अणुवउत्ता आगमओ एवं यावन्तः अनुपयुक्ताः तावन्तः ताः हैं, इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं तिण्णीओ दवाणपुव्वीओ, एवं नेगमस्य आगमती द्रव्यानुपूर्वा । एव नैगमनय की अपेक्षा उतनी ही आगमतः द्रव्य जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ मेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एको आनुपूर्वी हैं। ताओ नेगमस्स आगमओ वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुप- इसी प्रकार व्यवहारनय को भी समझना दव्वाणुपुव्वीओ। एवमेव वव- युक्ताः वा आगमतो द्रव्यानुपूर्वी वा चाहिए। हारस्स वि। संगहस्स एगो वा द्रव्यानपूर्व्यः वा सा एका द्रव्यानुपूर्वी। संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति अणेगा वा अणुवउत्तो वा ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमत: अणुवउत्ता वा आगमओ एका द्रव्यानुपूर्वी, पृथक्त्वं नेच्छति । एक द्रव्य आनुपूर्वी है अथवा अनेक द्रव्य दव्वाणुपुव्वी वा दवाणुपुव्वीओ त्रयाणा शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः । आनुपूर्वी हैं वह एक द्रव्य आनुपूर्वी है। वा, सा एगा दव्वाणुपुवी। अवस्तु । कस्मात् ? यदि ज्ञः अनुप- ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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