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________________ प्र० ३, सू०७६-६६, टि०३ का अर्थ तूणीरधारक, तुम्ब का अर्थ आलपनी आदि वादक और वीणिय का अर्थ वीणावादक किया है। किन्तु प्रस्तुत आगम के व्याख्याकारों ने तुम्बवीणिय को एक शब्द मानकर उसकी व्याख्या की है।' सूत्र ९४ नालिका प्राचीन समय में काल-ज्ञान के लिए नालिका, शंकुच्छाया और नक्षत्र-गति को आधार बनाया जाता था।' नालिका ताम्बे से बनी हुई एक घड़ी होती है, जिसमें धूलि या पानी डालकर समय को जाना जाता है। जितने समय में ऊपर का पदार्थ नीचे जाता है वह एक मुहूर्त का समय होता है। सूत्र ९८ अप्रशस्त भावोपक्रम दूसरे के भाव को जानने का उपक्रम । यहां अप्रशस्त और प्रशस्त की चर्चा में लौकिक फल वाला उपक्रम अप्रशस्त और लोकोत्तर फल वाला उपक्रम प्रशस्त रूप में विवक्षित है। वृत्तिकार ने अप्रशस्त उपक्रम को समझाने के लिए तीनों उदाहरणों की व्याख्या प्रस्तुत की है। ब्राह्मणी एक ब्राह्मणी के तीन लड़कियां थी। शादी के बाद मेरी पुत्रियां सुखी रहें, ऐसी व्यवस्था करने के लिए उसने बड़ी लड़की से कहा-आज तुम पहली बार ससुराल जा रही हो। जब तुम्हारा पति कमरे में आए तो कोई गल्ती बताकर उसके सिर पर पादप्रहार कर देना उसके बाद जो स्थिति हो, मुझे बताना । पुत्री ने बसा ही किया। उसका पति मधुर शब्दों में बोला-प्रिये ! मेरे कठोर सिर से तुम्हारे कोमल पांव में पीड़ा तो नहीं हुई? इसके साथ ही उसने पांव अपने हाथ में लेकर सहलाए । पुत्री ने सारी घटना अपनी माता को बता दी। मां ने कहा-बेटी घर में तुम्हारा ही राज है जैसा चाहो, करो। माता के कथनानुसार दूसरी लड़की ने भी वैसा ही किया। उसके पति ने थोड़ा सा गुस्सा करके कहा-क्या यह काम शिष्ट व्यक्तियों के योग्य है ? लड़की ने माता के सामने सही स्थिति रख दी। सुनकर वह बोली-तुम्हारा पति थोड़े समय के लिए नाराज होगा, और कुछ नहीं करेगा । तुम भी थोड़ी सी सावधानी के साथ इच्छानुसार घर में रहो। तीसरी लड़की का पति इस आकस्मिक अपमानजनक घटना से उत्तेजित हो उठा । वह बोला-कैसा अनुचित और अशिष्ट व्यवहार है तुम्हारा ? क्या तुम कुलीन हो ? आक्रोश प्रकट करने के बाद पीटकर उसे घर से बाहर निकाल दिया। माता ने इस घटनाचक्र की जानकारी पाकर कहा-पुत्री ! तुम्हारे पति की सेवा बहुत कठिन है। तुम उसे देवता मानकर अप्रमत्त भाव से उसकी आराधना करो और सुखपूर्वक रहो । अपनी पुत्री को यह निर्देश देकर वह जामाता के पास गई और बोली--पुत्र ! यह हमारी कुल परम्परा है । तुम बुरा मान गए । तुम्हारे प्रति उसका यह व्यवहार हो ही कैसे सकता है ? इस प्रकार समझाकर उसे मनाया। गणिका ___एक नगर में एक वेश्या रहती थी। वह ६४ कलाओं में प्रवीण थी। आगन्तुकों का अभिप्राय जानने के लिए उसने अपने रतिभवन की दीवारों पर अपने-अपने व्यापार मे प्रवृत्त राजकुमारों के चित्र बनाए। वहां जो कोई आता, अपने व्यापार की प्रशंसा करता । इसके आधार पर वह अंकन कर लेती कि कौन राजकुमार किस श्रेणी का है तथा उसे कैसे प्रसन्न करना चाहिए? उसके प्रति अनुकूल आचरण कर वह उससे बहुत अधिक धन प्राप्त कर लेती। ३. अमात्य एक राजा अपने मन्त्री के साथ घुड़सवारी कर रहा था। मार्ग में ऊपर भूमि पर घोड़े ने प्रस्रवण किया। वापस आते समय १. कटि. पृ. १३। तया, शंकुच्छायादिना वा नक्षत्रचारादिना वा एता२. अमव. प. ४२ : 'तूणइल्लाणं' ति तूणाभिधानवाद्यविशेष वत्पौष्यादिकालोऽतिक्रान्त इति यत् परिज्ञानं वतां। भवति स परिकर्मणि कालोपक्रमः । ३. (क) अहावृ. पृ. २९ : नालिका-घटिका। ४. विमा. ९२८ की वृत्ति । (ख) अमव. प. ४४ : तत्र नालिका-ताम्रादिमयघटिका Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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