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अणुओगदाराई ८५. से कि तं भवियसरीरदव्वोव- अथ किं स भव्यशरीरद्रव्योप- ८५. वह भव्यशरीर द्रव्य उपक्रम क्या है ?
क्कमे? भवियसरीरदब्वोवक्कमे क्रम: ? भव्यशरीरद्रव्योपक्रमः-यः भव्यशरीर द्रव्य उपक्रम-गर्भ की पूर्णा-जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते जीव: योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव वधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमु- आदत्तकेन शरीरसमुच्छ्येण जिन- पौद्गलिक शरीर से उपक्रम इस पद को स्सएणं जिणदिठेणं भावेणं उव- दिष्टेन भावेन उपक्रम इति पदम् जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य क्कमे त्ति पयं सेयकाले सिक्खि- एध्यत्काले शिक्षिष्यते, न तावत् में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है तब स्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को शिक्षते । यथा क: दृष्टान्त ? अयं तक वह भव्यशरीर द्रव्य उपक्रम है। जैसे दिठंतो? अयं महुकुभे भविस्सइ, मधुकुम्भः भविष्यति, अयं घृतकुम्भः कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा - इसका अयं घयकभे भविस्सइ। से तं भविष्यति
भविष्यति । स एष भव्यशरीरद्रव्योप- दृष्टान्त यह है] यह मधुघट होगा, यह भवियसरीरदव्वोवक्कमे ॥ ऋमः ।
घृतघट होगा। वह भव्यशरीर द्रव्य उपक्रम
५६. से कि तं जाणगसरीर-भविय- अथ फि स ज्ञशरीर-भव्यशरीर- ८६. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य
सरीर-बतिरित्ते दध्वोवक्कमे? व्यतिरिक्तः द्रव्योपक्रमः ? शरीर- उपक्रम क्या है ? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्त भव्यशरीर-व्यतिरिक्तः द्रव्योपक्रमः ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य दब्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्तं, त त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-सचित्तः उपक्रम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेजहा-सचित्त अचित्तं मीसए॥ अचित्तः मिथः ।
सचित्त, अचित्त और मिश्र ।
८७. से कि तं सचित्ते दव्वोवक्कमे? अय किं स सचित्तः द्रव्योपक्रमः?
सचित्ते दव्वोवक्कमे तिविहे पण्णत्ते, सचित्तः द्रव्योपक्रमः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तं जहा-दुपयाणं चउप्पयाणं तद्यथा- द्विपदानां चतुष्पदानाम् अपयाणं । एक्किक्के पुण दुविहे अपदानाम् । एकैकः पुनः द्विविधः पण्णते, तं जहा-परिकम्मे य प्रज्ञप्त:, तद्यथा-परिकर्म च वस्तुवत्थविणासे य॥
विनाशश्च ।
८७. वह सचित्त द्रव्य उपक्रम क्या है ?
सचित्त द्रव्य उपक्रम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्विपद, चतुष्पद और अपद का उपक्रम ।
इनमें से प्रत्येक के दो-दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-परिकर्म और वस्तु-विनाश ।
८८. से कि त दुपयउवक्कमे ? दुपय- अथ कि स द्विपदोपक्रम: ? द्विप-
उवक्कमे- दुपयाणं नडाणं नद्राणं दोपक्रमः --द्विपदानां नटानां नर्त्त- जल्लाणं मल्लाणं मट्रियाणं वेलब- कानां 'जल्लाणं' मल्लानां मौष्टिगाणं कहगाणं पवगाणं लासगाणं कानां विडम्बकानां कथकानां प्लवआइक्खगाणं लंखाणं मंखाणं तूण- कानां लासकानाम् आख्यायकानां इल्लाणं तुंबवीणियाणं कायाणं 'लंखाणं' मङ्खाना 'तूणइल्लाणं मागहाणं । से तं दुपयउवक्कमे ॥ तुंबवीणियाणं कायाणं' मागधानाम् ।
स एष द्विपदोपक्रमः।
८८. वह द्विपद उपक्रम क्या है?
द्विपद उपक्रम-नट, नर्तक, कौड़ी से जुआ खेलने वाले, पहलवान, मुष्टि-युद्ध करने वाले, विदूषक, कथा करने वाले, छलांग भरने वाले, रास रचाने वाले, शुभाशुभ बताने वाले, बड़े बांस पर चढ़कर खेल करने वाले, चित्रपट दिखाकर आजीविका करने वाले [मंखलि], तूण-[मक के आकार का वाद्य] वादक, तम्बूरा-वादक, कांवर ले जाने वाले और मंगलपाठक, इन दो पैर वाले व्यक्तियों के परिकर्म और विनाश में किया जाने वाला उपक्रम द्विपद उपक्रम है। वह द्विपद उपक्रम है।
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