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तीसरा प्रकरण : सूत्र ७८-८४
जावइया अणुवत्ता तावइवाई तावइयाइं ताई नेगमस्स आगमओ दोव कमाई । एवमेव बवहारस्स वि 1 संगहस्स एगो वा अणेगा वा अणु उत्तो वा अणवत्ता वा आगमओ coatara मे वा दव्वोवक्कमाणि बा से एगे दब्बोवक्कमे उज्जु सुयस्स एगो अणुवउत्तो आगमओ एंगे दव्वोवक्कमे पुहतं ति सद्दनवाणं जाणए अगुवउत्ते अवत्थू कम्हा ? जइ जाणए अणुवडते न भव से तं आगमक्कमे ॥
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८३. से कि तं नोआगमओ दव्वोवक्कमे ? नोआगमओ दव्वोवक्कमे तिविहे पण ते तं जहा जानग सरीरदव्वोवक्कमे भवियसरीरभविसरीर दबोवक्कमे जाणगसरीर-नविय सरीर-यतिरित दव्योवक्कमे ॥
८४. से कि तं जाणगसरीरदब्बोवकमे? जाणगसरीरदग्वोवक्कमे उपक्कमे ति पयत्याहिगारजान गस्स जं सरीरखं ववगय-चुय चाविष जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासिता कोइ वएन्ना अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएर्ण जिणदिणं भावणं उबक्कमे ति पर्य आघवियं पण्णवियं परुविये पंसि निसियं उपयंखियं जहा को । वितो? अयं महकुंभे आसो अयं घयकुंभे आसी । से तं जाणगसरदव्ववक्कमे ॥
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तावन्तः ते नैगमस्य आगमतो द्रव्योप
माः। एवमेव व्यवहारस्यापि । संग्रहस्य एको वा अनेके वा अनुपपुतो वा अनुपयुक्ता या आगमतो द्रव्योपक्रमः वा द्रव्योपक्रमाः वा, स एकः द्रव्योपक्रमः । ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः एकः ब्रज्योपमः पृथक्त्वं नेच्छति । त्रयाणां शब्दनयानां ज्ञः अनुपयुक्तः अवस्तु । कस्मात् ? यदि शः अनुपयुक्त न भवति । स एष आगमतो द्रव्योप
क्रमः ।
अथ किं स नोआगमतो द्रव्योपक्रम. ? नोआगमतो द्रव्योपक्रमः त्रिविध प्रज्ञप्तः, तद्यथा ज्ञशरीरद्रव्योपक्रम: भव्यशरीरद्रव्योपक्रमः शरीर-व्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्यो
पक्रमः ।
अथ किं स ज्ञशरीरद्रव्योपक्रमः ? सरीरद्रव्योपक्रमः उपक्रमइति पदाधिकारस्य यत् शरीरक स्वगत्च्त्व्यावित्यक्त जीवविप्रहीणं शय्यागतं वा संस्तारगतं वा निवीधिकागतं वा सिद्ध शिलातलगतं वा वृष्ट्वा कोऽपि वदेत् अहो | अनेन शरीरसमुष्येष जिनदिन भावेन उपक्रम इति पदम् आख्यातं प्रज्ञावित प्ररूपितं दर्शितं नितम् उपशितम् वचा कः पृष्टान्तः ? अयं मधुकुम्भः आसीत्, अयं पूतकुम्भः आसीत्। स एष शरीर
।
। द्रव्योपक्रमः ।
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नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्य उपक्रम हैं ।
इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा से भी जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, उतने ही आगमतः द्रव्य उपक्रम हैं ।
संग्रहनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है अथवा अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, आगमतः एक द्रव्य उपक्रम है अथवा अनेक द्रव्य उपक्रम हैं, वह एक द्रव्य उपक्रम है ।
ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य उपक्रम है, भिन्नता उसे इष्ट नहीं है ।
तीन शब्द नयों [शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत] की अपेक्षा अनुपयुक्त ज्ञाता वस्तु है। क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता । वह आगमतः द्रव्य उपक्रम है।
८३. वह नोआगमतः द्रव्य उपक्रम क्या है ?
नोआगमतः द्रव्य उपक्रम के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे ज्ञशरीर द्रव्य उपक्रम, भव्यशरीर द्रव्य उपक्रम और ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य उपक्रम ।
८४. वह ज्ञशरीर द्रव्य उपक्रम क्या है ?
ज्ञशरीर द्रव्य उपक्रम -उपक्रम इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी निमित्त से प्राण च्युत किया हुआ, उपचय रहित, जीव विप्रमुक्त है, उसे शय्या, बिछौने, श्मशानभूमि या सिद्ध शिलातल पर देखकर कोई कहे आश्चर्य है। इस पौगलिक शरीर ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार उपक्रम इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा इसका दृष्टान्त यह है ] यह मधुघट था, यह घृतघट था । वह ज्ञशरीर द्रव्य उपक्रम है ।
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