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वा उवक्कमे त्ति नामं कज्जइ । से तं नामोवक्कमे ॥
७८. से किं तं वगोवक्रुमे ? ठवणोवक्कमे - जण्णं कटुकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्यकम्मे वा गंधिमे वा वेढिमे वा पूरिने वा संपादने वा अपले वा बराए वा एगो वा अणेगा वा सम्भावठवणाए वा असम्भावठवणाए वा उवक्कमे त्ति ठवणा ठविज्जइ । से तं ठवणोवक्कमे ॥
७९. नाम-दुवणाणं को पदविसेसो ? नाम आवकहिये, ठबणा इतरिया वा होज्जा आवकहिया वा ॥
मे ? दव्ययक्कमे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - आगमओ व नोआगमओ व ॥
८०. से कि तं
८१. से किं तं आगमओ दव्वोवक्कमे ? आगमओ दयोवक्कमे जस्स णं उक्कमेति पर्व सिविलयंठिय जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहोणक्खरं अणच्चक्खरं अम्बाइक्सरं अक्सलियं अमिलियं अवच्चामेलियं परिपुष्णं पपुण्णधोसं कंठोट्ठविप्यमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायजाए पुच्छणाए परिवहणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए । कम्हा ? अणुवओगो दव्यमिति कट्टु ॥
८२. नेगमस्स एगो अणवउत्तो आग मओ एगे दबोक्कमे दोणि अणुवत्ता आगमओ दोणि दग्बी वक्कमाई तिष्णि अणुवत्ता आगमओ तिणि दय्योयवकमाई एवं
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नाम क्रियते । स एष नामोपक्रमः ।
अथ किं स स्थापनोपक्रमः ? स्थापनोपक्रमः - - यत् काष्ठकर्मणि वा चित्रकर्मणि वा पुस्तकर्मणि वा लेप्यकर्मणि वा प्रन्थिमे वा वेष्टिमे वा पूरिमे वा संघातिमे वा अक्षे वा वराटके वा एको वा अनेके वा सद्भावस्थापनया वा असद्भावस्थापनया वा उपक्रमः इति स्थापना स्थाप्यते । स एष स्थापनोपक्रमः ।
नामस्थापनयोः कः प्रतिविशेषः ? नाम यावत्कथिकम्, स्थापना इत्वरिका वा भवेत् यावत्वा
अथ किं स द्रव्योपक्रमः ? द्रव्योपक्रमः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा आगमतश्च नोआगमतश्च ।
अथ कि स आगमतो द्रव्योपक्रमः ? आगमतो द्रव्योपक्रमः -यस्य उपक्रमः इति पदं शिक्षितं स्थितं चितं मितं परिचितं नामसमं घोषसमम् अहीनाक्षरम् अनत्यक्षरम् अव्याविद्वाक्षरम् अस्खलितम् अमीलितम् अध्यश्वादितं प्रतिपूर्ण प्रतिपुर्णपोष कष्ठौष्ठविप्रमुक्तं गुरुवाचनोपगतं, तत् तत्र वाचनया प्रच्छनया परि
नया धर्मका मी अनुप्रेक्षा कस्मात् ? अनुपयोगी प्रम्यम् इति
कृत्वा ।
नंगमस्य एकः अनुपयुक्तः आगमतः एकः द्रव्योपक्रमः, द्वौ अनुपयुक्ती आगमतो हो यो य अनुपयुक्ताः आगमतः त्रयः द्रव्योपक्रमा एवं यावन्तः अनुपयुक्ताः
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अणुओगदाराई
दोनो का उपक्रम यह नाम किया जाता है । वह नाम उपक्रम है ।
७८. वह स्थापना उपक्रम क्या है ?
स्थापना उपक्रम - काष्ठाकृति, चित्राकृति, वस्त्राकृति या प्याकृति में धर वेष्टित कर भरकर या जोड़कर बनाई हुई पुतली में, अक्ष या कौड़ी में एक या अनेक
सद्भाव स्थापना अथवा असद्भाव स्थापना के द्वारा उपक्रम का जो रूपांकन या कल्पना की जाती है। वह स्थापना उपक्रम है ।
७९. नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ?
नाम यावज्जीवन होता है तथा स्थापना स्वल्पकालिक भी होती है और यावज्जीवन भी ।
८०. वह द्रव्य उपक्रम क्या है ?
द्रव्य उपक्रम के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -आगमतः और नोआगमतः ।
८१. वह आगमतः द्रव्य उपक्रम क्या है ?
आगमतः द्रव्य उपक्रम - जिसने उपक्रम यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर लिया, नामसम कर लिया, घोषसम कर लिया, जिसे वह हीन, अधिक या विपर्यस्त - अक्षर रहित, अस्खलित, अन्य वर्णों से अमिश्रित, अन्य ग्रन्थ वाक्यों से अमिश्रित प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ तथा गुरु की वाचना से प्राप्त है, वह उस [ उपक्रम पद] के अध्यापन, प्रश्न, परावर्तन और धर्मकथा में प्रवृत्त होता है तब आगमतः द्रव्य उपक्रम है । वह अनुभेक्षा में प्रवृत नहीं होता, क्योंकि द्रव्य निक्षेप अनुपयोग (चित्त की प्रवृत्ति से शून्य ) होता है ।
८२. नैगमनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्य उपक्रम है, दो अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः दो द्रव्य उपक्रम हैं, तीन अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्य उपक्रम हैं। इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं
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