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________________ खुड्डियायारकहा ( क्षुलिकाचार-कथा ) ४५ अध्ययन ३ : श्लोक ६-१३ 8-धूव-णेत्ति वमणे य वत्थीकम्म विरेयणे । अंजणे दंतवणे य गायाभंगविभूसणे धूम-नेत्रं वमनञ्च वस्तिकर्म विरेचनम् । अंजन दन्तवर्ण गात्राभ्यङ्गविभूषणे ॥६॥ धूम-नेत्र*3-धूम्र-पान की नलिका रखना । बमन-रोग की संभावना से बचने के लिए, रूप-बल आदि को बनाए रखने के लिए वमन करना, वस्तिकर्म-अपान-मार्ग से तैल आदि चढ़ाना) और विरेचन४४ करना । अंजन...-आँखों में अंजन आँजना । दंतवण५. दांतों को दतौन से घिसना, गात्रअभ्यङ्ग.. शरीर में तैल-मर्दन करना। विभूषण.... शरीर को अंलकृत करना। १०-सव्वमेयमणाइण्णं निग्गंथाण संजमम्मि य लहुभूयविहारिणं महेसिणं । जुत्ताणं सर्वमेतदनाचीर्ण निर्ग्रन्थानां महर्षीणाम् । संयमे च युक्तानां लघुभूतविहारिणाम् ॥१०॥ जो संयम में लीन ८ और वायु की तरह मुक्त विहारी महर्षि निर्ग्रन्थ हैं उनके लिए ये सब अनाचीर्ण हैं। ११-पंचासवपरिन्नाया तिगुत्ता छसु संजया । पंचनिग्गहणा धीरा निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥ परिज्ञातपञ्चाश्रवाः त्रिगुप्ताः षट्सु संयताः। पञ्चनिग्रहणा धीराः निर्ग्रन्था ऋजुदर्शिनः ॥११॥ पांच आश्रवों का निरोध करनेवाले,५० तीन गुप्तियों से गुप्त,५१ छह प्रकार के जीवों के प्रति संयत,५२ पांचों इन्द्रियों का निग्रह करने वाले, धीर५४ निर्ग्रन्थ ऋजुदर्शी५५ होते हैं। १२-आयावयंति हेमतेसु वासासु संजया गिम्हेसु अवाउडा । पडिसंलीणा सुसमाहिया ॥ आतापयन्ति हेमन्तेष्वावृताः वर्षासु संयताः ग्रीष्मेषु सुसमाहित निर्ग्रन्थ ग्रीष्म में सूर्य की आतापना लेते हैं, हेमन्त में खुले बदन रहते प्रतिसलीनाः हैं और वर्षा में प्रतिसंलीन होते हैं५६—एक सुसमाहिताः ॥१२॥ स्थान में रहते हैं । १३-परीसहरिऊदंता धुयमोहा जिइ दिया । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्वमंति महेसिणो ॥ दान्तपरिषहरिपवः धुतमोहा जितेन्द्रियाः। सर्वदुःखप्रहाणार्थ प्रक्रामन्ति महर्षयः ॥१३॥ परीषहरूपी रिपुओं का दमन करने वाले, धुत-मोह५८ (अज्ञान को प्रकंपित करने वाले), जितेन्द्रिय महर्षि सर्व दुःखों के प्रहाण -नाश के लिए पराक्रम करते हैं । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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