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________________ दसवेआलियं ( दशवकालिक ) ४४ अध्ययन ३: श्लोक ४-५ ४-अट्ठावए ___य नालीय छत्तस्स य धारणट्टाए । तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ॥ अष्टापदश्च नालिका छत्रस्य च धारणमनर्थाय। चैकित्स्यमुपानही पादयोः समारम्भश्च ज्योतिषः ॥४॥ अष्टापद२३-शतरंज खेलना । नालिका२४ –नलिका से पासा डाल कर जुआ खेलना । छत्र५. विशेष प्रयोजन के बिना छत्र धारण करना । चैकित्स्य २६...-रोग का प्रतिकार करना, चिकित्सा करना । उपानत्२७ --पैरों में जूते पहनना । ज्योतिः समारम्भ८- अग्नि जलाना। । ५-सेज्जायरपिंडं आसंदीपलियंकए गिहतरनिसेज्जा गायस्सुन्वट्टणाणि शय्यातरपिण्डश्च आसन्दी-पर्य (ल्य)ङ्ककः गृहान्सरनिषद्या गात्रस्योद्वर्तनानि शय्यातरपिण्ड९ स्थान-दाता के घर से भिक्षा लेना । आसंदी-मञ्चिका। पर्य -पलंग पर बैठना । गृहान्तरनिषद्या..भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर बैठना । गात्र-उद्वर्तन33. उबटन करना। च ॥५॥ ६-गिहिणो वेयावडियं जा य आजीववित्तिया । तत्तानिवुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥ गृहिणो वैयापृत्यं या च आजीववृत्तिता। तप्ताऽनिवृतभोजित्वं आतुरस्मरणानि गृहि-वैयापृत्य-गृहस्थ को भोजन का संविभाग देना, गृहस्थ की सेवा करना । आजीववृत्तिता, जाति, कुल, गण, शिल्प और कर्म का अवलम्बन ले भिक्षा प्राप्त करना । तप्तानिर्वृतभोजित्व-अर्द्ध-पक्व सजीव वस्तु का उपभोग करना। आतुरस्मरण-आतुर-दशा में भुक्त भोगों का स्मरण करना। ___ अनिवृत मूलक-सजीव मूली, अनित शृंगबेर-सजीव अदरक, अनित इक्षुखण्ड६ --सजीव इक्षु-खंड, सचित्त कंद --सजीव कंद, सचित्त मूल सजीव मूल, आमक फल-अपक्व फल और आमक बीज-अपक्व बीज - लेना व खाना। ७-मूलए सिंगबेरे य अनिव्वुडे । कंदे मले य सच्चित्ते फले बीए य आमए ॥ मूलकं शृगबेरं इक्षुखण्डमनिर्वृतम् कन्दो मूलं च फलं बीजं सचित्तं चामकम् ॥७॥ ८-सोवच्चले सिंधवे लोणे रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए॥ सौवर्चलं रुमालवणं सामुद्रं काललवणं सैन्धवं लवणं चामकम् । पांशुक्षारश्च चामकम् ॥८॥ आमक सौवर्चल४२–अपक्व सौवर्चल नमक, सैन्धव-पक्व सैन्धव नमक, रुमा लवण --अपक्व रुमा नमक, सामुद्र-अपक्व समुद्र का नमक, पांशु-क्षार---अपक्व ऊषरभूमि का नमक और काल लवण --- अपक्व कृष्ण-नमक-लेना व खाना । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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