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दसवेआलियं ( दशवकालिक )
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अध्ययन ३: श्लोक ४-५
४-अट्ठावए ___य नालीय
छत्तस्स य धारणट्टाए । तेगिच्छं पाणहा पाए समारंभं च जोइणो ॥
अष्टापदश्च नालिका छत्रस्य च धारणमनर्थाय। चैकित्स्यमुपानही पादयोः समारम्भश्च ज्योतिषः ॥४॥
अष्टापद२३-शतरंज खेलना । नालिका२४ –नलिका से पासा डाल कर जुआ खेलना । छत्र५. विशेष प्रयोजन के बिना छत्र धारण करना । चैकित्स्य २६...-रोग का प्रतिकार करना, चिकित्सा करना । उपानत्२७ --पैरों में जूते पहनना । ज्योतिः समारम्भ८- अग्नि जलाना।
।
५-सेज्जायरपिंडं
आसंदीपलियंकए गिहतरनिसेज्जा गायस्सुन्वट्टणाणि
शय्यातरपिण्डश्च आसन्दी-पर्य (ल्य)ङ्ककः गृहान्सरनिषद्या गात्रस्योद्वर्तनानि
शय्यातरपिण्ड९ स्थान-दाता के घर से भिक्षा लेना । आसंदी-मञ्चिका। पर्य -पलंग पर बैठना । गृहान्तरनिषद्या..भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर बैठना । गात्र-उद्वर्तन33. उबटन करना।
च ॥५॥
६-गिहिणो वेयावडियं
जा य आजीववित्तिया । तत्तानिवुडभोइत्तं आउरस्सरणाणि य ॥
गृहिणो
वैयापृत्यं या च आजीववृत्तिता। तप्ताऽनिवृतभोजित्वं आतुरस्मरणानि
गृहि-वैयापृत्य-गृहस्थ को भोजन का संविभाग देना, गृहस्थ की सेवा करना । आजीववृत्तिता, जाति, कुल, गण, शिल्प
और कर्म का अवलम्बन ले भिक्षा प्राप्त करना । तप्तानिर्वृतभोजित्व-अर्द्ध-पक्व सजीव वस्तु का उपभोग करना। आतुरस्मरण-आतुर-दशा में भुक्त भोगों का स्मरण करना। ___ अनिवृत मूलक-सजीव मूली, अनित शृंगबेर-सजीव अदरक, अनित इक्षुखण्ड६ --सजीव इक्षु-खंड, सचित्त कंद --सजीव कंद, सचित्त मूल सजीव मूल, आमक फल-अपक्व फल और आमक बीज-अपक्व बीज - लेना व खाना।
७-मूलए सिंगबेरे य
अनिव्वुडे । कंदे मले य सच्चित्ते फले बीए य आमए ॥
मूलकं शृगबेरं इक्षुखण्डमनिर्वृतम् कन्दो मूलं च फलं बीजं
सचित्तं चामकम् ॥७॥
८-सोवच्चले सिंधवे लोणे
रोमालोणे य आमए । सामुद्दे पंसुखारे य कालालोणे य आमए॥
सौवर्चलं रुमालवणं सामुद्रं काललवणं
सैन्धवं लवणं
चामकम् । पांशुक्षारश्च
चामकम् ॥८॥
आमक सौवर्चल४२–अपक्व सौवर्चल नमक, सैन्धव-पक्व सैन्धव नमक, रुमा लवण --अपक्व रुमा नमक, सामुद्र-अपक्व समुद्र का नमक, पांशु-क्षार---अपक्व ऊषरभूमि का नमक और काल लवण --- अपक्व कृष्ण-नमक-लेना व खाना ।
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