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तइयं अज्झयणं : तृतीय अध्ययन खुड्डियायारकहा : क्षुल्लिकाचार-कथा
मूल
संस्कृत छाया
१-संजमे सुटिअप्पाणं
विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं ॥
संयमे सुस्थितात्मनां विप्रमुक्तानां त्रायिणाम् । तेषामेतदनाचीर्ण निग्रन्थानां महर्षीणाम् ॥१॥
हिन्दी अनुवाद जो संयम में सुस्थितात्मा हैं, जो विप्रमुक्त है२, त्राता हैं,--उन निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिए ये (निम्नलिखित) अनाचीर्ण हैं' (अग्राह्य हैं, असेव्य हैं, अकरणीय हैं)---
२–उद्देसियं कीयगडं
नियागमभिहडाणि य । राइभत्ते
सिणाणे य गंधमल्ले य वीयणे ॥
औद्देशिक क्रीतकृतं नित्याग्रमभिहतानि च। रात्रिभक्त स्नानं च गन्धमाल्ये च वीजनम् ॥२॥
औद्देशिक --निर्ग्रन्थ के निमित्त बनाया गया। क्रोतकृत ...निर्ग्रन्थ के निमित्त खरीदा गया ॥ नित्याग्र-आदरपूर्वक निमन्त्रित कर प्रतिदिन दिया जाने वाला । अभिहत”- निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया गया आहार आदि लेना। रात्रिभक्त१२-रात्रि-भोजन करना। स्नाननहाना। गंध-गंध सूंघना या गन्ध द्रव्य का विलेपन करना । माल्य"--माला पहनना । वीजन .....पंखा झलना।
३-सन्निही गिहिमत्ते य
रायपिंडे किमिच्छए । संबाहणा दंतपहोयणा य संपुच्छणा देहपलोयणा य ॥
संनिधिगृह्यमत्रं राजपिण्डः किमिच्छकः। सम्बाधनं दन्तप्रधावनं च संप्रच्छनं देहप्रलोकनं च ॥३॥
सन्निधि-खाद्य-वस्तु का संग्रह करना...- रात-बासी रखना । गृहि-अमत्र"--- गृहस्थ के पात्र में भोजन करना। राजपिण्डमूर्धाभिषिक्त राजा के घर से भिक्षा लेना। किमिच्छक - 'कौन क्या चाहता है ?' यों पूछ कर दिया जानेवाला राजकीय-भोजन आदि लेना । संबाधन - अंग-मर्दन करना। दंत-प्रधावन२० - दांत पखारना । संप्रच्छन२१ ---गृहस्थ को कुशल पूछना (संप्रोञ्छन -. शरीर के अवयवों को पोंछना)। देहप्रलोकन२२– दर्पण आदि में शरीर देखना ।
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