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________________ २३ दसवेप्रालि ( दशव कानिक) अध्ययन २ : श्लोक १ टि० ३ ३. काम ( कामे ख): काम दो प्रकार के हैं : द्रव्य-काम और भाव-काम ।' विषयासक्त मनुष्यों द्वारा काम्य-ईष्ट शब्द, रूप, गन्ध, रस तथा स्पर्श को काम कहते हैं। जो मोह के उदय के हेतु भूत द्रव्य हैं जिनके सेवन से शब्दादि विषय उत्पन्न होते हैं, वे द्रव्य-काम हैं। भाव-काम दो तरह के हैं- इच्छा-काम और मदन-काम । इच्छा अर्थात् एपणा---चित्त की अभिलाषा । अभिलाषा रूप काम को इच्छा-काम कहते हैं । इच्छा प्रशस्त और अप्रशस्तदो तरह की होती है। धर्म और मोक्ष की इच्छा प्रशस्त इच्छा है। युद्ध की इच्छा, राज्य की इच्छा अप्रशस्त है। वेदोपयोग को मदन-काम कहते हैं। स्त्री-वेदोदय से स्त्री का पुरुष की अभिलाषा करना अथवा पुरुष-वेदोदय से पुरुष का स्त्री की अभिलाषा करना तथा विषय-भोग में प्रवृत्ति करना मदन-काम है । नियुक्तिकार के अनुसार इस प्रकरण में काम शब्द मदन-काम का द्योतक है। नियुक्ति कार का यह कथन -"विषय-सुख में आसक्त और काम-राग में प्रतिबद्ध जीव को काम धर्म से गिराते हैं। पण्डित काम को रोग कहते हैं। जो कामों की प्रार्थना करते हैं वे प्राणी निश्चय ही रोगों की प्रार्थना करते हैं"-मदन-काम से सम्बन्धित है। पर वास्तव में कहा जाय तो श्रमणत्व-पालन करने की शर्त के रूप में अप्रशस्त इच्छा-काम और मदन-काम – दोनों के समान रूप से निवारण करने की आवश्यकता है। १-नि० गा० १६१ : नाम ठवणा कामा दव्वकामा य भावकामा य। २--(क) जि० चू० पृ०७५ : ते इट्ठा सहरसरूवगंधफासा कामिज्जमाणा विसयपसत्तेहि कामा भवति । (ख) हा० टी० पृ० ८५ : शब्दरसरूपगन्धस्पर्शा: मोहोदयाभिभूतैः सत्वैः काम्यन्त इति कामाः । ३-(क) नि० गा० १६२ : सद्दरसरूवगंधाफासा उदयंकरा य जे दवा। (ख) जि० चू० पृ०७५ : जाणि य मोहोदयकारणाणि वियडमादीणि दव्वाणि तेहि अब्भवहरिएहि सहादिणो विसया उदिज्जति एते दव्वकामा। (ग) हा०टी० पृ०८५ : मोहोदयकारीणि च यानि द्रव्याणि संघाटक विकटमांसादीनि तान्यपि मदनकामाख्यभावकाम हेतुत्वात् द्रव्यकामा इति । ४-नि० गा० १६२ : दुविहा य भावकामा इच्छाकामा मयणकामा ॥ ५.-नि० गा० १६२ : हा० टी० पृ० ८५ : तत्रैषणमिच्छा सैव चित्ताभिलाषरूपत्वात्कामा इतीच्छाकामा । ६.नि. गा० १६३ : इच्छा पसत्थमपसत्थिगा य............. | ७---जि० चू० पृ० ७६ : तत्थ पसत्था इच्छा जहा धम्म कामयति मोक्खं कामयति, अपसत्था इच्छा रज्जं वा कामयति जुद्धं वा कामयति एवमादि इच्छाकामा । ८—नि० गा० १६३ : .........."मयणमि वेय उवओगो। है-(क) जि० चू० पृ० ७६ : जहा इत्थी इत्थिवेदेण पुरिसं पत्थेइ, पुरिसोवि इत्थी, एवमादी। (ख) नि० गा० १६२ : १६३ हा० टी०प० ८५-८६ : मदयतीति तथा मदन:-चित्रो मोहोदयः स एव कामप्रवृत्ति हेतुत्वाकामा मदनकामा वेद्यत इति वेदः-स्त्रीवेदादिस्तदुपयोगः- तद्विपाकानुभवनम्, तद्व्यापार इत्यन्ये, यथा स्त्रीवेदोदयेन पुरुषं प्रार्थयत इत्यादि। १०-नि० गा० १६३........... ....... मयणमि वेयउवओगो। तेणहिगारो तस्स उ वयंति धीरा निरुत्तमिणं ॥ ११....नि. गा० १६४-१६५ : विसयसुहेसु पसतं अबुहजणं कामरागपडिबद्ध । उक्कामयंति जीवं धम्माओ तेण ते कामा । अन्नपि य से नाम कामा रोगत्ति पंडिया बिति ॥ कामे पत्थेमाणो रोगे पत्थेइ खलु जन्तू ।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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