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टिप्पण: अध्ययन २
श्लोक १:
१. तुलना यह श्लोक 'संयुक्तनिकाय' के निम्न श्लोक के साथ अद्भुत सामञ्जस्य रखता है।
दुक्करं दुत्तितिक्खञ्च अन्यत्तेन हि सामनं । बहूहि तत्थ सम्बाधा यत्थ बालो विसीदतीति । कतिहं चरेय्य सामनं चित चे न निवारये । पदे पदे विसीदेय्य संकप्पानं वसानुगोति ॥
इस श्लोक का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है :
कितने दिनों तक श्रमण भाव को पालेगा, यदि अपने चित्त को वश में नहीं ला सकता। पद्र-पद में फिसल जायगा, इच्छाओं के अधीन रहने वाला।
संयुक्तनिकाय १।२७ पृ०८ २. कैसे श्रामण्य का पालन करेगा ? ( कहं नु कुज्जा सामण्णं क ) :
'अगस्त्य चूणि' में 'कह' शब्द को प्रकार बाचक माना है और बताया है कि उसका प्रयोग प्रश्न करने में किया जाता है। वहा 'नु' को 'वितर्क' वाचक माना है' । 'कहं नु' का अर्थ होता है-किस प्रकार-कैसे ?
जिनदास के अनुसार 'कहं नु' (सं० कथं नु) का प्रयोग दो तरह से होता है। एक क्षेपार्थ में और दूसरा प्रश्न पूछने में। 'कथं नु स राजा, यो न रक्षति' -वह कैसा राजा, जो रक्षा न करे ! 'कथं नु स वैयाकरणो योऽपशब्दान् प्रयुङ्क्ते'- वह कैसा वैयाकरण जो अपशब्दों का प्रयोग करे ! 'कहं नु' का यह प्रयोग क्षेपार्थक है । कथ नु भगवन् ! जीवाः सुखवेदनीय कर्म बध्नति,'भगवान् ! जीव सुखवेदनीय कर्म का बधन कैसे करते हैं। यहां 'कथं नु' का प्रयोग प्रश्नवाचक है। 'कहं नु कुज्जा सामण्णं' में इसका प्रयोग क्षेप – आक्षेप रूप में हुआ है। आक्षेपपूर्ण शब्दों में कहा गया है-बह श्रामण्य को कैसे निभाएगा जो काम का निवारण नहीं करता ! काम-राग का निवारण श्रामण्य-पालन की योग्यता की पहली कसौटी है ।
जो ऐसे अपराध-पदों के सम्मुख खिन्न होता है, वह श्रामण्य का पालन नहीं कर सकता। शीलांगों की रक्षा के लिए आवश्यक है कि संयमी अपराध-पदों के अवसर पर ग्लानि, खेद, मोह आदि की भावना न होने दे।
हरिभद्र सूरी ने नु' को केवल क्षेपार्थक माना है।
जिनदास ने इस चरण के दो विकल्प पाठ दिये हैं : (१) कइ ऽहं कुज्जा सामण्णं (२) कयाऽहं कुज्जा सामण्णं । 'वह कितने दिनों तक श्रामण्य का पालन करेगा ?' 'मैं श्रामण्य का पालन कब करता हूं'-ये दोनों अर्थ क्रमशः उपरोक्त पाठान्तरों के हैं। तीसरा विकल्प 'कह ण कुज्जा सामण्णं' मिलता है । अगस्त्य चूणि में भी ऐसे विकल्प पाठ हैं तथा चौथा विकल्प 'कहं स कूज्जा सामण्णं' दिया है ।
१- अ० चू० पृ० ३८ किसद्दोक्खेवे पुच्छाए य व? ति, खेवो जिंदा हसद्दो प्रकारवाचीति नियमेण पुच्छाए बट्टति । णु-सद्दो
वितक्के प्रकार वियकेति, केण णु प्रकारेण सो सामण्णं कुज्जा। २--जि० चू० पृ० ७५ : कहणुत्ति-कि-केन प्रकारेण । ... कथं नु शब्दः क्षेपे प्रश्ने च वर्तते । ३ --हा० टी० पृ० ८५ : 'क' केन प्रकारेण, नु क्षेपे, यथा कथं नु स राजा यो न रक्षति !, कथं नु स वैयाकरणो योऽप
शब्दान् प्रयुङ्क्ते !
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