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________________ ५११ रइवक्का (रतिवाक्या) प्रथम चूलिका : टि० ६-७ बताया है कि समर्थ व्यक्तियों के लिए भी जीविका का निर्वाह कठिन है तब औरों की बात ही क्या ? राज्याधिकारी, व्यापारी और नौकर-ये सब अपने-अपने प्रकार की कठिनाइयों में फंसे हुए हैं। ६. स्वल्प-सार-रहित (तुच्छ) (लहुस्सगा) : जिन वस्तुओं का स्व (आत्म-तत्त्व) लघु (तुच्छ या असार) होता है, उन्हें 'लघुस्वक' कहा जाता है । पूणि और टीका के अनुसार काम-भोग कदलीगर्भ की तरह और टीका के शब्दों में तुषमुष्टि की तरह असार हैं। ७. माया-बहुल होते हैं ( साइबहुला ) : 'साचि' का अर्थ कुटिल है । 'बहुल' का प्रयोग धूणियों के अनुसार प्रायः५ और टीका के अनुसार प्रचुर के अर्थ में है। 'साई' असत्य-वचन का तेरहवाँ नाम है । प्रश्न व्याकरण की वृत्ति में उसका अर्थ अविश्वास किया है । असत्य-बचन अविश्वास का हेतु है, इस लिए 'साइ' को भी उसका नाम माना गया । टीका में इसका संस्कृत रूप 'स्वाति' किया है । डा. वाल्टर शुदिंग ने 'स्वाति' को त्रुटिपूर्ण माना है। 'स्वाद' का एक अर्थ कलुषता है" । 'चूरिंग और टीका में यही अर्थ है ।। 'साय' (सं-स्वाद) का अर्थ भी माया हो सकता है। हमने इसका संस्कृत रूप ‘साची' किया है। ‘साची' तिर्यक् का पर्यायवाची नाम है। 'साइब्रहला' का आशय यह है कि जो पारिवारिक लोग हैं, वे एक दूसरे के प्रति विश्वस्त नहीं होते, बैसी स्थिति में जाकर मैं क्या सुख पाऊँगा--ऐसा सोच धर्म में रति करनी चाहिए । संयम को नहीं छोड़ना चाहिए । १- (क) अ० चू० : दुक्खं एत्य पजीव साधगाणि संपातिज्जतीति ईसरेहि कि पुण सेसेहि ? रायादियाण चिताभरेहि, वणियाण भंडविणएहि, सेसाण पेसणेहि य जीवणसंपादणं दुक्खं । (ख) जि० चू० पृ० ३५३ : दुप्पजीवी नाम दुक्खेण प्रजीवणं, आजीविआ। (ग) हा० टी०प० २७२ : दुःखेन कृच्छे ण प्रकर्षेणोदारभोगापेक्षया जीवितु शीला दुष्प्रजीविनः । २--- अ० चू० : लहुसगाइत्तरकाला कदलीगम्भवदसारगा जम्हा गिहत्थ भोगे चतिऊण रति कुणइ धम्मे । ३–हा० टी०१० २७२ : सन्तोऽपि 'लघवः' तुच्छाः प्रकृत्यैव तुषमुष्टिवदसाराः । ४-० चू० : साति कुडिलं। ५.-- (क) अ० चू० : बहुलमिति पायो वृत्ति। (ख) जि० चू० पू० ३५४ : बहुला इति पायसो। ६-हा० टी० ५० २७२ : "स्वातिबहुला' मायाप्रचुरा । ७-प्रश्न आस्रवद्वार २। । ८-प्रश्न आस्रवद्वार २: साति-अविश्रम्भः । ६-दसवेआलिय सुत्त पृ० १२६ : साय-बहुल =स्वाति (wrong for स्वात्ति) बहुल, मायाप्रचुर H. I think that the sense of this phrase is as translatad. १०-A Dictionary of Urdu, Classical Hindi and English, Page 691 : Blackness, The black or inner part of the heart. ११-अ० चि० ६.१५१ : तिर्यक् साचिः । १२---(क) अ० चू० : पुणो २ कुडिल हियया प्रायेण भुज्जो सातिबहुला मणुस्सा । (ख) जि० चू० पृ० ३५४ : सः तिकुडिला, बहुला इति पायसो, कुडिलहियओ पाएण भुज्जो य साइबहुल्ला मणुस्सा। (ग) हा० टी०प० २७२ : न कदाचिद्विश्रम्भहेतवोऽमी, तद्रहितानां च कीदृक्सुखम् ? तथा मायाबंधहेतुत्वेन दारुणतरो बन्ध इति किं गृहाश्रमेणेति संप्रत्युपेक्षितव्यमिति । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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