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________________ रतिवाक्या : प्रथम चूलिका सूत्र १: १. किन्तु उसे मोहवश दुःख उत्पन्न हो गया (उप्पन्नदुक्खेणं) दुःख दो प्रकार के होते है : १. शारीरिक और २. मानसिक। शीत, उष्ण आदि परीषह शारीरिक दुःख हैं और काम, भोग, सत्कार, पुरस्कार आदि मानसिक । संयम में ये दोनों प्रकार के दुःख उत्पन्न हो सकते हैं।' २. (ओहाण) : अवधावन का अर्थं पीछे हटना है । यहाँ इसका आशय है संयम को छोड़ वापस गृहस्थवास में जाना । ३. पोत के लिए पताका (पोयपडागा): पताका का अर्थ पतवार होना चाहिए। पतवार नौका के नियन्त्रण का एक साधन है। जिनदास महत्तर और टीकाकार ने 'पताका' तथा अगस्त्यसिंह स्थविर ने 'पटागार' का अर्थ नौका का पाल किया है। वस्त्र के बने इस पाल के कारण नौका लहरों से क्षुब्ध नहीं होती और उसे इच्छित स्थान की ओर ले जाया जा सकता है। ४. ओह ! (हं भो): 'हं' और 'भो'—ये दोनों आदर-सूचक सम्बोधन हैं । घुणिकार इन दोनों को भिन्न मानते हैं और टीकाकार अभिन्न ।' ५. लोग बड़ी कठिनाई से जीविका चलाते हैं (दुप्पजीवी) : अगस्त्य धूणि में 'दुःपजीवं' पाठ है। इसका अर्थ है-जीविका के साधनों को जुटाना बड़ा दुष्कर है। पूर्णिकार ने आगे १-(क) जि० चू० पृ० ३५२ : दुक्खं दुविधं --सारीरं माणसं वा, तत्थ सारोरं सीउण्हदंसमसगाइ, माणसं इत्थीनितीहियक्कारपरी सहादीणं एवं दुविहं दुक्खं उत्पन्नं जस्स तेण उप्पण्णदुक्खेण । (ख) हा० टी० प० २७२ : 'उत्पन्नदुःखेन' संजातशीतादिशारीरस्त्रीनिषद्याबिमानसदःखेन । २-(क) जि० चू० पु० ३५२, ३५३ : अवहावणं अवसप्पणं अतिक्कमणं, संजमातो अवक्कमणमवहावणं । (ख) हा० टी०प० २७२ : अवधावनम् -अपसरणं संयमात् । ३-(क) जि० चू० पु० ३५३ : जाणवत्त-पोतो तस्स पडागा सीतपडो, पोतोऽवि सीयपडेण विततेण वीयोहि न खोहिज्जइ, इच्छियं च देसं पाविज्जई। (ख) हा० टी० प० २७२ : अश्वखलिनगजाकुशबोहित्यसितपटलुल्यानि । (ग) अ० चू० : जाणवत्तं पोतो तस्स पडागारोसीतपडो। पोतो वि सीतपडेण विततेण वीचिहि ण खोभिज्जति, इच्छितं च देसं पाविज्जति । ४-जि० चू० पृ० ३५३ : हंति भोति संबोधनद्वयमादराय । ५-हा० टी०प० २७२ : हंभो-शिष्यामन्त्रणे । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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