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दसवेआलियं (दशर्वकालिक )
अध्ययन १ आमुख
इस अध्ययन में दुम-पुष्प और मधुकर उपमान हैं तथा यथाकृत आहार और श्रमण उपमेय । यह देश उपमा है'। नियुक्ति के अनुसार मधुकर की उपमा के दो हेतु हैं - ( १ ) अनियत-वृत्ति और (२) अहिंसा-पालन' ।
अनियत वृत्ति का सूचन- 'जे भवंति प्ररिस्सिया'३ (१.५) और अहिंसा पालन का सूचन न य पुफ्फं किलामेइ, सो य पीरणेइ अप्पयं' ( १.२ ) से होता है। दुम- पुष्प की उपमा का हेतु है— सहज निष्पन्नता । इसका सूचक 'ग्रहागडेसु रीयंति, पुप्फेसु भमरा जहा ' (१.४) यह श्लोकाई है।
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हिंसा - पालन में श्रमण क्या ले और कैसे ले इन दोनों प्रश्नों पर विचार हुआ है और अनियत वृत्ति में केवल कैसे ले, इसका विचार है । कैसे ले - यह दूसरा प्रश्न है। पहला प्रश्न है- क्या ले ? इससे मधुकर की अपेक्षा द्रुम-पुष्प का सम्बन्ध निकटतम है । भ्रमर के लिए सहजरूप से भोजन प्राप्ति का आधार द्रुम-पुष्प ही होता है। माधुकरी वृत्ति का मूल केन्द्र द्रुम-पुष्प है। उसके बिना यह नहीं सती मपुप्प की इस अनिवार्यता के कारण 'हम पुष्पिका' शब्द समूची माधुकरी-वृत्ति का योग्यतम प्रतिनिधित्व करता है। इस अध्ययन में श्रमण को भ्रामरी-वृत्ति से प्राजीविका प्राप्त करने का बोध दिया गया है। इस वृत्ति का सूचन दुम- पुष्पिका शब्द से अच्छी तरह होता है, अतः इसका नाम द्रुम-पुप्पिका है। यहाँ यह स्मरणीय है कि सूत्रकार का प्रधान प्रतिपाद्य है-धर्म के आचरण की सम्भवता । निःसन्देह यह अध्ययन अहिंसा और उसके प्रयोग का निर्देशन है। महिसा धर्म की पूर्ण धाराधना करनेवाला चमरण पने जीवननिर्वाह के लिए भी हिंसा न करे, यथाकृत ग्राहार ले तथा जीवन को संयम और तपोमय बना कर धर्म और धार्मिक की एकता स्थापित करे ।
धार्मिक का महत्व धर्म होता है। धर्म की है वह धार्मिक की प्रशंसा है और धार्मिक की प्रशंसा है वह धर्म की प्रशंसा है। धार्मिक और धर्म के इस यभेद को लक्षित कर ही नियुक्तिकार भद्रबाहु ने कहा है- धम्मपा" (नि० गा० २०) पहले अध्ययन में
धर्म की प्रशंसा - महिमा है ।
१ (क) नि० वा० २१
भमरोति य एवं विट्ट तो होह आहरणदेसे ।
(ख) नि० गा० ६७ : एवं भमराहरणे अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं । गहणं ...
२- नि० गा० १२६ : उवमा खलु एस कया पुव्वुत्ता देसलक्खणोवणया । अणिययवित्तिनिमित्तं अहिंसअणुपालणट्ठाए || २० टी० [१०] ७२ 'अनिधिताः कुलाविषु अप्रतिबद्धाः ।
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