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- भिक्खु (भिक्षु )
अध्ययन १० : श्लोक ४-५ टि० १८-२२ भीतर पकाए और स्वयं पकाए को खाए उसे दुक्कट का दोष हो और द्वार पर पकाए तो दोष नहीं, बाहर रखे, बाहर पकाए किन्तु -दूसरों द्वारा पकाए का भोजन करे तो दोष नहीं ।"
रखे,
एक बार राजगृह में दुर्भिक्ष पड़ा । बाहर रखने से दूसरे ले जाते थे । बुद्ध ने भीतर रखने की अनुमति दी । भीतर रखवाकर बाहर पकाने में भी ऐसी ही दिक्कत थी । बुद्ध ने भीतर पकाने की अनुमति दी । दूसरे पकाने वाले बहु भाग ले जाते थे । बुद्ध ने स्वयं पकाने की अनुमति दी नियम हो गया अनुमति देना भीतर रखे भीतर पकाए और हाथ से पकाए की ""
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श्लोक ४ :
१८. औदेशिक ( उद्देसियं ग ) :
इसके अर्थ के लिए देखिए दश० ३.२ का अर्थ और टिप्पण ।
११. न पकाता है और न पकवाता है ( नो वि पए न पयावए प ) :
'पकाते की अनुमोदना नहीं करता' इतना अर्थ यहाँ और जोड़ लेना चाहिए। पकाने और पकवाने में त्रस स्थावर दोनों प्रकार के प्राणियों की हिंसा होती है अतः मन, वचन, काया से तथा कृत, कारित, अनुमोदन से पाक का वर्जन किया गया है।
श्लोक २ और ३ में स्थावर जीव (पृथ्वीकाय, अकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय का खनन आदि क्रियाओं द्वारा वध करने का निषेध किया गया है। श्लोक ४ में ऐसे कार्यों का निषेध आ जाता है, जिसमें त्रस स्थावर जीवों का घात हो । त्रस जीवों के घात का वर्जन भी अनेक स्थलों पर आया है ।
देखिए -४ सू० २३; ६.४३,४४,४५ ।
इलोक ५ ) :
२०. आत्म-सम मानता है ( अससमे मन्नेज्ज
जैसे दुःख मुझे अप्रिय है वैसे ही छह ही प्रकार के जीव- निकायों को अप्रिय है जो ऐसी भावना रखता है तथा किसी जीव की हिंसा नहीं करता, वही सब जीवों को आत्मा के समान मानने वाला होता है । इसी आगम में साधु को बार-बार 'छसु संजए' - छह ही प्रकार के जीवों के प्रति संयमी रहने वाला कहा गया है।
देखिए -४ सू० १०; ६.८,६,१०; ७.५६; ८.२,३ 1
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२१. पालन करता है ( फासे ग ) :
'स्पर्श' शब्द का व्यवहार साधारणतः 'छूने' के अर्थ में होता है । आगम- साहित्य में इसका प्रयोग पालन या आचरण के अर्थ में भी होता है। यहां 'स्पृश्' धातु पालन या सेवन के अर्थ में व्यवहृत है ।
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२२. पाँच आस्रवों का संवरण करता है ( पंचासवसंवरे प )
पाँच आस्रवों की गिनती दो प्रकार से की जाती है :
१. मियात्व अविरति प्रमाद, रूपाय और योग ।
२. स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ।
१ वि० पि० म० अ० ३.८ ।
२ - वि० पि० म० अ० ६ ।
३ - उस० १०.२० ।
४ - हा० टी० प० २६५ : सेवते महाव्रतानि ।
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