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टिप्पण: अध्ययन १०
श्लोक १:
१. ( निक्खम्ममाणाए ) :
यहाँ मकार अलाक्षणिक है । २. तीर्थंकर के उपदेश से ( आणाए क ):
आज्ञा का अर्थ वचन, सन्देश', उपदेश' या आगम है । इसका पाठान्तर 'आदाय' है । उसका अर्थ है ग्रहणकर अर्थात् तीर्थङ्करों की वाणी को स्वीकार कर।
३. निष्क्रमण कर (प्रव्रज्या ले) ( निक्खम्म क ):
निष्क्रम्य का भावार्थ--- अगस्त्य चूणि' में घर या आरम्भ-समारम्भ से दूर होकर, सर्वसंग का परित्याग कर किया है। जिनदास चूरिण में गृह से या गृहस्थभाव से दूर होकर द्विपद आदि को छोड़कर किया है। टीका में द्रव्य-गृह और भाव-गृह से निकल (प्रवज्या ग्रहण कर) किया है ।
द्रव्य-गृह का अर्थ है-घर । भाव-गृह का अर्थ है गृहस्थ-भाव ---गृहस्थ-सम्बन्धी प्रपंच और सम्बन्ध । इस तरह चूर्णिकार और टीकाकार के अर्थ में कोई अन्तर नहीं है । टीकाकार ने चूणिकार के ही अर्थ को गूढ़ रूप में रखा है।
४. निर्ग्रन्थ-प्रवचन में ( बुद्धवयणे) :
तत्त्वों को जानने वाला अथवा जिसे तत्त्वज्ञान प्राप्त हुआ हो, वह व्यक्ति बुद्ध कहलाता है। जिनदास महत्तर यहाँ एक प्रश्न उपस्थित करते हैं । शिष्य ने कहा कि 'बुद्ध' शब्द से शाक्य आदि का बोध होता है। आचार्य ने कहा-यहाँ द्रव्य-बुद्ध-पुरुष (और द्रव्यभिक्षु ) का नहीं, किन्तु भाव-बुद्ध-पुरुष (और भाव-भिक्षु) का ग्रहण किया है । जो ज्ञानी कहे जाते हैं पर सम्यक्-दर्शन के अभाव से जीवाजीव
१-अ० चू० : आणा वयणं संदेसो वा। २-हा० टी०प० २६५ : 'आज्ञया' तीर्थकरगणधरोपदेशेन । ३-जि० चु०१० ३३८ : आणा वा आणत्ति नाम उववायोत्ति वा उवदेसोत्ति वा आग मोत्ति वा एगट्ठा । ४--जि. चू० पृ० ३३७ : अथवा आदाय, 'बुद्धवयणं' बुद्धाः---तीर्थकराः तेषां वचनमादाय गृहीत्वेत्यर्थः । ५-अ० चू० : निक्खम्म निक्खम्मिऊण निग्गच्छिऊण गिहातो आरंभातो वा। ६-जि० चू० पृ० ३३७ : निष्क्रम्य, तीर्थकरगणधराज्ञया निष्क्रम्य सर्वसंगपरित्यागं कृत्वेत्यर्थः......"निक्खम्म नाम गिहाओ गिहत्थ
भावाओ वा दुपदादीणि य चइऊण । ७-हा० टी० प० २६५ : 'निष्क्रम्य' द्रव्यभावगृहात प्रव्रज्यां गृहीत्वेत्यर्थः ।
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