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दसवेलियं (दशर्वकालिक)
श्लोक १२ :
२५. जो लज्जित नहीं करता, उनकी निन्दा नहीं करता (होलए - सिएज्जा ) :
अगस्यसह ने किसी को उसके दुश्चरित्र की स्मृति कराकर लज्जित करने को होलना और बार-बार लज्जित करने को सिना माना है ।" जिनदास महत्तर ने दूसरों को लज्जित करने के लिए अनीश्वर को ईश्वर और दुष्ट को भद्र कहना हीलना है - ऐसा माना है ओर खिसना के पाँच कारण माने हैं :
(१) जाति से, यथा - तुम मलेच्छ जाति के हो ।
(२) कुल से, यथा -- तुम जार से उत्पन्न हुए हो ।
(३) कर्म से, यथा- तुम मूर्खों से सेवनीय हो ।
(४) शिल्प से, यथा- तुम चमार हो ।
४६० अध्ययन (तृ०ड०) श्लोक १२-१३ टि० २५-२७
:
(५) व्याधि सेवा तुम कोड़ी हो ।
आगे चलकर हीलना और खिसना का भेद स्पष्ट करते हुए कहते हैं :
दुर्वचन से किसी व्यक्ति को एक बार लज्जित करना 'होलना' और बार-बार लज्जित करना 'खिसना' है, अथवा अतिपरुष वचन कहना 'हीलना' और सुनिष्ठुर वचन कहना 'खिसना' हैं ' ।
टीकाकार ने ईर्ष्या या अन ईर्ष्या से एक बार किसी को 'दुष्ट' कहना हीलना और बार-बार कहना खिसना - ऐसा माना है ।
श्लोक १३:
२६. श्लोक १३:
अगस्त्य 'घूर्ण और टीका' के अनुसार 'तवस्सी, जिईदिए, सच्चरए'-- ये 'पूज्य' के ये माना- आचार्य के विशेषण हैं । अनुवाद में हमने इस अभिमत का अनुसरण किया है। इस प्रकार होगा- 'जो तपस्वी है, जो जितेन्द्रिय है, जो सत्यरत हैं ।'
२७. ( सच्चरए प ) :
सत्यरत अर्थात् संयम में रत देखिए, पूर्वोक्त टिप्पणी के पादटिप्पण सं० ४-६ ॥
१- अ० ० : पुण्वदुच्चरितादि लज्जावणं होलणं, अंबाडणाति किलेसणं खिसणं ।
२- जि० ० ० ३२३ तत्थ होला जहा सूया अगीसरं ईसरं भण्ण, बुद्ध भगं भगद, एवमादि लिसी अनुवाद जाइतो कुलओ कम्यायो सियो बाहिओ वा भवति, जाओ जहा तुम तो कुलओ जहा तुम जारजाओ, कम्म जहां तुम
जढेहि भयणीज्जो, सिप्पयो जहा तुमं सो चम्मगारो, वाहिओ जहा तुमं सो कोढिओ, अहवा हीलनाखिसणाण इमो विसेसोहोला नाम एकवारं वशियरस भवड, पुजो २ लिसा भव ।
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विशेषण हैं और जिनदास चूर्णि के अनुसार पूर्वोक्त अभिमत के अनुसार इसका अनुवाद
३ - हा० टी० प० २५४
सूयया असूयया वा सकृद् दुष्टाभिधानं हीलनं, तदेवासकृत्खसनमिति ।
४- अ० चू० : बारस बिहे तपोरते तबस्सी, जितसोतादिदिए, सच्चं संजमो तंमि जधा भणित विणयसक्चकरणे वा रते सच्चरते स एव पुज्जो भवति ।
५- हा०
टी० प० २५५ तपस्वी सन् जितेन्द्रियः सत्यरत इति, प्राधान्यख्यापनार्थं विशेषणद्वयम् ।
६- जि० चू० पू० २२३ : तवस्सी णाम तवो वारसविधो सो जेसि आयरियाणं अत्थि ते तवस्सिणो, जिइदिए नाम जियाणि सोयाईणि दिपाणि जेहि ते हिंदिया, सच्चं पुण भणियं जहा बक्कमुद्धीए रिओ सध्वर ।
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