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विषय-सूची
१४ आचार-निष्णातता। , १५ गुरु की परिचर्या और उसका फल। नवम अध्ययन : विनय-समाधि (चतुर्थ उददेशक): (विनय-समाधि के स्थान)
४६२-४७३ सूत्र १,२,३, समाधि के प्रकार । , ४ विनय-समाधि के चार प्रकार ।
५ श्रुत-समाधि के चार प्रकार । ६ तप:समाधि के चार प्रकार।
७ आचार-समाधि के चार प्रकार। श्लोक ६,७ समाधि-चतुष्टय की आराधना और उसका फल । दशम अध्ययन : सभिक्षु (भिक्षु के लक्षण और उसकी अर्हता का उपदेश)
४७५-५०० १ चित्त-समाधि, स्त्री-मुक्तता और वान्त-भोग का अनासेवन । , २,३,४ जीव-हिंसा, सचित व औद्देशिक आहार और पचन-पाचन का परित्याग ।
५ श्रद्धा, आत्मौपम्यबुद्धि, महाव्रत-स्पर्श और आश्रव का संवरण । ६ कषाय-याग, ध्र व-योगिता, अकिंचनता और गृहि-योग का परिवर्जन । ७ सम्यग्दष्टि, अमूढ़ता, तपस्विता और प्रवृत्ति-शोधन । ८ सन्निधि-बजन। ६ सार्मिक-निमंत्रणपूर्वक भोजन और भोजनोत्तर स्वाध्याय-रतता। १० कलह-कारक-कथा का वर्जन, प्रशान्त भाव आदि । ११ सुख-दुख में समभाव। १२ प्रतिमा-स्वीकार, उपसर्गकाल में निर्भयता और शरीर की अनासक्ति । १३ देह-विसर्जन, सहिष्णुता और अनिदानता। १४ परीषह-विजय और श्रामण्य-रतता। १५ संयम, अध्यात्म-रतता और सूत्रार्थ-विज्ञान । १६ अमूर्छा, अज्ञात-भिक्षा, क्रय-विक्रय वर्जन और निस्संगता। १७ अलोलुपता, उंछचारिता और ऋद्धि आदि का त्याग। १८ वाणी का संयम और आत्मोत्कर्ष का त्याग । १६ मद-वर्जन । २० आर्यपद का प्रवेदन और कुशील लिंग का वर्जन।
२१ भिक्षु की गति का निरूपण । प्रथम चूलिका : रतिवाक्या (संयम में अस्थिर होने पर पुनः स्थिरीकरण का उपदेश)
५०१-५१६ सूत्र १ मंयम में पुनः स्थिरीकरण के १८ स्थानों के अवलोकन का उपदेश और उनका निरूपण । श्लोक २-८ भोग के लिये संयम को छोड़ने वाले को भविष्य की अनभिज्ञता और पश्चात्तापपूर्ण मनोवृत्ति का
उपमापूर्वक निरूपण।
श्रमण-पर्याय की स्वर्गीयता और नारकीयता का सकारण निरूपण । १० व्यक्ति-भेद से श्रमण-पर्याय में सुख:दुख का निरूपण और श्रमण-पर्याय में रमण करने का उपदेश। ११,१२ संयम-भ्रष्ट श्रमण के होने वाले ऐहिक और पारलौकिक दोषों का निरूपण ।
१३ संयम-भ्रष्ट की भोगासक्ति और उसके फल का निरूपण । १४,१५ संयम में मन को स्थिर करने का चिन्तन-सत्र । , १६ इन्द्रिय द्वारा अपराजेय मानसिक संकल्प का निरूपण। , १७-१८ विषय का उपसंहार ।
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