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दसवेआलियं (दशवकालिक)
नवम अध्ययन : विनय-समाधि (प्रथम उददेशक): (विनय से होनेवाला मानसिक स्वास्थ्य)
४२३-४३४ श्लोक १ आचार-शिक्षा के वाधक तत्व और उनसे ग्रस्त श्रमण की दशा का निरूपण।
, २,३,४ अल्प-प्रज्ञ, अल्प-वयस्य या अल्प-श्रुत की अवहेलना का फल । ,, ५-१० आचार्य की प्रसन्नता और अवहेलना का फल । उनकी अबहेलना की भय करता का उपमापूर्वक निरूपण और
उनको प्रसन्न रखो का उपदेश । ११ अनन्त-ज्ञानी को भी आचार्य की उपासना करने का उपदेश । १२ धर्मपद-शिक्षक गुरु के प्रति विनय करने का उपदेश ।
१३ विशोधि के स्थान और अनुशासन के प्रति पूजा का भाव । १४,१५ आचार्य की गरिमा और भिक्षु-परिषद में आचार्य का स्थान ।
१६ आचार्य की आराधना का उपदेश ।
, १७ आचाय की आराधना का फल । नवम अध्ययन : विनय-समाधि (द्वितीय उद्देशक) : (अविनीत, सुविनीति की आपदा-सम्पदा)
४३५-४४८ , १,२ द्रुम के उदाहरण पूर्वक धर्म के मूल और परम का निदर्शन। , ३ अविनीत आत्मा का संसार-भ्रमण ।
४ अनुशासन के प्रति कोप और तज्जनित अहित । ५-११ अविनीत और सुविनीत की आपदा और सम्पदा का तुलनात्मक निरूपण । , १२ शिक्षा-प्रवृद्धि का हेतु- आज्ञानुवर्तिता। ,१३,१४,१५ गृहस्थ के शिल्पकला सम्बन्धी अध्ययन और विनय का उदाहरण ।
शिल्पाचार्य कृत यातना का सहन ।
यातना के उपरान्त भी गुरु का सत्कार आदि करने की प्रवृत्ति का निरूपण । १६ धर्माचार्य के प्रति आज्ञानुबतिता की सहजता का निरूपण । १७ गुरु के प्रति नम्र व्यवहार की विधि । १८ अविधिपूर्वक स्पर्श होने पर क्षमा याचना की विधि । १६ अविनीत शिष्य की मनोवृत्ति का निरूपण । २० विनीत की सूक्ष्म-दृष्टि और विनय-पद्धति का निरूपण । २१ शिक्षा का अधिकारी। २२ अविनीत के लिये मोक्ष की असंभावना का निरूपण।
२३ विनय-कोविद के लिए मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन। नवम अध्ययन : विनय-समाधि (तृतीय उद्देशक) : (पूज्य कौन ? पूज्य के लक्षण और उसकी अर्हता का उपदेश)
४४६-४६१ १ आचार्य की सेवा के प्रति जागरूकता और अभिप्राय की आराधना। २ आचार के लिए विनय का प्रयोग, आदेश का पालन और पाशातना का वर्जन। ३ रानिकों के प्रति विनय का प्रयोग । गुणाधिक्य के प्रति नम्रता, वन्दनशीलता और आज्ञानुवर्तिता। ४ भिक्षा-विशुद्धि और लाभ-अलाभ में समभाव । ५ सन्तोष-रमण। ६ वचनरूपी कांटों को सहने की क्षमता। ७ बचनरूपी कांटों की सुदुःसहता का प्रतिपादन। ८ दौर्मनस्य का हेतु मिला पर भी सौमनस्य को बनाए रखना। ६ सदोष भाषा का परित्याग । १० लोलुपता आदि का परित्याग। ११ आत्म-निरीक्षण और मध्यस्थता। १२ स्तब्धता और क्रोध का परित्याग । १३ पूज्य-पूजन, जितेन्द्रियता और सत्य-रतता।
श्लोक
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