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________________ विजयसमाही (विनय- समाधि ) १५ आहिताग्निब्राह्मण (आहियोक) : वह ब्राह्मण जो अग्नि की पूजा करता है और उसकी सतत ज्वलित रखता है, आहिताग्नि कहलाता है' । १६. आहुति ( आई ख देवता के उद्देश्य से मन्त्र पढ़कर अग्नि में घी आदि डालना । ) १७. मन्त्रपदों से ( मंतपय ख ) : मन्त्रपद का अर्थ 'अग्नये स्वाहा' आदि मन्त्र वाक्य हैं। जिनदास णि में 'पद' का अर्थ 'क्षीर' किया है' । श्लोक १२ : १८] धर्म-पदों को धम्मपाइ ) वे धार्मिक वाक्य जिनका फल धर्म का बोध हो । ४३३ अध्ययन (प्र० उ०) श्लोक ११-१३ टि० १५-२० श्लोक ११: २०. लज्जा ( लज्जा इसका अर्थ है क ग १६. शिर को झुकाकर हाथों को जोडकर ( सिरसा पंजलीओ " ) ये शब्द 'पञ्चाङ्ग-वंदन' विधि की ओर संकेत करते हैं। अगस्त्य सिंह स्थविर और जिनदास महत्तर ने इसका स्पष्ट उल्लेख किय है । दोनों घुटनों को भूमि पर टिका कर, दोनों हाथों को भूमि पर रखकर उस पर अपना मस्तक रखे – यह पंचाङ्ग (दो पैर, दो हाथ और एक शिर) - वंदन की विधि है। टीकाकार ने इस विधि का कोई उल्लेख नहीं किया है। बंगाल में नमस्कार की यह विधि आज भी प्रचलित है। श्लोक १३ : क Jain Education International ): - अकरणीय का भय या अपवाद का भय । १- (क) अ० चू० : आहिअग्गी-एस वेदवादो जधा हव्ववाहो सव्वदेवाण हन्वं पावेति अतो ते तं परमादरेण हुणंति । (ख) जि० चू० पृ० ३०६ : आहियअग्गी- बंभणो । (ग) हा० टी० प० २४५ २ (क) जि० ० पृ० ३०६ (ख) हा० टी० प० २४५ ३ - हा० टी० प० २४५: मंत्रपदानि - अग्नये स्वाहेत्येवमादीनि । आहिताग्निः कृतवाह्मणः । वाणाविणणयादिणा मंत' उच्चारेण बल आहुतयो - घृतप्रक्षेपादिलक्षणा । ४ - जि० ० पृ० २०६ : पवं खोरं भण्णइ । ५ - हा० ० टी० प० २४५ : 'धर्मपदानि' धर्मफलानि सिद्धान्तपदानि । ६ - ( क ) अ० ० : सिरसा पंजलितोत्ति - एतेन पंचं गितस्स वंदन गहणं जादुलपति सिर व भूमिए पिऊण (ख) जि० चू० पृ० २०६ : पंचंगीएण वंदणिएण, जहा जानुबुगं भूमीए निर्वाडएण हत्थदुएण भूमीए अवटू मिय ततो सिरं पंचमं निवाएगा। ७ - (क) अ० चु० : अकरणिज्जसंकणं लज्जा । (ख) जि० चू० पृ० ३०६ : लज्जा अववादभयं । (ग) हा० टी० प० २४६ : 'लज्जा' अपवादभयरूपा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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