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विणयसमाही (विनय-समाधि)
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अध्ययन ६ (प्र० उ०): श्लोक २ टि० ५-६
५. विनाश ( अभूइभावो ग ):
अभूति भाव-'भूति' का अर्थ है विभव या ऋद्धि। भूति के अभाव को 'अभूतिभाव' कहते हैं। यह अगस्त्य चणि और टीका की व्याख्या है। जिनदास चूर्णि में अभूतिभाव का पर्याय शब्द बिनाशभाव है। ६. कीचक (बांस) का ( कीयस्स घ):
हवा से शब्द करते हुए बांस को कीचक कहते हैं । वह फल लगने पर सूख जाता है। इसकी जानकारी चूणि में उद्धृत एक प्राचीन श्लोक से मिलती है । जैसे कहा है-चींटियों के पर, ताड़, कदली और हरताल के फल तथा अविद्वान्- अविवेकशील व्यक्ति का ऐश्वर्य उन्हीं के विनाश के लिए होता है।
तुलना-यो सासनं अपहतं अरियानं धम्मजीविनं।
पटिक्कोसति दुम्मेधो दिद्धि निस्साय पापिकं ॥
फलानि कट्टकस्सेव अत्तहजाय फुल्लति ॥ ( धम्मपद १२.८ ) --जो दुईद्धि मनुष्य अरहन्तों तथा धर्म-निष्ठ आर्य-पुरुषों के शासन की, पापमयी दृष्टि का आश्रय लेकर, अवहेलना करता है, वह आत्मघात के लिए बांस के फल की तरह प्रफुल्लित होता है।
श्लोक २: ७. ( होलंति "):
संस्कृत में अवज्ञा के अर्थ में 'हील' धातु है । अगस्त्य धुणि में इसका समानार्थक प्रयोग 'ह्र पयंति' और 'अहियालेति' है।
८. मंद ( मंदि क ) :
मन्द का अर्थ सत्प्रज्ञाविकल—अल्पबुद्धि है। प्राणियों में ज्ञानावरण के क्षयोपशम की विचित्रता होती है। उसके अनुसार कोई तीव्र बुद्धि वाला होता है --तन्त्र, युक्ति आदि की आलोचना में समर्थ होता है और कोई मन्द बुद्धि वाला होता है-उनकी आलोचना में समर्थ नहीं होता। ६. आशातना ( आसायण घ):
आशातना का अर्थ विनाश करना या कदर्थना करना है। गुरु की लघुता करने का प्रयत्न या जिससे अपने सम्यग्दर्शन का ह्रास हो, उसे आशातना कहते हैं । भिन्न-भिन्न स्थलों में इसके प्रतिकूल वर्तन, विनय-भ्रंश, प्रतिषिद्धकरण, कदर्थना आदि ये भिन्न-भिन्न अर्थ भी मिलते है।
१-(क) अ० चू० पृ० २०६ : भूतीभावो ऋद्धी भूतीए अभावो अभूतिभावो ।
(ख) हा० टी० ५० २४३ : 'अभूतिभाव' इति अभूते वोऽभूतिभावः, असंपद्भाव इत्यर्थः । २-जि० चू० पृ० ३०२ : अभूतिभावो नाम अभूतिभावोत्ति वा विणासभावोत्ति वा एगट्ठा। ३-अ० चि० ४.२१६ : स्वनन् वातात् स कीचकः । ४-अ० चू० पृ० २०६ : कोयो वंसो, सो य फलेण सुक्खति । उक्तं च
पक्षा: पिपीलिकानां, फलानि तलकदलीवंशषत्राणाम् ।
ऐश्वर्यञ्चाऽविदुषामुत्पद्यन्ते विनाशाय ।। ५-अ० चू०पृ० २०७ । ६ हा० टी० प० २४३ : क्षयोपशमवैचित्र्यात्तन्त्रयुक्त्यालोचनाऽसमर्थ: सत्प्रज्ञाविकल इति ।
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