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अध्ययन ६ (प्र० उ०) : श्लोक १३-१७
पर
विणयसमाही (विनय-समाधि)
४२६ १३-लज्जा दया संजम बंभचेरं
लज्जा दया संयम ब्रह्मचर्य, कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं। कल्याणभागिन: विशोधिस्थानम् । जे मे गुरू सययमणुसास्यति ॥ ये मां गुरवः सततमनुशासति, ते हं गुरू सययं पूययामि ॥ तानह गुरुन् सतत पूजयामि ॥१३॥
१३---लज्जा२०, दया, संयम और ब्रह्मचर्य कल्याणभागी साधु के लिए विशोधिस्थल हैं। जो गुरु मुके. उनकी सतत शिक्षा देते हैं उनकी मैं सतत पूजा करता हूँ।
१४- जहा निसंते तवणच्चिमाली
पभासई केबलभारहं तु । एवायरिओ सुयसोलबुद्धिए विरायई सुरमझे व इंदो ॥
यथा निशान्ते तपन्नचर्माली, प्रभासते केवल भारत तु। एवमाचार्यः श्रुत-शील-बुद्ध्या, विराजते सुरमध्य इद इन्द्रः ॥१४॥
१४-जैसे दिन में प्रदीप्त होता हुआ मूर्य सम्पूर्ण भारत (भरत-क्षेत्र) को प्रकाशित करता है वैसे ही श्रुत, शील और बुद्धि से सम्पन्न आचार्य विश्व को प्रकाशित करते हैं और जिस प्रकार देवताओं के बीच इन्द्र शोभित होता है, उसी प्रकार साधुओं के बीच आचार्य सुशोभित होते हैं।
१५---जहा ससी कोमुइजोगजुत्तो यथा शशी कौमुदीयोगयुक्तः,
नवखत्ततारागणपरिवुडप्पा। नक्षत्रतारागणपरिवृतात्मा। खे सोहई विमले अब्भमुक्के खे शोभते विमले भ्रमुक्ते, एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ॥ एवं गणी शोभते भिक्षुमध्ये ॥१५॥
१५-जिस प्रकार बादलों से मुक्त विमल आकाश में नक्षत्र और तारागण से परित, कार्तिक पूर्णिमा२२ में उदित चन्द्रमा शोभित होता है, उसी प्रकार भिक्षुओं के बीच गणी (आचार्य) शोभित होते है।
१६-महागरा आयरिया महेसी
समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए। संपाविउकामे अणुत्तराई आराहए तोसए धम्मकामी ॥
महाकरान् आचार्यान् मह षिणः, समाधियोगस्य श्रुतशीलबुद्ध याः । सम्प्राप्तुकामोऽनुत्तराणि, आराधयेत् तोषयेद्धर्मकामी ॥१६॥
१६-अनुत्तर ज्ञान आदि गुणों की सम्प्राप्ति की इच्छा रखने वाला मनि निर्जरा का अर्थ होकर समाधियोग, श्रुतशील और बुद्धि के २३ महान् आकर, मोक्ष की एषणा करने वाले आचार्य की आराधना करे और उन्हें प्रसन्न करे।
१७-सोच्चाण मेहावी सुभासियाई
सुस्सूसए आयरियप्पमतो। आराहइत्ताण गुणे अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तरं ॥
श्रुत्वा मेधावी सुभाषितानि, शुश्रूषयेत् आचार्यमप्रमत्तः। आराध्य गुणाननेकान्, स प्राप्नोति सिद्धिमनुत्तराम् ॥१७।।
१७-मेधावी मुनि इन सुभाषितों को सुनकर अप्रमत्त रहता हआ आचार्य की शुश्रुषा करे । इस प्रकार वह अनेक गुणों की आराधना कर अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त करता है।
ति बेमि ।
इति ब्रवीमि ।
ऐसा मैं कहता हूं।
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