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दसवेआलियं ( दशवकालिक )
अध्ययन ६: आमुख चौथे में चार समाधियों का वर्णन है। समाधि का अर्थ है-हित, सुख या स्वास्थ्य । उसके चार हेतु हैं-विनय, श्रुत, तप और प्राचार । अनुशासन को सुनने की इच्छा, उसका सम्यक्-ग्रहण उसकी आराधना और सफलता पर गर्व न करना-विनय-समाधि के ये चार अङ्ग हैं । विनय का प्रारम्भ अनुशासन से होता है और अहंकार के परित्याग में उसकी निष्ठा होती है।
मुझे ज्ञान होगा, मैं एकाग्र-चित्त होऊँगा, सन्मार्ग पर स्थित होऊँगा, दूसरों को भी वहाँ स्थित करूगा इसलिए मुझे पढ़ना चाहिए-यह श्रुत-समाधि है । तप क्यों तपा जाए? आचार क्यों पाला जाए ? इनके उद्देश्य की महत्वपूर्ण जानकारी यहाँ मिलती है । इस प्रकार यह अध्ययन विनय की सर्वांगीण परिभाषा प्रस्तुत करता है।
इसका उद्धार नवें पूर्व की तीसरी वस्तु से हुआ है।
१--दश नि०१७॥
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