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आवारपणही ( आचार - प्रणिधि )
१३७. बोलने में लित हुआ है ( वविश्सलिये ) :
बालिका अर्थ है बोलने में
होना जिनदास पूर्णि में इसके दो उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं कोई व्यक्ति 'घड़ा ला' के स्थान में 'घड़ा लाता हूँ' और 'सोमशर्मा' के स्थान में 'शर्मसोम' कहता है यह वाणी की स्खलना है' ।
इलोक ५०:
१३८. श्लोक ५० :
कोई व्यक्ति नक्षत्र आदि के विषय में पूछे तो उससे इस प्रकार कहना चाहिए कि 'यह हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है' इससे अहिंसा की सुरक्षा भी हो जाती है और अप्रिय भी नहीं लगता ।
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१३. नक्षत्र ( नक्खत ):
कृत्तिका आदि जो नक्षत्र हैं उनके विषय में आज चन्द्रमा अमुक नक्षत्र युक्त है - इस प्रकार गृहस्थ को न बताए ।
१४० स्वप्नफल ( सुमि
स्वप्न का शुभ-अशुभ फल बताना* ।
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१४१. वशीकरण ( जोगं * )
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४१३
यहाँ योग का अर्थ है --- औषध' या खाद्य आदि पदार्थों के संयोग की विधि अथवा वशीकरण । संयोग की विधि, जैसे- दो पल घी, एक पल मधु, एक आढक दही, बीस काली मिर्च और दो भाग चीनी या गुड़- ये सब चीजें मिलाने से राजा के खाने योग्य 'रसालू' नामक पदार्थ बनता है। वशीकरण अर्थात् मन्त्र, चूर्ण आदि प्रयोगों से दूसरों को अपने वश में करना ।
१४२. निमित्त ( निमि
निमित्त का अर्थ है अतीत, वर्तमान और भविष्य संवन्धी शुभाशुभ फल बताने वाली विद्या
अध्ययन : श्लोक ५० टि०
१४३ मन्त्र ( मंत ) :
मन्त्र का अर्थ है - देवता या अलौकिक शक्ति की प्राप्ति के लिए जपा जाने वाला शब्द या शब्द-समूह । मंत्र के साथ विद्या का ग्रहण स्वतः प्राप्त है । ये वृश्चिक मंत्र आदि अनेक प्रकार के होते हैं ।
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१ - जि० चू० पृ० २८६ : वायविक्खलियं नाम विविधमने गप्पगारं वइणं खलियं भण्णइ, जहा घडं आणेहित्ति (भाणियव्वे घड आगमति) भणियं याभिहाणं वा गच्छा उच्चारपद, जहा सोमसम्मोति भणियन् सम्मतोमोति भणियं च एवमादि वायविक्खलियं ।
५- ४० पू० पृ० ११७ जोमो ओसहरुमा ६ (०) जि० १० पृ० २९०
तताच प्रीतिपरिहाराभिवादअनधिकारोऽत्र तपस्विनामिति ।
२० टी० ० २३६ ३-० ० ० २०९ गत्यान पुयमाणान णो णवतं कन्जा, जहा चंदिमा अन्ज अमुकेण णश्वतं उत्तोति । जि० ४ (क) जि० ० चू० पृ० २८६ : सुमिणे अव्वत्तदंसणे ।
(ख) हा० टी० प० २२६
स्वप्नं शुभाशुभफलमनुभूतादि।
(ख) हा० टी० प० २३६ : 'योगं' वशीकरणादि ।
१३७-१४३
अहवा निश्णवसीकरणानि जोगो मण्ण
७- जि० चू० पृ० २८६-२६० : जोगो जहा -दो घयपला मधु पलं दहियस्स य आढयं मिरीय वीसा ।
खंडगुला दो भागा एस रसालू निवइजोगो ।
८ (क) जि० ० पृ० २६० निमित्त तीतादो ।
(ख) हा० टी० प० २३६ : 'निमित्तं' अतीतादि ।
(क) जि० ० ० २६० मंतो असाहको एगगह गहणं सजातीयाण मितिका विशा महिला
पृ० :
।
(ख) हा० टी० प० २३६ : 'मन्त्र' वृश्चिकमंत्रादि ।
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