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दसवेआलियं दशवकालिक )
श्लोक २६ अदीनभाव से भिक्षा लेने का उपदेश ।
, २७,२८ अदाता के प्रति कोप न करने का उपदेश । , २६.३० स्तुतिपूर्वक याचना करने व न देने पर कठोर वचन कहने का निषेध ।
उत्पादन के ग्यारहवें दोष 'पूर्व संस्तव' का निषेध । , ३१,३२ रस-लोलुपता और तज्जनित दुष्परिणाम । , ३३,३४ विजन में सरस आहार और मण्डली में विरस-आहार करने वाले की मनोभावना का चित्रण।
३५ पूजार्थिता और तज्जनित दोष ।
३६ मद्यपान करने का निषेध। ३७-४१ स्तन्य-वृद्धि से मद्यपान करने वाले मुनि के दोषों का उपदर्शन । ,,४२,४३,४४ गुणानुप्रेक्षी की संवर-साधना और आराधना का निरूपण ।
४५ प्रणीतरस और मद्यपानवर्जी तपस्वी के कल्याण का उपदर्शन । , ४६-४६ तप आदि से सम्बन्धित माया-मषा से होने वाली दुर्गति का निरूपण और उसके वर्जन का उपदेश ।
५० पिण्डेषणा का उपसंहार, सामाचारी के सम्यग् पालन का उपदेश । षष्ठ अध्ययन : महाचारकथा (महाचार का निरूपण
२६५-३०४ महाचार का निरूपण
१,२ निग्रन्थ के आचार-गोचर की पृच्छा। ३-६ निग्रन्थों के आचार की दुश्चरता और सर्व सामान्य आचरणीयता का प्रतिपादन । ७ आचार के अठारह स्थानों का निर्देश ।
पहला स्थान : अहिंसा , ८,९,१० अहिंसा की परिभाषा, जीव-वध न करने का उपदेश, अहिंसा के विचार का व्यावहारिक आधार ।
दूसरा स्थान : सत्य , ११,१२ मृषावाद के कारण और मृण न बोलने का उपदेश ।
मृषावाद वर्जन के कारणों का निरूपण ।
तीसरा स्थान : अचौर्य , १३,१४ अदत्त ग्रहण का निषेध।
___ चौथा स्थान : ब्रह्मचर्य १५,१६ अब्रह्मचर्य सेवन का निषेध और उसके कारण।
पाँचवाँ स्थान : अपरिग्रह ,, १७,१८ सन्निधि का निषेध, सन्निधि चाहने वाले श्रमण की गृहस्थ से तुलना।
१६ धर्मोपकरण रखने के कारणों का निषेध । २० परिग्रह की परिभाषा। २१ निग्रन्थों के अमरत्व का निरूपण।
छठा स्थान : रात्रि-भोजन का त्याग २२ एकभक्त भोजन का निर्देशन । ,,२३,२४,२५ रात्रि-भोजन का निषेध और उसके कारण।
सातवां स्थान : पृथ्वीकाय की यतना , २६ श्रमण पृथ्वीकाय की हिंसा नहीं करते। ॥ २७,२८ दोष-दर्शन पूर्वक पृथ्वीकाय की हिंसा का निषेध और उनका परिणाम ।
आठवां स्थान : अपकाय की यतना २६ श्रमण अपकाय की हिंसा नहीं करते।
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