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विषय सूची
श्लोक ७० सचित्त कन्द-मूल आदि लेने का निषेध ।
७१,७२ सचित्त रज-संसृष्ट' आहार आदि लेने का निषेध । , ७३,७४ जिसमें खाने का भाग थोड़ा हो और फेंकना अधिक परे, वैसी वस्तुएँ लेने का निषेध ।
७५ तत्काल के धोवन को लेने का निषेध-एषणा के आठवें दोष 'अपरिणत' का वर्ज़न । , ७६.८१ परिणत धोवन लेने का विधान ।
धोवन की उपयोगिता में सन्देह होने पर चखकर लेने का विधान । प्यास-शमन के लिए अनुपयोगी जल लेने का निषेध । असावधानी से लब्ध अनुपयोगी जल के उपभोग का निषेध और उसके परठने की विधि ।
३. भोगैषणा भोजन करने की आपवादिक विधि :, ८२,८३ भिक्षा-काल में भोजन करने की विधि । ,,८४,८५,८६ आहार में पड़े हुए तिनके आदि को परठने की विधि ।
भोजन करने की सामान्य विधि : , ८७ उपाश्रय में भोजन करने की विधि ।
स्थान-प्रतिलेखनपूर्वक भिक्षा के विशोधन का संकेत ।
८८ उपाश्रय में प्रवेश करने की विधि, ईर्यापथिकीपूर्वक कायोत्सर्ग करने का विधान । ,, ८६,६० गोचरी में लगने वाले अतिचारों की यथाक्रम स्मृति और उनकी आलोचना करने की विधि । ६१-६६ सम्यग् आलोचना न होने पर पुनः प्रतिक्रमण का विधान ।
कायोत्सर्ग काल का चिन्तन । कायोत्सर्ग पूरा करने और उसकी उत्तरकालीन विधि । विश्राम-कालीन चिन्तन, साधुओं को भोजन के लिए निमंत्रण, सह-भोजन या एकाकी भोजन, भोजन
पात्र और खाने की विधि । ,,६७,६८,६९ मनोज्ञ या अमनोज्ञ भोजन में समभाव रखने का उपदेश ।
१०० मुधादायी और मुधाजीवी की दुर्लभता और उनकी गति ।
पञ्चम अध्ययन : पिण्डैषणा (दूसरा उद्देशक)
२६५-२७२ , १ जूठन न छोड़ने का उपदेश ।
२,३ भिक्षा में पर्याप्त आहार न आने पर आहार-गवेषणा का विधान । ४ यथासमय कार्य करने का निर्देश। ५ अकाल भिक्षाचारी श्रमण को उपालम्भ । ६ भिक्षा के लाभ और अलाभ में समता का उपदेश । ७ भिक्षा की गमन-विधि, भक्तार्थ एकत्रित पशु-पक्षियों को लांघकर जाने का निषेध । ८ गोचारान में बैठने और कथा कहने का निषेध ।
६ अर्गला आदि का सहारा लेकर खड़े रहने का निषेध। १०,११ ( भिखारी आदि को उल्लंघ कर भिक्षा के लिए घर में जाने का निषेध और उसके दोषों का निरूपण, उनके १२,१३ । लौट जाने पर प्रवेश का विधान । १४,१७ हरियाली को कुचल कर देने वाले से मिक्षा लेने का निषेध । १८,१६, अपक्व सजीव वनस्पति लेने का निषेध ।
२० एक बार भुने हुए शमी-धान्य को लेने का निषेध । , २१-२४ अपक्व, सजीव फल आदि लेने का निषेध। " २५ सामुदायिक भिक्षा का विधान।
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