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१. आचार-प्रणिधि को ( आवारप्पणिहि क ) :
प्रणिधि का अर्थ समाधि या एकाग्रता है | आचार में सर्वात्मना जो अध्यवसाय ( एकाग्र चिन्तन या दृढ़ मानसिक संकल्प ) होता है, उसे 'आचार - प्रणिधि' कहा जाता है ।
२. पाकर ( लद्धं क ) :
अगस्त्य
' और टीका के अनुसार यह पूर्व
किया (त्या प्रत्यय) का और नाय
का रूप है । 'तुम' प्रत्यय का रूप मानने पर 'आवार- पणिहि लद्दु' का अनुवाद 'आचार-प्रणिधि की प्राप्ति के लिए होगा ।
श्लोक २ :
३. श्लोक २ :
तुलना कीजिए
टिप्पण अध्ययन
लोक १ :
४. ( सबीयगा ख ) :
वीजा दो सत्ता उजवा तहागणी | बाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुवखा सबीयगा || अहावरा तसा पाणा, एवं छक्काय आहिया । एता जीवावरे कोड विश्वई ।
देखिए ४.८ की टिप्पण संख्या २० ।
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इलोक ३ :
३- अ० चू० पृ० १८४ : 'लधुं' पाविऊण ।
४- हा० टी० प० २२७ : 'लब्ध्वा' प्राप्य । ५-- जि० १० चू० पृ० २७१ : ( लब्धुं ) प्राप्तये ।
६ - अ० चू० पू० पडियेथे ण
७- अ० चू० पू० १८५ : जोगो सम्बन्धो ।
१.१.७-८)
५. अहिंसक (अरणजोएक) :
'क्षण' का अर्थ हिंसा है । न क्षण - अक्षण अर्थात् अहिंसा । 'योग' का अर्थ सम्बन्ध" या व्यापार है। जिसका प्रयत्न
१- अ० चि० ६.१४ : अवधानसमाधानप्रणिधानानि तु समाधौ स्युः ।
२- अ० च० पृ० १८४ : आयारप्पणिधी - आयारे सव्वधपणा अज्झवसातो ।
2
के अनुसार यह ''प्रत्यय
१८५ : छणणं छणः क्षणु हिंसायामिति एयस्स रूवं, क्षगारस्स य छगारता पाकते, जधा अक्षीणि अच्छीणि अकारो णः अद्यणः अहिराणमित्यर्थः ।
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