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________________ दसवेआलियं ( दशवेकालिक ) * (वलं थामं च पेहाए सद्धामा रोगमप्पणी खेत्तं कालं च विन्नाय तहप्पाणं निजु जए ) ॥ ३५ जरा जाव न वाही जाय न जाविदिया न ताव धम्मं पीलेइ बढ़ई । ३६ - कोहं माणं च मायं च पाववडढणं । लोभं च धमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमपणो ॥ / हायंति समायरे ॥ ३७- कोहो पोई पीइं पणासेइ माणो विजयनासणो । माया मित्ताणि नासेइ नोहो सविणासणो ॥ ३८ - उसमेण हणे कोहं"" १०० माणं मद्दवया जिणे । मार्ण चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे ॥ ३६- कोहो व माणो व अणिग्गहोया माया य लोभो य पवड्ढमाणा । चत्तारि ए ए कसिणा कसाया सिचंति मूलाई पुणग्भवस्स || Jain Education International * 'यह गाथा कुछ प्रतियों में मिलती है, कुछ में नहीं । ३७८ बलं स्थाम च प्रेक्ष्य, धड़ामारोग्यमात्मनः । क्षेत्रं कालं च विज्ञाय, तथात्मानं नियुञ्जीत ॥ जरा यावन्न पीडयति, व्याधिर्यावन्न वर्धते । यादिन्द्रियाणि न हीयन्ते, तावद्धमं समाचरेत् ।।३५।। क्रोधं मानं च मायां च, लोभं च पापवर्धनम् । वमेच्चतुरो दोषांस्तु, इतिमात्मनः ॥३६॥ फोम: प्रीति प्रणाापति, मानो विनयनाशनः । माया मंत्र्याणि नाशयति. लोभः सर्वविनाशनः ॥ ३७॥ उपामेन हन्यात् को मानं मावेन जयेत् । मायां च ऋजुभावेन, सोभं सन्तोषतो जपेत् ॥३५॥ क्रोधश्च मानश्चानिगृहीतो, माया च लोभश्च प्रवर्धमानौ । चत्वार एते कृष्णाः कषायाः, सिचन्ति मूलानि पुनर्भवस्य || ३६ || For Private & Personal Use Only अध्ययन पश्लोक ३५-३६ अपने बल, पराक्रम, श्रद्धा और आरोग्य को देखकर, क्षेत्र और काल को जानकर अपनी शक्ति के अनुसार आत्मा को तप आदि में नियोजित करे । ३५ - जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, व्याधि न बढ़े और इन्द्रियाँ क्षीण न हों, तब तक धर्म का आचरण करे । ३६ - क्रोध, मान, माया और लोभये पाप को बढ़ाने वाले हैं। आत्मा का हित चाहने वाला इन चारों दोपों को छोड़े । ३७ – क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करने वाला है, माया मंत्री का विनाश करती है और लोभ सब (प्रीति, विनय और मंत्री ) का नाश करने वाला है । ३८ - उपशम से १०१ क्रोध का हनन करे, मृदुता से " मान को जीते, ऋजुभाव से माया को और सन्तोष से लोभ को जीते । ३६ - अनिगृहीत क्रोध और मान, प्रवर्द्धमान माया और लोभ ये चारों संक्लिष्ट १०४ कषाय १५ पुनर्जन्मरूपी वृक्ष की जड़ों का सिंचन करते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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