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श्लोक
विषय-सूची
दसवेआलियं ( दशवकालिक) १६ रात्रि भोजन-विरमण - व्रत का निरूपण और स्वीकार-पद्धति । १७ पाँच महावत और रात्रि-भोजन विरमण व्रत के स्वीकार का हेतु ।
३ यतना १८ पृथ्वीकाय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश । १६ अपकाय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश । २० बायु काय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश । २१ वनस्पतिकाय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश । २२ त्रसकाय की हिंसा से बचने का उपदेश ।
४. उपदेश १ अयतनापूर्वक चलने से हिंसा, बन्धन और परिणाम । २ अयतनापूर्वक खड़े रहने से हिंसा, बन्धन और परिणाम । ३ अयतनापूर्वक बैठने से हिंसा, बन्धन और परिणाम । ४ अयतनापूर्वक सोने से हिंसा, बन्धन और परिणाम । ५ अयतनापूर्वक भोजन करने से हिंसा, बन्धन और परिणाम । ६ अयतनापूर्वक बोलने से हिसा, बन्धन और परिणाम । ७ प्रवृत्ति में अहिंसा की जिज्ञासा । ८ प्रवृत्ति में अहिंसा का निरूपण ६ आत्मौपम्य-बुद्धि सम्पन्न व्यक्ति और अबन्ध । १० ज्ञान और दया (संयम) का पौर्वापर्य और अज्ञानी की भर्त्सना। ११ श्रुति का माहात्म्य और श्रेयस् के आचरण का उपदेश ।
५. धर्म-फल , १२-२५ कर्म-मुक्ति की प्रक्रिया-आत्म-शुद्धि का आरोह क्रम।
संयम के ज्ञान का अधिकारी, गति-विज्ञान, बन्धन और मोक्ष का ज्ञान, आसक्ति व वस्तु-उपभोग का त्याग, संयोग का त्याग, मुनि-पद का स्वीकरण, चारित्रिक भावों की वृद्धि, पूर्वसंचित कमरजों का निर्जरण, केवलज्ञान और केवलदर्शन की संप्राप्ति, लोक-अलोक का प्रत्यक्षीकरण, योग-निरोध, शैलेशी अवस्था को प्राप्ति, कर्मों का संपूर्ण क्षय,
शाश्वत सिद्धि की प्राप्ति । २६ सुगति की दुर्लभता। २७ सुगति की सुलभता।
२८ यतना का उपदेश और उपसंहार। पञ्चम अध्ययन : पिण्डैषणा (प्रथम उद्देशक) --एषणा-गवेषणा, ग्रहणैषणा और भोगैषणा की शुद्धि १८०-१९४
१. गवेषणा श्लोक १,२,३ भोजन, पानी की गवेषणा के लिए कब, कहां और कैसे जाये ?
४ विषम मार्ग से जाने का निषेध। ५ विषम मार्ग में जाने से होने वाले दोष । ६ सन्मार्ग के अभाव में विषम मार्ग से जाने की विधि । ७ अंगार आदि के अतिक्रमण का निषेध ।
८ वर्षा आदि में भिक्षा के लिए जाने का निषेध । ६,१०,११ वेश्या के पाड़े में भिक्षाटन करने का निषेध और वहाँ होने वाले दोषों का निरूपण ।
१२ आत्म-विराधना के स्थलों में जाने का निषेध ।
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