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________________ प्रथम अध्ययन श्लोक द्वितीय अध्ययन आपण्यपूर्वक (संयम में वृति और उसकी साधना ) लोक 11 "1 "3 21 "" 77 11 तृतीय अध्ययन शुल्लकाचार-कथा (आचार और अनाचार का विवेक) श्लोक १-१० नि के अनाचारों का निरूपण । ११ निर्ग्रन्थ का स्वरूप । १२ निर्ग्रन्थ की ऋतुचर्या । १३ महर्षि के प्रक्रम का उद्देश्य – दुःख मुक्ति । १४,१५ संयम - साधना का गौण व मुख्य फल । चतुर्थ अध्ययन षड्जीवनिका ( जीव-संयम और आत्म-संयम ) १. जीवाजीवाभिगम 37 "3 23 सूत्र 13 12 " 17 " 39 13 विषय-सूची मपुष्पिका (धर्म प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति) १ धर्म का स्वरूप और लक्षण तथा धार्मिक पुरुष का महत्व । २, ३, ४, ५ माधुकरी वृत्ति । 17 Jain Education International १ श्रामण्य और मदनकाम | २,३ त्यागी कौन ? ४,५ काम - राग निवारण या मनोनिग्रह के साधन । ६ मनोनिग्रह का चिन्तन-सूत्र, अगन्धनकुल के सर्प का उदाहरण । ७, ८, ९ रथनेमि को राजीमती का उपदेश, हट का उदाहरण । १० रथनेमि का संयम में पुनः स्थिरीकरण । ११ संबुद्ध का कर्तव्य १,२३, पजीवनिकाय का उपक्रम, षड्जीवनिकाय का नाम निर्देश । ४, ५, ६, ७ पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु की चेतनता का निरूपण । ८ वनस्पति की चेतनता और उसके प्रकारों का निरूपण । ६ त्रस जीवों के प्रकार और लक्षण । १० जीव-वध न करने का उपदेश । २. चारित्र धर्म ११ प्राणातिपात विरमण १२ मृषावाद विरमण १३ अदत्तादान-विरमण १४ अब्रह्मचर्य - विरमण १५ परिध-विरमण -- अहिंसा महाव्रत का निरूपण और स्वीकार-पद्धति । - सत्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार -पद्धति । - अचौर्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार-पद्धति । ब्रह्मचर्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार-पद्धति । - अपरिग्रह महाव्रत का निरूपण और स्वीकार-पद्धति । For Private & Personal Use Only पृ० ५ १६-२० ४३-४६ १०५-११८ www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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