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________________ दसवेआलियं ( दशवकालिक ) अध्ययन ७: श्लोक ३३-३४ टि. ५४-५९ ५४. ये दो टुकड़े करने योग्य हैं ( वेहिमाइंघ ) : जिन आमों में गुठली न पड़ी हों उनकी फांके की जाती हैं। वैसे आमों को देखकर उन्हें वेध्य नहीं कहना चाहिए। श्लोक ३३ : ५५. श्लोक ३३: मार्ग बताने के लिये वृक्ष का संकेत करना जरूरी हो तो-'वृक्ष पक्व हैं' के स्थान पर ये असंतृत हैं-फल धारण करने में असमर्थ हैं - इस प्रकार कहा जा सकता है । पाक-खाद्य के स्थान पर ये वृक्ष बहुनिवर्तित फल (प्राय: निष्पन्न फल वाले हैं) इस प्रकार कहा जा सकता है। 'वेलोचित' के स्थान पर ये वृक्ष बहुसम्भूत (एक साथ उत्पन्न बहुत फल वाले हैं) इस प्रकार कहा जा सकता है। 'टाल- इन फलों में गुठली नहीं पड़ी है' के स्थान पर ये फल भूत-रूप (कोमल) हैं-इस प्रकार कहा जा सकता है। 'द्वैधिक-दो टुकड़े करने योग्य' के स्थान पर क्या कहना चाहिए ? यह न तो यहाँ बतलाया गया है और न आचराङ्ग में ही। इससे यह जाना जा सकता है कि 'टाल' और 'द्वैधिक' ये दोनों शब्द परस्पर सम्बन्धित हैं। अचार के लिए केरी या अंबिया (बिना जाली–अन्दर का तन्तु पड़ा आम का कच्चा फल) तोड़ी जाती है और उसकी फांके की जाती हैं, इसलिए 'टाल' और 'वेहिम' कहने का निषेध है। ५६. ( बहुनिवट्टिमा ख): ___इसमें मकार दीर्घ है, वह अलाक्षणिक है । श्लोक ३४ ५७. औषधियाँ ( ओसहीओ क ): एक फसला पौधा, चावल, गेहूँ आदि । ५८. अपक्व हैं (नीलियाओ ख ) नीलिका का अर्थ हरी या अपक्व है । ५६. छवि ( फली ) वाली हैं (छवी इय क ): जिनदास यूणि के अनुसार 'नीलिया' औषधि का और टीका के अनुसार 'छवि' का विशेषण है। १- (क) जि० चू० पृ० २५६ : वेहिमं, अबद्ध ठ्ठिगाणं अंबाणं पेसियाओ कीरंति। (ख) हा० टी०प० २१६ : 'धिकानी' ति पेशीसंपादनेन द्वैधीभावकरणयोग्यानि । २-हा० टी० प० २१६ : असमर्था 'एते' आम्राः, अतिभारेण न शक्नुवन्ति फलानि धारयितुमित्यर्थः । ३-हा० टी० प० २१६ : बहूनि निर्वतितानि बद्धास्थीनि फलानि येषु ते तथा, अनेन पाकखाद्यार्थ उक्तः। ४-हा० टी०प० २१६ : 'बहुसंभूताः' बहूनि संभूतानि-पाकातिशयतो ग्रहणकालोचितानि फलानि येषु ते तथा, अनेन वेलो चितार्थ उक्तः। ५-(क) जि० चू० पृ० २५६ : 'भूतरूवा' णाम फलगुणोववेया। (ख) हा० टी०प० २१६ : भूतानि रूपाणि --अबद्धास्थीनि कोमलफलरूपाणि येषु ते तथा, अनेन टालानार्थ उपलक्षितः । ६ ...(क) अ० चू०१० १७३ : ओसहिओ फलपाकपज्जत्ताओ सालिमादिओ। (ख) हा० टी०प० २१६ : 'ओषधयः' शाल्यादिलक्षणाः । ७- अ० चू० पृ० १७३ : णवा पाकपत्ताओ णीलियाओ। ८-जि० ० १० २५६ : तत्थ सालिबीहिमादियातो ताओ पक्काओ नीलियाओ वा णो भणेज्जा, छविग्गहणेण णिप्पवालिसेंदगादीण सिंगातो छविमंताओ णो भगेज्जा। हैहा० टी०प० २१६ : तथा नीलाश्छवय इति वा वल्लचवलकादिफललक्षणाः । Jain Education Intemational www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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