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________________ दसवेलियं ( दशवैकालिक ) ३५८ जिनदास महत्तर के अनुसार जिसमें रहेंट की घड़ियाँ पानी डालें वह जल-कुंडी वाले देशों में जल से भरकर रखी जाती है और जहाँ स्नान तथा कुल्ला किया जाता है, टीकाकार ने इसका अर्थ - रहेंट के जल को धारण करने वाली किया है । आयार चूला ४।२६ में 'यह वृक्ष उदक द्रोणी के योग्य है' ऐसा कहने का निषेध मिलता है । 'द्रोणी' का अर्थ जल-कुंडी के सिवाय काष्ठमय नौका भी हो सकता है । अर्थशास्त्र में 'द्रोणी' का अर्थ काष्ठमय जलाधार किया है । श्लोक २८ अध्ययन ७ श्लोक २८ टि० ४५-४७ : ४५. काष्ठ-पात्री ( चंगबेरे क ) : काष्ठमयी या वंशमयी पात्री को 'चंगबेर' कहा जाता है। प्रश्न व्याकरण में इसी अर्थ में 'चंगेरी' शब्द का प्रयोग मिलता है । ४६. मयिक ( मइयं ख ) : म अर्थात् बोए हुए खेत को सम करने के लिए उपयोग में आने वाला एक कृषि का उपकरण ' पर कुलिय' शब्द का प्रयोग हुआ है। शीलाचार्य ने फुलीय' का अर्थ नहीं किया है। अनुयोगद्वार की कृषि का उपकरण विशेष जिसके नीचे रखे और तीसी लोह की पट्टियां बंधी हुई हो, वैसा लघुतर का काटने के लिये किया जाता है । प्रश्न व्याकरण में इसी अर्थ में 'मत्तिय' शब्द मिलता है" । ४७. ( गंधिया) : 93 गण्डका अर्थात् अहरन", काष्ठफलक" । कौटिलीय अर्थशास्त्र में एक स्थल पर गण्डिका को जल-संतरण का उपाय बतलाया है । व्याख्याकार ने माधव को उद्धृत करते हुए उसका अर्थ प्लवन-काष्ठ किया है" । अथवा काठ की बनी हुई वह कुंडी जो कम पानी वह 'उदगदोणि' कहलाती है' | १- जि० ० ० २५४ उदगदोणी अरहट्टन्स भवति जीए उपर पडलो पाणियं पाडेति अहवा उदगोणी घरांगगए कटुमपी अपोद देने कीर, तत्व मस्सा रहातंति आयमंति या २ हा० डी० ० २१८ उपकोष्योऽरहट्टजलधारिकाः । १३- यही १०.२ । १४- वही, १०.२ : गण्डिकाभि: प्लनवकाष्ठैरिति माधवः । Jain Education International (क) प्रश्न० ( आश्रवद्वार ) १.१३ वृ० : दोणि द्रोणी नौः । (ख) अ० चि० ३.५४१ । ४ – कौटि० अर्थ ० २.५६ : द्रोणी दारुमयो जलाधारो जलपूर्णः । ५ - जि० चू० पृ० २५४ : चंगबेरं कट्टुमयभायणं भण्णइ, अहवा चंगेरी वंसमयी भवति । ६- प्रश्न० (आयवहार) १.१३० चंगेरी ब ेरी महती काष्ठपात्री पटवा ७-हा० डी० १० २१० किम् उप्तबीजाच्छादनम्। ८०० ४२९ अगलनाचा उपयोग पोटचंग तंगल कुलियतीनाभिगंडी आसणसणावस्यजग्गा विवा ६- अनु० वृ० : अधोनिबद्ध तिर्यक्तीक्ष्णलोहपट्टिकं कुलिकं लघुतरं काष्ठं तृणाविच्छेदार्थं यत् क्षेत्रे वाह्यते तन्मरुमंडलादि प्रतीतं कुलिकमुच्यते । १० - प्रश्न० ( आश्रबद्वार) १ वृ० : मत्तियत्ति मत्तिकं, येन कृष्टं वा क्षेत्रं मृज्यते । ११ -- (क) हा० टी० प० २१८ : गण्डिका सुवर्णकाराणामधिकरणी ( अहिगरणी) स्थापनी । (ख) कौटि० अर्थ० २. ३२ : गण्डिका- काष्ठाधिकरणी । १२- कौटि० अर्थ० २. ३१ : गण्डिकासु कुट्टयेत्, ( व्याख्या) गण्डिकासु काष्ठफलकेषु कुट्टयेत् । For Private & Personal Use Only आयारचूला में 'मइयं' के स्थान वृत्ति में इसका अर्थ यह हैइसका उपयोग खेत की पास www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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