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वक्कसुद्धि ( वाक्यशुद्धि )
अध्ययन ७:श्लोक २७ टि०३९-४४
अवाच्य १. गाय दुहने योग्य है। २. बैल दम्य है। ३. बैल हल में जोतने योग्य है । ४. बैल वाह्य है। ५. बल रथ-योग्य है।
वाच्य धेनु दूध देने वाली है। बैल युवा है। बैल ह्रस्व है- छोटा है। बैल महालय -बड़ा है। बैल संवहन है।
३६. बैल युवा है ( जुवं गवे क ) :
युवा बैल, चार वर्ष का बैल'। ४०. बड़ा है ( महल्लए ग ) :
दोनों चूणियों में 'महल्लए' के स्थान पर 'महव्वए' पाठ है । आयारचूला ४।२८ में 'महल्लए ति वा' 'महब्वए ति वा'--ये दोनों पाठ हैं। ४१. धुरा को वहन करने वाला है ( संवहणे घ ) : ___संवहण—जो धुरा को धारण करने में क्षम हो उसे संबहन कहा जाता है।
श्लोक २७:
४२. प्रासाद ( पासाय क ) :
एक खंभे वाले मकान को प्रासाद कहा जाता है। चूर्णिकारों ने इसका व्युत्पत्तिक-लभ्य अर्थ भी किया है-जिसे देखकर लोगों के मन और आँखें प्रसन्न हों वह प्रासाद कहलाता है।
४३. परिघ, अर्गला ( फलिहग्गल ग ) :
___ नगर-द्वार की आगल को परिघ और गृहद्वार की आगल को अर्गला कहा जाता है। ४४. जल की कुंडी के लिए ( उदगदोणिणं घ):
अगस्यसिंह स्थविर के अनुसार-एक काठ के बने हुए जल-मार्ग को अथवा काठ की बनी हुई जिस प्रणाली से रहॅट आदि के जल का संचार हो उसे 'द्रोणि' कहा जाता है।
१-जि० चू०प० २५४ : जुवं गवो नाम जुवाणगोणोत्ति, चउहाणगो वा। २-(क) अ० चू० पृ० १७१ : वाहिममवि महब्धयमालवे।
(ख) जि० चू० पृ० २५४ : जो वाहिमो तं महत्वयं भणेज्जा। ३---(क) दश० दी० ७.२५ : संवहनं धुर्पम् ।
(ख) जि० चू० पृ० २५४ : जो रहजोगो तं संवहणं भणेज्जा।
(ग) हा० टी०प०२१७ : संवहनमिति रथयोग्यं संवहनं वदेत् । ४-(क) जि० चू० पृ० २५४ : पासादस्स एगक्खंभस्स।
(ख) हा० टी०प०२१८: एकस्तम्भः प्रासादः। ५-(क) अ०० १० १७१: पसीदंति जंमि जणस्स मणोणयणाणि सो पासादो।
(ख) जि० चू० पृ० २५४ : पसीयंति जंमि जणस्स णयणाणि पासादो भण्णइ । ६-हा० टी० प० २१८ : तत्र नगरद्वारे परिघः गोपुरकपाटादिष्वर्गला। ७-० चू०पू० १७१ : एग कट्ठ उदगजाणमेव, जेण वा अरहट्टादीण उदगं संचरति सा दोणी ।
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